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आपने अक्सर सुना होगा की, हमारे पूर्वज 100 अथवा उससे भी अधिक वर्ष की औसत आयु तक न
केवल जीवित रहते थे, बल्कि पूर्ण रूप से स्वस्थ जीवन भी जीते थे। यदि हम उनकी, लंबी उम्र के
पीछे छिपे रहस्यों को खंगालें, तो इसमें खान-पान को बेहद महत्वपूर्ण माना जाएगा। अब प्रश्न यह
उठता की चूँकि भोजन तो आज की पीढ़ी भी कर रही है, साथ ही आज हमारी सेहत और स्वास्थ्य से
जुड़े उत्पाद भी अधिक हैं, तो हमारे पूर्वज कैसे हमसे अधिक उम्र तक जी लेते थे?
दरअसल आज वास्तव में हमारे खान पान के तौर तरीको, यहां तक की भोज्य पदार्थों में भी पहले
की तुलना में मिलावट और भिन्नता आ गई है। उदाहरण के तौर पर कुछ वर्षों पूर्व बाजरा (Millets)एक प्रमुख अनाज माना जाता था, और प्रतिदिनं बाजरे की रोटी की सुगंधित खुश्बू से देश की
रसोइयां महकती थी, किन्तु आज संभव है की कई लोगों को इस पौष्टिक आहार का नाम और
उपयोग भी पता न हो।
दरअसल बाजरा छोटे अनाज के दानों वाली खाद्य फसल होते हैं। यह अत्यधिक पौष्टिक होते हैं,
और बहुत कम उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करके सीमांत एवं उपजाऊ मिट्टी में उगाए जाते
हैं। ये फसलें बड़े पैमाने पर देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा में योगदान करती हैं।
बाजरे की अधिकांश फसलें मूल रूप से भारतीय फसलें मानी जाती हैं, और पोषक-अनाज के रूप में
लोकप्रिय हैं, क्योंकि इनमें मानव शरीर के सामान्य कामकाज के लिए आवश्यक अधिकांश जरूरी
पोषक तत्व मिल जाते हैं। बाजरा वर्षा पर आधारित फसलें होती हैं, और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में
उगाई जाती हैं। इस प्रकार यह कृषि और खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण हैं।
इन्हे उगाने के स्थान, अनाज के प्रकार और अकार के आधार पर अलग-अलग वर्गीकृत किया गया
है। जैसे प्रमुख बाजरा में ज्वार (ज्वार) , रागी/मंडुआ, फॉक्सटेल बाजरा (कंगनी/इतालवी बाजरा),
छोटा बाजरा (कुटकी), कोदो बाजरा, बरनार्ड बाजरा (सावन/झंगोरा), प्रोसो बाजरा (चीना/आम
बाजरा), और ब्राउन टॉप बाजरा (कोरले) शामिल होते है। अफ्रीका के कुछ देशों में, फोनियो और टेफ
जैसे अन्य बाजरा उगाए जाते हैं।
बाजरा एशिया और अफ्रीका में मानव जाति द्वारा पालतू रूप से उगाई गई पहली फसल थी, जो
बाद में दुनिया भर में विकसित सभ्यताओं के लिए महत्वपूर्ण खाद्य स्रोतों के रूप में फैल गई। यह
मोटे दानों वाले अनाज काफी कम समय, लगभग 2-4 महीनों में ही अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं,
अर्थात तैयार हो जाते हैं। दुनिया के शुष्क क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए बाजरा प्रमुख ऊर्जा स्रोत
और मुख्य खाद्य पदार्थ मानी जाती हैं।
अनाज की कटाई के बाद का बचा हुआ माल, पक्षियों के चारे, शराब बनाने, औद्योगिक उपयोग के
अलावा पशुओं के लिए पोषक चारे के एक प्रमुख स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है। कई शतकों
से बाजरा, भोजन और चारे के लिए एशिया और अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों की जीवन रेखा रहा है।
अधिकांश बाजरा खरीफ मौसम की फसलें होती हैं तथा मई-जून के दौरान बोई जाती हैं, जिनमें
सितंबर से अक्टूबर के दौरान परिपक्वता आती हैं। इनमें से अधिकांश फसलें, जैसे: रबी मौसम
(अक्टूबर-मार्च) और गर्मी के मौसम (जनवरी-अप्रैल) के दौरान अच्छी पैदावार देती हैं।
चावल और गेहूं की तुलना में बाजरे को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है, और इसे सूखा
सहिष्णु (drought tolerant) फसल माना जाता है। मक्का के लिए न्यूनतम 700 मिमी की
तुलना में ये फसलें, प्रमुख रूप से 450 मिमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।
बाजरे के उत्पादन का लगभग 80% प्रयोग मानव खाद्य पदार्थों के लिए, जबकि शेष का उपयोग
पोल्ट्री फीड, पीने योग्य शराब और अन्य औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। बाजरे को
कभी-कभी अकाल फसलों के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि वे एकमात्र ऐसी फसल हैं जो
अकाल की स्थिति में भी बेहतर पैदावार दे सकती हैं। हालांकि पहले भी इन्हे खेती के लिए अंतिम
विकल्प के रूप में देखा जाता था, क्योंकि बाजार में इनकी मांग कम है और कमाई भी अन्य फसलों
की तुलना में कम होती है। लेकिन आज ये उपेक्षित फसलें दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गरीबों की
आजीविका, भोजन और पोषण सुरक्षा के साधनों में उनके योगदान के कारण महत्वपूर्ण मानी
जाती हैं।
बाजरे की फसल मनुष्यों के लिए ज्ञात सबसे पुराने खाद्य पदार्थ मानी जाती है, लेकिन बढ़ते
शहरीकरण और औद्योगीकरण एवं चावल और गेहूं की बड़े पैमाने पर खेती के कारण इसका महत्व
और खेती कम हो गई। हालांकि आज मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी घातक
बिमारियों के रामबाण इलाज के रूप में जीवन-शैली और भोजन की आदतों के उपहार के रूप में,
बाजरा स्वस्थ जीवन जीने के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में लौट आया है। बाजरे में कई
पोषक तत्व, और स्वास्थ्य वर्धक गुण होते हैं, यह विशेष रूप से उच्च फाइबर सामग्री, मधुमेह से
संबंधित अन्य बीमारियों के जोखिम को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाती है। बाजरा कब्ज़ होने
से बचाने के लिए हमारे कोलन को हाइड्रेट (hydrates our colon) भी करता है। बाजरा, ट्रिप्टोफैन
(tryptophan) का उच्च स्तर सेरोटोनिन (serotonin) उत्पन्न करता है, जो हमारे मूड को शांत
करता है। बाजरा में उपस्थित नियासिन (Niacin), कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद कर सकता है।
बाजरा के सेवन से ट्राइग्लिसराइड्स और सी-रिएक्टिव (triglycerides and C-reactive) प्रोटीन
कम हो जाता है, जिससे हृदय रोग से बचाव होता है।
बाजरा क्षेत्रफल और उत्पादन के मामले में छठा प्रमुख अनाज है, और सूखे के अनुकूल अनाज भी
है। भारत में चावल और गेहूं के बाद बाजरा सबसे व्यापक रूप से उगाया जाने वाला अनाज है। यहाँ
यह 9.3 मिलियन हेक्टेयर से अधिक पर उगाया जाता है, जिसमें वर्तमान अनाज उत्पादन 9.5
मिलियन टन और उत्पादकता 1044 किलोग्राम / हेक्टेयर है। बाजरा उगाने वाले प्रमुख राज्यों में
राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा शामिल हैं, जो देश में कुल बाजरे का 90%
से अधिक उत्पादन करते हैं।
बाजरे का पौंधा लंबा और सीधा होता है और 6-15 फीट ऊंचाई तक बढ़ता है। ज्वार को छोड़कर सभी
प्रकार के की बाजरा फसलों की बड़ी गुठली होती है, जो लगभग सफेद, हल्के पीले, भूरे, स्लेट नीले
या बैंगनी रंग की हो सकती है। बाजरा प्रोटीन, फाइबर, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और आयरन जैसे
आवश्यक यौगिकों से भरपूर होता है। खनिजों और प्रोटीन की अपनी समृद्ध संरचना के कारण,
बाजरा में कई स्वास्थ्य लाभकारी गुण होते हैं। बाजरा उच्च तापमान, हल्की मिट्टी और अर्ध-शुष्क
बढ़ती परिस्थितियों में खेती से जुड़े सभी अनाजों में सबसे अधिक सूखा और गर्मी सहनशील
अनाज है। बाजरा विशेष रूप से दक्षिणी भारत , पूर्वी और मध्य अफ्रीका की ग्रामीण आबादी के लिए
एक महत्वपूर्ण प्राथमिक भोजन है। फिंगर बाजरा या रागी (Finger millet or rag) को अनुकूलन
की विस्तृत श्रृंखला के तहत उगाया जा सकता है, अर्थात समुद्र तल से हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों तक
सुखी और दोमट प्रकार की मिट्टी में सबसे अच्छा पनपता है। बाजरे के दाने उच्च गुणवत्ता वाले
प्रोटीन से भरपूर होते हैं जिनमें ट्रिप्टोफैन, सिस्टीन और मेथियोनीन, फाइबर (10-15% आहार
फाइबर), फाइटोकेमिकल्स, कैल्शियम (tryptophan, cysteine and methionine, fiber
(10-15% dietary fiber), phytochemicals, calcium) और अन्य खनिज अधिक मात्रा में होते
हैं। मोटे अनाजों को सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है, जबकि उनकी कृषि लागत
भी गेहूं और धान जैसी अन्य फसलों की तुलना में किफायती होती है। चूंकि हमारे शहर मेरठ की
भूमि पूर्व से ही उपजाऊ है, इस प्रकार बाजरे की फसल उगना हमारे किसानों के लिए स्वास्थ और
आय के सन्दर्भ में बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। राज्य सरकार मक्का, ज्वार, बाजरा
(बाजरा) और जौ (जौ) सहित प्रमुख मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी कर
रही है। हालांकि बाजरा एक सेहतमंद फसल है, किंतु इसके सेवन के संदर्भ में भी कुछ सावधानिया
रखना जरूरी हैं। जैसे किसी भी प्रकार के बाजरा का अधिक मात्रा में सेवन न करें। उन्हें अपने
भोजन में एक बार शामिल करना, पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है।
इसके अधिक सेवन से दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
जब उपलब्धता की बात आती है, तो कई प्रकार के बाजरा होते हैं जिन्हें आप अपने आहार में
शामिल कर सकते हैं। ये पूरे साल बाजार में उपलब्ध रहते हैं। हालांकि, जब बाजरा की खपत की
बात आती है तो मौसमी को शामिल करना सबसे अच्छा है। हर मौसम में हर तरह के बाजरा नहीं
खाने चाहिए।
बाजरा और मक्का सर्दियों के लिए बाजरे की आदर्श पसंद होती हैं। इस मौसम में बाजरे की खेती
विशेष रूप से की जाती है। इसलिए इनका सेवन करना आपकी सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद
होगा।
संदर्भ
https://bit.ly/3HEcFTs
https://bit.ly/3nokrZo
https://bit.ly/3wRgPSI
चित्र संदर्भ
1. हाथ में बाजरे के दानों को उठाए किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. कंधे पर बाजरे के पोंधों को उठाए महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. अंकुरित बाजरे के पौधे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बाजरे में मीठे हलवे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली बाजरे की फसल मंडुवे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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