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प्राचीन सनातन धर्म में समुद्र को केवल "सागर" न कहते हुए "समुद्र देव" कहकर संबोधित किया
जाता था। दरसल समुद्र हमारी धरती पर जीवन के आधार हैं, वे जलीय जीवन सहित भूमि पर पनप
रहे जीवन के पालनकर्ता हैं। यही कारण है प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में उन्हें "देवता" की संज्ञा दी गई है।
किंतु आज मानवीय कारणों से देव रूपी समुद्र और उसके भीतर पनप रहे जलीय जीवन के हालात
दुखदाई हो गए हैं, जिन्हे केवल मानवीय चेतना का बेहतर प्रयोग करके ही सुधारा जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने पहली बार जमीन से समुद्र में प्रवेश करने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा निर्धारित
की है। फरवरी, 2015 को साइंस जर्नल में प्रकाशित हुए परिणामों के अनुसार वर्ष 2010 में, आठ
मिलियन टन प्लास्टिक कचरे को समुद्र में छोड़ दिया गया। इसकी गंभीरता का अंदाज़ा आप इस
तथ्य से लगा सकते हैं की वर्ष 1961 में विश्व स्तर पर उत्पन्न हुए प्लास्टिक की कुल मात्रा ही आठ
मिलियन टन के आसपास रही थी।
धरती पर पैदा किये गए प्लास्टिक और अन्य प्रकार के रसायन युक्त कचरे को समुद्री जहाजों,
विमानों, प्लेटफार्मों या अन्य मानव निर्मित संरचनाओं का प्रयोग करके जानबूझकर समुद्र में
निपटारित किया जाता है, इस प्रक्रिया को समुद्री डंपिंग (Marine dumping) कहा जाता है। समुद्री
डंपिंग से जलीय प्रजातियों के महत्वपूर्ण आवास नष्ट या खराब हो सकते हैं, साथ ही यह तटीय
क्षरण और अभिवादन का कारण भी बन सकता है, जो समुद्री पर्यावरण के स्वास्थ्य और
उत्पादकता को प्रभावित करता है। 6-पैक रिंग पैकेजिंग और माइक्रोफिलामेंट फिशिंग लाइन जैसी
कूड़े की वस्तुएं कछुओं, मछलियों और अन्य समुद्री पक्षियों को फंसा सकती हैं, और अंततः पक्षियों
का गला घोंट सकती हैं या उन्हें भूखा मरने पर विवश कर सकती हैं। व्हेल, डॉल्फ़िन और अन्य
समुद्री स्तनधारी प्लास्टिक कचरे के अंतर्ग्रहण के जोखिम से जूझ रहे हैं। समुद्री कछुए गलती से
प्लास्टिक की थैलियों को जेली फिश समझकर खा लेते हैं, जो की जेली फिश की भांति दिखाई
पड़ती हैं। उदाहरण के लिए, दुनिया का सबसे बड़ा जीवित कछुआ, लेदरबैक, हमारे अटलांटिक और
प्रशांत तटों पर पाया जाता है। 2.5 मीटर तक के गोले के साथ, इसका वजन 900 किलोग्राम तक हो
सकता है। वे प्लास्टिक की थैलियों, गुब्बारों या कंटेनरों को अपना पसंदीदा भोजन जेलीफ़िश
समझ लेते हैं। एक बार निगलने के बाद, प्लास्टिक कछुओं की आंतों को बंद कर देता है, जिससे
उनकी मृत्यु हो जाती है। लेदरबैक पहले से ही दुनिया भर में खतरे में हैं, क्योंकि मनुष्य भोजन के
लिए वयस्क कछुओं और उनके अंडों का शिकार करते हैं। समुद्री पक्षी, कछुए, डॉल्फ़िन और सील
अपने पीछे जाल से उलझ जाते हैं। ये कचरा धीरे-धीरे उनका गला घोंट सकते हैं, जिससे उनका दम
घुट सकता है अथवा वे संक्रमण से मर सकते हैं। अलास्का में हाल के अध्ययनों से पता चलता है
कि, हर साल, 30,000 उत्तरी फर सील प्लास्टिक के मलबे में फंस जाते हैं और मारे जाते हैं।
भारत, प्रति वर्ष 0.60 मिलियन टन कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के साथ 12वें स्थान पर है। 8.82
मिलियन टन प्रति वर्ष कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के उत्पादन के साथ चीन इस सूचि में पहले
स्थान पर है। साथ ही इस सूची में 11 एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देश हैं, जिनमें श्रीलंका,
बांग्लादेश, पाकिस्तान और बर्मा शामिल हैं। वैज्ञानिक मानते हैं की अगले दशक में समुद्र में डाले
जाने वाले प्लास्टिक मलबे की संचयी मात्रा 192 तटीय देशों में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में
किसी भी सुधार के अभाव में 2010 के आंकड़े के दोगुने से अधिक होगी। 2010 में, दुनिया के 192
तटीय देशों में 275 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ था। उदाहरण के तौर पर ग्रेट
पैसिफिक गारबेज पैच (Great Pacific Garbage Patch) उत्तरी प्रशांत महासागर में समुद्री मलबे
का एक संग्रह है। या आप यह कह सकते हैं की समुद्र में प्लास्टिक और अन्य प्रकार के कूड़े का ढेर
है। ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच में मलबे की अधिकांश मात्रा जमा हो जाती है, क्योंकि इसका
अधिकांश भाग बायोडिग्रेडेबल नहीं होता है। उदाहरण के लिए, कई प्लास्टिक खराब नहीं होते हैं; वे
बस छोटे और छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं। कई लोग "कचरा पैच" को समुद्र पर तैरते कचरे के एक
द्वीप के रूप में मानते हैं। वास्तव में, ये पैच लगभग पूरी तरह से प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों से
बने होते हैं, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। समुद्र विज्ञानियों और पारिस्थितिकीविदों ने
हाल ही में पता लगाया है कि लगभग 70% समुद्री मलबा वास्तव में समुद्र के तल में डूब जाता है।
इस आधार पर ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच के नीचे समुद्र तल में भी पानी के नीचे कूड़े का ढेर हो
सकता है।
अनुमान है की समुद्र में 80 प्रतिशत प्लास्टिक भूमि आधारित स्रोतों से और शेष 20 प्रतिशत नावों
और अन्य समुद्री स्रोतों से आता है। हालांकि अब दुनियाभर में इस घातक समस्या से निपटने के
लिए जागरूकता फैलाई जा रही हैं। वही इस सन्दर्भ में समुद्र के कचरे के निपटारन हेतु कई जरूरी
और सुरक्षित कदम उठाए जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर भारत के केरल में मछुआरों के जाल में
जब मछलियों के बजाय समुद्री कूड़ा जैसे प्लास्टिक आदि फसंता हैं तो वे उसे वापस समुद्र में
फैकने के बजाय एकत्र करते हैं, और बेचते हैं। जिसका प्रयोग मशीनों के इस्तेमाल से सड़कों के
निर्माण में किया जाता है। केरल में मछुआरे इस प्रक्रिया में समुद्र की सफाई, रीसाइक्लिंग के लिए
समुद्री प्लास्टिक एकत्र करते हैं। पिछले साल अगस्त से, लगभग 5,000 मछुआरे और कोल्लम में
नाव मालिक समुद्र में निकलने के दौरान मिलने वाले सभी प्लास्टिक को वापस ला रहे हैं। कई
सरकारी एजेंसियों की मदद से, उन्होंने इस क्षेत्र में पहला रीसाइक्लिंग केंद्र भी स्थापित किया है,
जहाँ समुद्र में फेंके गए सभी प्लास्टिक बैग, बोतलें, स्ट्रॉ, फ्लिप-फ्लॉप और छांटने और संसाधित
करने का काम किया जाता है। अधिकांश कचरे को निर्माण अधिकारीयों को अच्छे दामों में बेच
दिया जाता है, जिसे रिसाइकिल करके वह पुनः इसका प्रयोग सड़क निर्माण में कर देते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/31iTTQD
https://bit.ly/3BKkylV
https://on.natgeo.com/3BHAwgz
https://bit.ly/3mIajdw
चित्र संदर्भ
1. समुद्र में पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को दर्शाता एक चित्रण (sciencenewsforstudent)
2 जाल में फसें हुए समुद्री कछुए को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच (Great Pacific Garbage Patch) का एक चित्रण (youtube)
4. प्लास्टिक को सड़क में परिवर्तित करते दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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