पश्तून का इतिहास‚ संस्कृति‚ यात्रा व भारत में उनकी प्रमुखता

अवधारणा II - नागरिक की पहचान
20-10-2021 08:47 AM
Post Viewership from Post Date to 19- Nov-2021 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2752 133 0 2885
* Please see metrics definition on bottom of this page.
पश्तून का इतिहास‚ संस्कृति‚ यात्रा व भारत में उनकी प्रमुखता

पश्तून (Pashtuns)‚ जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अफगान (Afghans) के रूप में जाना जाता है‚ सबसे बड़े ईरानी जातीय समूह हैं‚ जो मध्य और दक्षिण एशिया के मूल निवासी हैं। इस जातीय समूह की मूल भाषा पश्तो (Pashto)‚ एक पूर्वी ईरानी भाषा है। इसके अतिरिक्त‚ अफगानिस्तान में जातीय पश्तून‚ दूसरी भाषा के रूप में फारसी की दारी (Dari) बोली बोलते हैं‚ जबकि भारतीय उपमहाद्वीप में दूसरी भाषा के रूप में पश्तून हिंदी-उर्दू का उपयोग करते हैं। पश्तूनों की कुल संख्या लगभग 49 मिलियन होने का अनुमान है‚ हालांकि यह आंकड़ा विवादित है‚ क्योंकि 1979 से अफगानिस्तान में एक आधिकारिक जनगणना की कमी है। पश्तून‚ दक्षिणी अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान‚ जिसे कभी-कभी पश्तूनिस्तान क्षेत्र के रूप में जाना जाता है‚ की भूमि के मूल निवासी हैं‚ जहां अधिकांश आबादी निवास करती है। पश्तून प्रवासियों के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक समुदाय पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों‚ विशेषकर कराची और लाहौर के शहरों में‚ और भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के रोहिलखंड क्षेत्र में‚ साथ ही दिल्ली और मुंबई जैसे प्रमुख शहरों में भी मौजूद हैं। हाल ही में बड़े दक्षिण एशियाई (South Asian) प्रवासी के हिस्से के रूप में‚ फारस की खाड़ी (Persian Gulf) के अरब राज्यों (Arab states)‚ मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates)‚ में एक प्रवासी का गठन हुआ है। एशिया फाउंडेशन (The Asia Foundation) द्वारा 2018 समाजशास्त्रीय अनुसंधान डेटा के अनुसार‚ पश्तून अफगानिस्तान की कुल आबादी का लगभग 50% है‚ वे राष्ट्र की स्थापना के बाद से अफगानिस्तान में प्रमुख जातीय समूह रहे हैं। इसके अतिरिक्त‚ पश्तून पाकिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है‚ जो देश की कुल आबादी का 15% से 18% है‚ और उन्हें राष्ट्र के पांच प्रमुख जातीय समूहों में से एक माना जाता है। पश्तून दुनिया का 26 वां सबसे बड़ा जातीय समूह है‚ और सबसे बड़ा खंडीय वंश समूह है। पश्तून की लगभग 350-400 जनजातियाँ और कुल या वंश होने का भी अनुमान लगाया गया है। प्रागैतिहासिक स्थलों की खुदाई से पता चलता है कि प्रारंभिक मानव कम से कम 50‚000 साल पहले उस स्थान पर रह रहे थे‚ जो अब अफगानिस्तान है। दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के बाद से‚ अब पश्तूनों द्वारा बसाए गए क्षेत्र के शहरों में‚ प्राचीन भारतीय लोगों‚ प्राचीन ईरानी लोगों‚ मेदियों (Medes)‚ फारसियों‚ और पुरातनता में प्राचीन मैसेडोनियन (Macedonians)‚ कुषाण (Kushans)‚ हेफ़थलाइट्स (Hephthalites)‚ अरब (Arabs)‚ तुर्क (Turks)‚ मंगोल (Mongols) और अन्य लोगों सहित आक्रमण और पलायन देखा गया है। हाल के दिनों में‚ पश्चिमी दुनिया के लोगों ने भी इस क्षेत्र का पता लगाया है। आधुनिक पश्तूनों के प्रारंभिक अग्रगामी पुरानी ईरानी जनजातियां हो सकती हैं‚ जो पूरे पूर्वी ईरानी पठार में फैली हुई हैं। अधिकांश पश्तून‚ मूल पश्तून मातृभूमि में पाए जाते हैं‚ जो अमू दरिया (Amu Darya) नदी के दक्षिण में स्थित है‚ जो अफगानिस्तान में है‚ और पाकिस्तान में सिंधु नदी के पश्चिम में है।
पारंपरिक मातृभूमि के बाहर‚ भारतीय उपमहाद्वीप के पश्तूनों को‚ स्वयं के द्वारा तथा उपमहाद्वीप के अन्य जातीय समूह द्वारा पठान के रूप में संदर्भित किया जाता है। पठान शब्द केवल पश्तून शब्द का हिंदुस्तानी उच्चारण है। ऐतिहासिक रूप से‚ पश्तून ब्रिटिश राज से पहले और उसके दौरान ही विभिन्न शहरों में बस गए थे। जिनमें वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों पश्तूनों के वंशज हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में‚ उन्हें कभी-कभी काबुलीवाला (Kabuliwala) कहा जाता है। भारत में महत्वपूर्ण पश्तून प्रवासी समुदाय मौजूद हैं। भारत में उत्तर प्रदेश राज्य में अफगानों (Afghans)‚ पश्तूनों (Pashtuns) या पठानों (Pathans) का एक समुदाय है‚ जो राज्य के सबसे बड़े मुस्लिम समुदायों में से एक है। उन्हें खान (khans) के रूप में भी जाना जाता है‚ जो आमतौर पर उनके बीच इस्तेमाल किया जाने वाला उपनाम है‚ हालांकि उपनाम का उपयोग करने वाले सभी पठान नहीं होते हैं‚ जैसे‚ पूर्वी उत्तर प्रदेश के खानजादा समुदाय को आमतौर पर खान के रूप में भी जाना जाता है। पठान खानजादा वाक्यांश का उपयोग मुस्लिम राजपूत समूहों का वर्णन करने के लिए किया जाता है‚ जो मुख्य रूप से गोरखपुर में पाए जाते हैं‚ और पठान समुदाय में समा गए हैं। दोआब और अवध के कुछ हिस्सों तथा रोहिलखंड में‚ आंशिक पश्तून जातियों के समुदाय हैं‚ जैसे रोहिल्ला के कृषि किसान समुदाय। रोहिलखंड क्षेत्र का नाम पश्तून वंश के रोहिल्ला समुदाय के नाम पर ही रखा गया है। कुछ परंपराओं के अनुसार मेरठ के पास इंचोली गांव की स्‍थापना अफगानी शहर अंचोली के पठान प्रवासियों द्वारा की गई थी‚ तथा मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल के दौरान‚ दक्षिणी भारत में मुगल सेना के कमांडर तथा आगरा प्रांत के गवर्नर शेख ला-अल शाह बुखारी जो शेख लाल के नाम से जाना जाता था, द्वारा इस गांव को पुनर्निर्मित किया गया था। पश्तून मध्य भारत में महाराष्ट्र के राज्यों और पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल में भी रहते हैं‚ जिनमें से प्रत्येक की आबादी पश्तून वंश के साथ एक मिलियन से अधिक है‚ बॉम्बे और कलकत्ता दोनों ही औपनिवेशिक युग के दौरान अफगानिस्तान से पश्तून प्रवासियों के प्राथमिक स्थान रहे हैं। बॉम्बे और कलकत्ता दोनों में पश्तून की आबादी 1 मिलियन से अधिक है‚ जबकि जयपुर और बंगलौर शहरों में लगभग 100‚000 का अनुमान लगाया गया है। कराची अपनी मातृभूमि के बाहर पश्तूनों के सबसे बड़े समुदाय का घर है। कतर (Qatar) में जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय (Georgetown University) के अनातोल लिवेन (Anatol Lieven) ने 2021 में लिखा था‚ कि पश्तूनों द्वारा शहर को बसाने के कारण‚ “कराची दुनिया का सबसे बड़ा पश्तून शहर हो सकता है।” पश्तून संस्कृति ज्यादातर पश्तूनवाली (Pashtunwali) और पश्तो (Pashto) भाषा के उपयोग पर आधारित है। पूर्व-इस्लामी परंपराएं‚ जो 330 ईसा पूर्व में सिकंदर की फ़ारसी साम्राज्य की हार से जुड़ी थीं‚ वह संभवतः पारंपरिक नृत्यों के रूप में बची रहीं‚ जबकि साहित्यिक शैली और संगीत‚ फ़ारसी परंपरा और स्थानीयकृत रूपों और व्याख्या के साथ जुड़े क्षेत्रीय संगीत वाद्ययंत्रों के प्रभाव को दर्शाते हैं। “कविता” पश्तून संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा है और यह सदियों से है। पश्तून संस्कृति देशी रीति-रिवाजों का एक अनूठा मिश्रण है तथा पश्चिमी या दक्षिणी एशिया के कुछ प्रभावित क्षेत्रों पर निर्भर करती है। अन्य मुसलमानों की तरह‚ पश्तून भी रमजान (Ramadan) और ईद अल-फितर (Eid al-Fitr) मनाते हैं। कुछ लोग नौरुज़ (Nouruz) भी मनाते हैं‚ जो कि पूर्व-इस्लामिक काल से संबंधित फ़ारसी नव वर्ष है। पश्तूनवाली (Pashtunwali‎) एक प्राचीन स्वशासी आदिवासी प्रणाली को संदर्भित करता है‚ जो समुदाय से लेकर व्यक्तिगत स्तर तक पश्तून जीवन के लगभग सभी पहलुओं को नियंत्रित करता है। पश्तूनवाली के इन बुनियादी नियमों का पालन कई पश्तूनों द्वारा किया जाता है‚ खासकर ग्रामीण इलाकों में। एक अन्य प्रमुख पश्तून संस्था ‘लोया जिरगा’ (loya jirga) या निर्वाचित बुजुर्गों की ‘ग्रैंड काउंसिल’ (grand council) है। जनजातीय जीवन में अधिकांश निर्णय जिरगा के सदस्यों द्वारा किए जाते हैं‚ जो अधिकार की मुख्य संस्था रही है‚ जिसे बड़े पैमाने पर समतावादी पश्तून स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं। अधिकांश पश्तून अपनी मातृभाषा के रूप में पश्तो (Pashto) का उपयोग करते हैं‚ माना जाता है कि वे भारत-ईरानी भाषा परिवार से संबंधित हैं‚ और 60 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती है। यह पश्तो-अरबी लिपि में लिखा गया है और इसे दो मुख्य बोलियों‚ दक्षिणी “पश्तो” और उत्तरी “पख्तो” में विभाजित किया गया है। इस भाषा की उत्पत्ति प्राचीन है‚ और यह विलुप्त हो चुकी भाषाओं जैसे कि अवेस्तान (Avestan) और बैक्ट्रियन (Bactrian) से समानता रखती है। पश्तो में फ़ारसी और वैदिक संस्कृत जैसी पड़ोसी भाषाओं से शब्दावली उधार लेने की प्राचीन विरासत हो सकती है। आधुनिक उधार मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा से आते हैं। अपने क्षेत्र के इस्लामीकरण से पहले‚ यह क्षेत्र विभिन्न मान्यताओं और पंथों का घर हुआ करता था‚ जिसके परिणामस्वरूप अक्सर प्रमुख धर्मों के बीच तालमेल होता था‚ जैसे; पारसी धर्म‚ बौद्ध धर्म या ग्रीको-बौद्ध धर्म‚ प्राचीन ईरानी धर्म‚ हिंदू धर्म और ज़ूनिज़्म। काबुल का खलज‚ आधुनिक घिलजी पश्तूनों का पूर्वज माना जाता है‚ अग्नि देवता अतर जैसे विभिन्न स्थानीय प्राचीन ईरानी देवताओं की पूजा करते थे। गांधार का ऐतिहासिक क्षेत्र प्रमुख रूप से हिंदू और बौद्ध हुआ करता था। बौद्ध धर्म‚ अपने अद्वितीय समकालिक रूप में‚ समकालीन अफगानिस्तान के पूरे क्षेत्र में भी आम था‚ लोग बौद्ध धर्म के संरक्षक थे‚ लेकिन फिर भी स्थानीय ईरानी देवताओं जैसे; अहुरा मज़्दा (Ahura Mazda)‚ लेडी नाना (Lady Nana)‚ अनाहिता या मिहर (मिथरा) (Anahita or Mihr (Mithra)) की पूजा करते थे।

संदर्भ:
https://bit.ly/30lOqbi
https://bit.ly/3aDjHbP
https://bit.ly/3aDWbLG

चित्र संदर्भ:
1.भारत में पश्तून बच्चों का समूह (wikimedia)
2.एक पश्तून सज्जन (Joshua Weissman CC)