आज, "बैकपैक" (BackPack) भारत में हर जगह मौजूद हैं। स्कूल या कॉलेज के छात्रों से लेकर
डिलीवरी बॉय और यात्रियों तक, हर कोई बैकपैक का उपयोग करता है। बिक्री के आंकड़ों के
अनुसार,भारतीय लोग अन्य देशों की तुलना में अधिक वाटर-प्रूफ और बड़े बैकपैक खरीदते
हैं।भारत में बैकपैक्स का औसत आकार हर साल 15 प्रतिशत बढ़ रहा है। भारत में बनाया गया
सबसे बड़ा बैकपैक केबिन के आकार वाले सामान के आकार का है। इसका कारण शायद भारत
की विभिन्न परिस्थितियां (जैसे बारिश, गंदगी, पाकेटमार आदि) हैं, जिसकी वजह से बैकपैक के
आकार, कपड़े, सिलाई आदि का भी भारतीयकरण किया जा रहा है।तो आइए आज हम इस
रोजमर्रा के उत्पाद के इतिहास और विकास को समझने की कोशिश करें।
बैकपैक, जिसे नैपसैक (Knapsack), रकसैक (Rucksack), पैक, सैकपैक, बुकसैक, बुकबैग या
बैकसैक भी कहा जाता है,अपने सरलतम फ्रेमहीन रूप में, एक कपड़े से बना थैला है,जिसमें दो
पट्टियों लगी होती हैं। इन दो पट्टियों की सहायता से इसे कंधों में टांगा जाता है। इसमें बाहरी
फ्रेम, आंतरिक फ्रेम और बॉडीपैक भी हो सकते हैं।बैकपैक्स आमतौर पर हाइकर्स (Hikers) और
छात्रों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।बड़े बैकपैक,10 किलोग्राम तक का भार ढो सकते हैं।
बैक पैक के इतिहास की बात करें, तो इसका उपयोग विभिन्न रूपों में प्राचीन हिममानव से
लेकर विश्व युद्ध में शामिल सैनिकों और साहसी पर्वतारोहियों द्वारा किया जाता रहा है।यह
आश्चर्य की बात हो सकती है, लेकिन स्कूलों के बच्चों द्वारा उपयोग में लाए जाने से पहले भी
बैकपैक्स बहुत अच्छी तरह से अस्तित्व में थे।शुरुआती खोजकर्ता और सैनिक हर समय इन पर
निर्भर रहते थे।3300 ईसा पूर्व ताम्र युग का एक ममी (Mummy), ओत्ज़ी द आइसमैन (Ötzi
the Iceman), अपनी यात्रा के दौरान जानवरों के फर से बना रकसैक अपने साथ ले गया
था।यह बैग, साथ ही उसका शरीर और अन्य उपकरण इटली (Italy) में वैल सेनालेस (Val
Senales) घाटी में हाइकर्स के एक समूह द्वारा खोजे गए थे।
1870 में अमेरिकी (American) गृहयुद्ध के दौरान लाठी और कैनवास के कपड़े से बाइंडल्स
(Bindles) बनाए गए। हालांकि एक प्रकार से यह एक बोझ जैसा था, लेकिन उस समय युद्ध
के मैदान में सैनिकों के लिए वास्तव में इससे बेहतर और कुछ भी उपलब्ध नहीं था।1877 में
हेनरी मिरियम (Henry Miriam) ने अमेरिकी सेना के लिए पहला कार्यात्मक नैपसैक विकसित
किया। उन्होंने मिशन के दौरान वजन कम करने के लिए धातु की चादर का इस्तेमाल
किया।1882में केमिली पोइरियर (Camille Poirier) ने दुलुथ (Duluth)पैक के साथ सैन्य
बैकपैक में सुधार किया।1908 में ओले एफ. बर्गमैन (Ole F. Bergman) ने लकड़ी के फ्रेम के
साथ बैग डिजाइन किए, जिसे उन्होंने "सेक्क मेड मीस" (Sekk Med Meis) कहा। इन
फैशनेबल बैकपैक्स को सनौबर (birch) की छाल और मुलायम कपड़े से बनाया गया था।प्रथम
विश्व युद्ध की शुरुआत में हैवरसैक्स (Haversacks) नाम के एक बेहतर सैन्य बैकपैक्स की
आवश्यकता महसूस की गई।1922 में लॉयड एफ. नेल्सन (Lloyd F. Nelson) ने लंबी पैदल
यात्रा के लिए एक कठोर फ्रेम वाले बैकपैक को डिजाइन किया जिसे उन्होंने ट्रैपर नेल्सन
(Trapper Nelson) कहा।1938 में, गेरीकनिंघम (Gerry Cunningham) द्वारा ज़िप वाले पहले
बैकपैक का आविष्कार किया गया।
1943 में सैन्य बैगों को इस तरह विकसित किया गया कि वे अधिक वजन धारण करने में
सक्षम हो सके।द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह महत्वपूर्ण था क्योंकि सैनिकों को भारी
उपकरण, हथियार और गोला-बारूद का ढेर उठाना पड़ता था।1940 के दशक के अंत में बच्चे
अपने साथ बैग पैक लेकर स्कूल जाने लगे।द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, इन बैगों को
कार्यात्मक, हल्का और स्टाइलिश बनाने के लिए अधिक सामग्री उपयोग की जाने लगी।1950 में
आके नॉर्डिन (Åke Nordin) नाम के एक व्यक्ति ने लकड़ी के फ्रेम के साथ एक सूती बैग
बनाया जिसे पीठ पर ऊंचा रखा जा सकता था और पहाड़ों पर ले जाया जा सकता था। बाद में,
उन्होंने Fjällräven नाम की एक कंपनी शुरू की,जो आज भी स्टाइलिश और अच्छे बैग बेचती
है।1952 में डिक (Dick) और नेना केल्टी (Nena Kelty) नाम के दंपतियों ने बैकपैक डिजाइन
को एक अलग स्तर प्रदान किया।डिक ने हाथ से एक धातु के फ्रेम को बैग से जोड़ा, जबकि
नेना ने सामग्री पर सिलाई के माध्यम से ऐसी संरचना का निर्माण किया जो आधुनिक बैकपैक्स
से जुड़ा हुआ था।1959 में बैकपैक्स पर छपाई भी की जाने लगी।1960 के दशक में पारदर्शी
बैकपैक्स का आगमन हुआ।
आज, कई खेल आयोजनों और संगीत समारोहों में सी-थ्रू (see-through)बैग अनिवार्य हैं क्योंकि
वे अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।1967 में स्किप योवेल (Skip Yowell)नाम के एक कॉलेज
के छात्र नेसिएटल,वाशिंगटन (Seattle, Washington) में अपने चचेरे भाइयों के साथ जेनस्पोर्ट
(JanSport) की शुरुआत की।बैकपैक्स मूल रूप से पर्वतारोहण के लिए डिज़ाइन किए गए थे,
लेकिन जल्द ही इनका उपयोग विश्वविद्यालय के लिए भी किया जाने लगा।आज, वे दुनिया में
सबसे ज्यादा बिकने वाले बैकपैक ब्रांडों में से एक हैं।
2000 के दशक के अंत में बैकपैक्स अधिक कार्यात्मक होने लगे।उदाहरण के लिए,ये बैग
फोटोग्राफरों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं और इनमें अधिकतम भंडारण के लिए कई कंपार्टमेंट
बनाए गए हैं।बैकपैक का आविष्कार करने के लिए किसी एक व्यक्ति को श्रेय देना कठिन है,
लेकिन इसके लिए सबसे अधिक श्रेय जिन्हें दिया जाता है, उनमें लॉयड नेल्सन और गेरी
कनिंघम शामिल हैं।
इस क्षेत्र में ऐसे कई बैकपैक ब्रांड हैं, जिन्हें भारतीयों द्वारा स्थापित किया गया है। इनमें
स्काईबैग्स (Skybags),वाइल्डक्राफ्ट (Wildcraft), एबिस (Abys),रोडगोड्स (Roadgods),
अर्बनाइट (Urbantribe),प्रोवोग (Provogue),एफगियर (Fgear), फ्लाइंग मशीन (Flying
Machine),फास्टट्रैक (Fastrack), लुनार (Lunars)आदि शामिल हैं, जो आधुनिक बैकपैक को
और भी उत्कृष्ट रूप देने को प्रयासरत हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/30QyX36
https://bit.ly/30HgxSx
https://bit.ly/3cEWcjz
https://bit.ly/3lkg4NN
https://bit.ly/3xd8vNn
https://bit.ly/3l1ufa7
चित्र संदर्भ
1. कंधे में बैग लटकाएं स्कूली छात्राओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक आधुनिक ड्यूटर बैकपैक (Deuter backpack) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पुराने बैकपैक को दर्शाता एक चित्रण (istock)
4. गैर लचीली मिश्रित पट्टियों वाले बैकपैक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. फोटोग्राफी बैकपैक (Deuter backpack) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.