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मेरठ और सरधना की बेगम समरू अपनी संपत्ति और रुची के लिएकाफी प्रसिद्ध थीं।बेगम समरु ईस्ट
इंडिया कंपनीकी एक करीबी सहयोगी थी, वहीं उनके समय के दौरान हाथीदांत(अब प्रतिबंधित) से बनी
कुछ वस्तुएं, इंग्लैंड (England) के संग्रह और संग्रहालयों में देखी जा सकती हैं।बेगम समरु के दरबार की
एक प्रतिमा को भी हाथीदांत से बनाया हुआ है, इस प्रतिमा में कुल्हाड़ी, संगीत वाद्ययंत्र और पोत
को पकड़ने वाले दस पुरुष सेवकों के केंद्र में बेगम बैठी हुई हुक्का फूंकते हुए देखी जा सकती हैं ।ये
सभी मूर्तियां हाथीदांत से बने एक छिद्रित बाड़ा से संलग्न हैं। ये चित्रित दृश्य शायद बेगम के दरबार
का है।
हाथीदांत उत्कीर्णन आमतौर पर हाथी के दांत को यांत्रिक या हाथ से तेज काटने के उपकरण का
उपयोग करके किया जाता है।मनुष्यों द्वारा प्रागैतिहासिक काल के बाद से आभूषण के लिए हाथी केदांत का उत्कीर्णन करना शुरू कर दिया गया था, हालांकि अफ्रीका (Africa) के आंतरिक19 वीं
शताब्दी के प्रारंभण तक, यह आमतौर पर एक दुर्लभ और महंगी सामग्री उत्पादों के लिए उपयोग की
जाती थी।हाथी दांत उत्कीर्णन से किसी भी अकृत्ति को अच्छे से उकेरा जा सकता है और हाथीदांत से
बनी सामग्री काफी लंबे समय तक अन्य सामग्री की तुलना में बने रहते हैं। द ब्रिजमैन आर्ट लाइब्रेरी
(The Bridgeman Art Library) में एक निजी संग्रह केन वेल्श (Ken Welsh) में 1790 ईसवी में
बेगम समरू के लिए दिल्ली में बने एक हाथीदांत शतरंज के टुकड़े संग्रहीत हैं।
बेगम दिल्ली के राजदरबार में एक नर्तकी थीं, जिन्होंने बाद में एक यूरोपीय तंख़्वाहदार वाल्टर रेनहार्ड
सोम्ब्रे (Walter Reinhard Sombre) से शादी कर ली थी।बेगम समरु को कई नामों से भी जाना
जाता है, फरजाना, जेबुन्निशां या फिर जोहान नोबोलिश सोम्ब्र। दरसल लखनऊ, रुहेलखंड, आगरा,
भरतपुर में हुए विभिन्न युद्धों में बेगम और सोम्ब्रे ने एक-दूसरे का साथ निभाया। इसी दौरान सोम्ब्रे
ने फरजाना (बेगम) से शादी कर ली तो लोग उन्हें सोम्ब्रे के पत्नी के रूप में बेगम समरू बुलाने
लगे।बादशाह शाह आलम द्वितीय के कहने पर सोम्ब्रे ने सहारनपुर के रोहिल्ला लड़ाके जाबिता खान
को करारी शिकस्त दी। इससे खुश होकर शाह आलम ने सरधना की जागीर सोम्ब्रे के हाथों में सौंप
दी। जिसके बाद सोम्ब्रे बेगम समरू के साथ सरधना में ही बस गए।इसके बाद बेगम ने शाह आलम
की युद्ध में कई बार चतुराई से जान बचाई, जिसको देखते हुए उन्हें जेबुन्निशां (यानि बहुत प्यारी
पुत्री) नाम दिया गया।
1778 में वॉल्टर रेनहार्ड की अचानक मृत्यु के बाद,शाह आलम द्वितीय और तकरीबन चार हजार
सैनिकों की रजामंदी के बाद बेगम समरू को सरधना का जागीरदार बना दिया गया।वहीं पति की
मौत के तीन साल बाद फरजाना ने ईसाई धर्म कुबूल कर लिया और वह अपना नाम परिवर्तित कर
जोहाना नोबिलिस सोम्ब्रे बन गईं। 1822 में बेगम समरु ने अपने पति की याद में सरधना में विशालकैथोलिक गिरिजाघर का निर्माण कराया था।बेगम समरु की एक तस्वीर शायद दिल्ली से लगभग
1820-1830 ईसवी की मौजूद है। इस तस्वीर में बेगम को एक गहरे लाल पर्दे के आगे के एक लाल
लाल मखमल से ढकी हुई कुर्सी पर बैठा हुआ दिखाया गया है, वे नीले पाजामे के ऊपर सफेद पोशाक
पहने हुई हैं, जिसके ऊपर उन्होंने एक सफेद कश्मीर शॉल डाली हुई है। गले में मोतियों की माला
और हाथ में वे हुक्का पकड़े हुए दिखाई गई हैं। उनके दाईं ओर एक खुली हुई खिड़की देखी जा सकती
है, जिससे जंगल के परिदृश्य को दिखाया गया है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3pywZNN
https://bit.ly/3IrSrga
https://bit.ly/31xNIZk
https://bit.ly/32Xjj7f
https://bit.ly/3rDLnXv
चित्र संदर्भ
1. हाथीदांत से निर्मित बेगम समरू के दरबार की एक उत्कीर्ण प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (rct.uk)
2. हाथीदांत से निर्मित हुक्का पीती बेगम समरू के दरबार को दर्शाता एक चित्रण (rct.uk)
3. बेगम समरू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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