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भारतीय नागरिक ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को बेबाकी और खुले हृदय से अभिव्यक्त करते हैं। यहाँ के लगभग
सभी घरों में दिखाई देने वाले धार्मिक कलैंडर इस बात का जीता-जगता प्रमाण हैं। डिजिटल चलन के बावजूद भारत
में कैलेंडर कला अभी भी फल-फूल रही है। इस संदर्भ में हमारा शहर मेरठ 1940 के दशक से ही भारत के शीर्ष कैलेंडर
कला उत्पादक शहरों में से एक रहा है। मेरठ शहर को प्रिंटिंग हब भी माना जाता रहा है। मेरठ की कलैंडर कला
संस्कृति को प्रसिद्धि दिलाने में यहाँ के प्रमुख कलाकारों जैसे योगेंद्र रस्तोगी और जे.पी सिंघल का बेहद अहम्
योगदान रहा है, जो कई वर्षों तक मेरठ में रहे, लेकिन बाद में बॉम्बे में स्थानांतरित हो गए। योगेंद्र रस्तोगी उत्तर
भारत के सबसे प्रसिद्ध कैलेंडर कला चित्रकारों में से एक हैं। उन्हें हिंदू देवताओं के चित्रण में महारथ हासिल थी।
मेरठ में उनका प्रसिद्ध पेंटिंग स्टूडियो भी है। 29 अगस्त 2015 को 76 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
रस्तोगी एक स्व-शिक्षित (स्वयं ही कला अथवा शिक्षा हासिल करने वाले) कलाकार थे। गरीबी और धन के अभाव में,
उन्होंने अपने चित्रकला कौशल का विकास किया। योगेंद्र सभी धर्मों की तस्वीर बनाने में निपुण थे। उनके बनाए गए
धार्मिक चित्रों वाले कैलेंडर्स की मांग पूरे देश में थी। उनकी लोकप्रियता और हुनर के बलबूते वर्ष 1964 में पूर्व
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा उन्हें प्रशस्ति पत्र और ट्रॉफी देकर सम्मानित किया था। उनके धार्मिक कैलेंडर
चित्रण, ईश्वर का हूबहू मूर्त रूप प्रतीत होते थे।
हिंदू पौराणिक कथाओं के चित्र वाले कैलेंडर भारत की दृश्य संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा रहे हैं, और डिजिटल
युग में भी फल-फूल रहे है। इनके शीर्ष व्यापारियों और निर्माताओं का कहना है कि, वॉल कैलेंडर की बिक्री अभी भी
स्थिर बनी हुई है, वही कुछ ने पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि दर्ज की है। आज भी पेपर कैलेंडर सभी आकार के व्यवसायों
के लिए विज्ञापन का सबसे सस्ता और प्रभावी साधन बना हुआ है।
भारतीय कैलेंडर कला के जनक के रूप में जाने वाले राजा रवि वर्मा, कैनवास पर हिंदू देवी-देवताओं को चेहरा प्रदान
करने वाले पहले भारतीय कलाकार थे। तब तक, ईश्वर को केवल मंदिरों में मूर्तियों के रूप में चित्रित किया गया था।
वर्मा के प्रसिद्ध चित्रों में कमल पर तैरती हुई देवी लक्ष्मी, वीणा बजाने वाली, विद्वान सरस्वती की चित्रकारी बेहद
लोकप्रिय हुई। 1894 में, उन्होंने एक जर्मन तकनीशियन फ्रिट्ज श्लीचर (Fritz Schleicher) की मदद से मुंबई में
अपना खुद का प्रिंटिंग प्रेस स्थापित किया, जिसके माध्यम से उन्होंने हिंदू पौराणिक कथाओं से छवियों को आम
लोगों के घरों में स्थान दिलवाया। 1920 और 1930 के दशक में, सनलाइट साबुन, वुडवर्ड्स ग्राइप वाटर, ब्रिटिश
एलिज़रीन कंपनी जैसे नामी व्यवसायों ने भी राजा रवि वर्मा की कला की विशेषता वाले कैलेंडर निकाले।
1940 और 60 के दशक में, एस.एम पंडित, के. माधवन, रघुवीर मुलगांवकर, बी.जी शर्मा जैसे कलाकारों ने कैलेंडर
कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। वही पी. सरदार, जे.पी सिंघल, इंद्र शर्मा और मेरठ के प्रसिद्ध कलाकार योगेंद्र
रस्तोगी, 1970 और 80 के दशक में सबसे अधिक मांग वाले कैलेंडर कलाकारों में से थे। 1990 के दशक तक, मुंबई,
कोलकाता, चेन्नई शिवकाशी, नाथद्वारा और मेरठ जैसे शहरों में कई कैलेंडर स्टूडियो थे, यह स्टूडियों कभी योगेंद्र
रस्तोगी और जेपी सिंघल सहित कई श्रेष्ठतम कलाकारों के स्थाई अड्डे बन चुके थे। हालांकि बाद में अधिकांश
कलाकार और स्टूडियो मुंबई में स्थान्तरित हो गए।
उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध कैलेंडर कला चित्रकारों में से एक योगेंद्र रस्तोगी का मेरठ में उनके स्टूडियो में ही उनका
साक्षात्कार (interview) हुआ था। जहाँ उन्होंने जे.जे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई की शिक्षा को "अति आधुनिक" कहकर
ठुकरा दिया था। कैलेंडर कला की आम तौर पर अवमूल्यन श्रेणी के लिए रस्तोगी का विशेष तौर पर सम्मान किया
जाता है।
1900 के दशक के उत्तरार्ध से लेकर 2000 के शुरुआती दिनों तक लोकप्रिय कैलेंडर संस्कृति मोटे तौर पर चार विषयों
पर आधारित होती थी।
1. धार्मिक या धार्मिक महाकाव्य दृश्य, विशेष रूप से महाभारत और रामायण की मूर्तियाँ और धार्मिक प्रतीक।
2. देशभक्ति (राष्ट्रीय नायकों और नेताओं के चित्र, अतीत और वर्तमान।)
3. फिल्मी (अनिवार्य रूप से फिल्मी सितारों के चित्र।)
4. परिदृश्य (जो स्पष्ट रूप से मानव रूप के चित्रण को छोड़कर पूर्व श्रेणियों से भिन्न होते हैं।)
1970 और 80 के दशक में, ऑफ़सेट प्रेस की शक्ति कैलेंडर कला में यांत्रिक हस्तक्षेप का एक रूप बन गई। कई
स्टूडियो या कलाकारों ने देवताओं के मुद्रित कट-आउट, या अन्य वास्तुशिल्प विवरण का उपयोग किया। आज
कलैंडरों में धार्मिक छवि की उल्लेखनीय निरंतरता रही है। विशेष तौर पर चमकदार लक्ष्मी और गणेश जी की छवियाँ
कैलेंडर कला उत्पादन में सबसे लोकप्रिय बनी हुई हैं। वर्ष 2000 से पूर्व और आज के कलैंडर उद्दोग में बड़ा भौतिक
अंतर यह है कि वे अब कलाकार के स्टूडियो में नहीं, बल्कि कंप्यूटर से उत्पन्न छवियों के रूप में बड़े पैमाने पर
उत्पादित किए जा रहे हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3ELG8J8
https://bit.ly/3DT4DTo
https://bit.ly/3lUoZpl
https://bit.ly/3oQlthI
https://en.wikipedia.org/wiki/Yogendra_Rastogi
चित्र संदर्भ
1.कलाकार: योगेंद्र रस्तोगी द्वारा निर्मित श्री लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, गणेश के कैलेंडर को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
2.कलाकार: योगेंद्र रस्तोगी को दर्शाता एक चित्रण (presidentofindia)
3.देशभक्ति पर आधारित कैलेंडर को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
4.राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित धार्मिक चित्र ,को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5.विविध विषयों को संदर्भित करते कैलेंडर का एक चित्रण (prarang)
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