स्वदेशी दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण, खादी कपडे के उत्पादन में मेरठ की अहम् भूमिका

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स्वदेशी दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण, खादी कपडे के उत्पादन में मेरठ की अहम् भूमिका

मेरठ के टेक्सटाइल क्लस्टर में आज 30,000 से अधिक बड़े और छोटे पावरलूम हैं।मेरठ का खादी उद्योग उत्तर भारत के सबसे बड़े कपड़ा उत्पादकों में से एक है।खादी कपड़े, जिसे खादर के नाम से भी जाना जाता है,कपास से बना तथा हाथ से बुना हुआ प्राकृतिक फाइबर है।खादी के कपड़े की अन्य विविधताओं में रेशम और ऊन शामिल हैं।इस कपड़े की बुनावट खुरदुरी होती है,और जब इसे सर्दियों के मौसम में पहना जाता है, तब यह आरामदायक अनुभव प्रदान करती है।गर्मियों के मौसम में भी यह शरीर को ठंडा रखती है।
इस कपड़े की उत्पत्ति महात्मा गांधी के समय में हुई थी जब उन्होंने स्वदेशी आंदोलन शुरू किया। स्वदेशी आंदोलन के संदर्भ में खादी से तात्पर्य देशी या स्वदेशी दृष्टिकोण से था, जिसे उस समय एक आत्मनिर्भर समाज के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया।भारत में बहिष्कार आंदोलन शुरू होने पर पहला खादी कपड़ा तैयार किया गया था। जैसे ही 'स्वदेशी आंदोलन' शुरू हुआ, विदेशी वस्तुओं का त्याग कर दिया गया।इस आंदोलन को अत्यधिक प्रचारित किया गया,जिससे खादी के रूप में ब्रिटिश वस्त्रों का एक विकल्प सामने आया।गांधी जी को विश्वास था कि भले ही खादी की बिक्री अधिक न हो, लेकिन यह कपड़ा लोगों के दैनिक जीवन में बेहतर बदलाव लाने का काम करेगा।उन्होंने लोगों को देश की विरासत को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए अपने धागे को बुनने और इसे गर्व के साथ पहनने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उस दौरान भारत में तकनीक की कमी के कारण सस्ता कच्चा माल इंग्लैंड (England) को निर्यात किया जाता था और फिर ब्रिटेन (Britain) में मशीनों पर कपड़ा बुना जाता था और फिर उच्च दरों पर भारत में फिर से आयात किया जाता था।भारत में बिजली की शुरुआत से पहले, सभी वस्त्र हाथ से संचालित मशीनों द्वारा मैन्युअल (Manual) रूप से बनाए जाते थे।भारत में मानव संसाधन काफी सस्ते थे, जिससे इंग्लैंड को सस्ते हाथ से बने वस्त्रों का निर्यात किया जा रहा था।
भारत में किसानों के लिए मुख्य कच्चे माल अर्थात कपास की आसान उपलब्धता और उनकी कताई और बुनाई के परिणामस्वरूप खादी की आसान और सस्ती उपलब्धता होने लगी।इसके कारण खादी को "गरीबों का कपड़ा" कहा जाने लगा।वर्तमान में, खादी की विभिन्न किस्में हैं, जो भारत से पूरी दुनिया में निर्यात की जाती है। मेरठ में भी खादी का विकास असहयोग आंदोलन के साथ जोर पकड़ा।असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद मेरठ के लोगों ने महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलकर ईमानदारी से खादी का काम करने का निश्चय किया। एक रिपोर्ट के अनुसार उस समय जिले में साठ हजार चरखे थे और मेरठ की 65 प्रतिशत आबादी ने 1922 में खादी पहनी थी।लोग खादी पहने विवाह और अनेक समारोहों में शामिल होने लगे।28 अगस्त, 1922 को देवनागरी स्कूल, मेरठ के छात्रों ने एक खादी प्रदर्शनी का आयोजन भी किया।लाला लाजपत राय की भतीजी पार्वती देवी ने 1922 में मेरठ जिले के विभिन्न स्थानों का दौरा किया, तथा महिलाओं से अनुरोध किया कि वे अपने पतियों को तब तक भोजन न दें, जब तक कि वे खादी न पहनें। खादी पर एक त्रैमासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए, डॉ बाबूराम गर्ग ने लिखा, कि "मेरठ जिले में एक लाख चरखे काम कर रहे हैं और कपास का उत्पादन 3,000 गज प्रति माह हो रहा है। 25,000 हथकरघे और 50,000 बुनकर इस कार्य में संलग्न हैं। मेरठ की मांग के लिए शुद्ध खादी और मिल खादी की आपूर्ति पर्याप्त है तथा खादी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।मास्टर जगन्नाथ ने सरधना में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि,खादी का उपयोग हजारों बीमारियों और बुराइयों का समाधान है, तथा यही स्वराज का अर्थ है।8 सितंबर, 1924 को एक चरखा क्लब की स्थापनाभी की गई। जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि क्लब में प्रतिदिन तीन घंटे चरखे के लिए कताई और बुनाई का काम किया जाएगा। खादी और स्वदेशी को लोकप्रिय बनाने के लिए अलग-अलग जगहों पर 12 कताई प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। 7 और 8 नवंबर, 1927 को गढ़मुक्तेश्वर में आयोजित किसान सम्मेलन में किसानों से अपने घरों में चरखे को लोकप्रिय बनाने की अपील करने का प्रस्ताव पारित किया गया। स्वदेशी के प्रति उनका उत्साह इतना प्रबल था कि 3 मार्च 1928 को मेरठ के बाजारों में पारंपरिक होली के त्योहार के स्थान पर विदेशी कपड़ों को जलाया गया। एक समय में मेरठ के खादी उद्योग ने हमारे क्षेत्र के लिए रोजगार और आर्थिक लाभ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,लेकिन आज उस योगदान और प्रभाव को भुला दिया गया है,क्योंकि मॉल, खुदरा दुकानों और इंटरनेट ई-दुकानों में सस्ते विदेशी आयातित ब्रांडों को आजअधिक महत्व दिया जाने लगा है।

संदर्भ:
https://bit.ly/31lMqRu
https://bit.ly/3lAyA4k
https://bit.ly/3dhPiRH
https://bit.ly/2ZTiQ4Q

चित्र संदर्भ   

1. मेरठ में खादी विक्रेता की दुकान को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. नज़दीक से खादी पैटर्न को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. मेरठ स्थित गाँधी आश्रम को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. चरखे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)