कहा जाता है की “समय से बलवान कुछ भी नहीं होता" वास्तव में इस कहावत को इस प्रकार
कहना चाहिए की “समय से बलवान और मूल्यवान कुछ भी नहीं होता”।
मनुष्य के अपने हजारों वर्षों के विकास में लगभग सभी साधनों की खोज, मनोरंजन के
अलावा अपने बेशकीमती समय को बचाने के लिए ही की है, और इस संदर्भ में पहिये की
खोज अपने आप में क्रांतिकारी साबित हुई। समय बचाने के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग करने
से शुरू हुआ इंसान, आज तेज़ रफ़्तार मेट्रों में सफर करने लगा है।
आज जबकि भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर (automobile sector), आर्थिक मंदी और
बिक्री में कमी जैसी परेशानियों से जूझ रहा है। लेकिन इस बीच आश्चर्यजनक रूप से देशभर
में मेट्रों मार्गों के निर्माण कार्यों में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। जनगढ़ना अनुमान के
अनुसार वर्ष 2030 तक देश की आधीा आबादी शहरों रहने लग जाएगी, अतः भारत को और
भी अधिक मेट्रो का विस्तार करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में हमारे देश में 650 किमी मेट्रो रेल लाइनें हैं, और निरंतर बढ़ती शहरी आबादी के
मद्देनज़र सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में विभिन्न शहरों में 600 किमी और तैयार
करने का है। साथ ही 1,000 किलोमीटर के निर्माण के प्रस्ताव पर भी विचार चल रहा है।
दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना महामारी के बाद लगे लॉकडाउन से
पहले, दिल्ली मेट्रों में दैनिक रूप से औसत यात्रियों की संख्या लगभग 57 लाख थी। हालाँकि
महामारी के बाद सामजिक दूरी के मानदंडों के कारण, यह संख्या घटकर लगभग 10 लाख
यात्री प्रतिदिन हो गई है। दिल्ली में मेट्रो ट्रेनें सुबह छह बजे से रात करीब 11 बजे तक चलती
हैं।
1863 में लंदन में फरिंगडन (Farringdon) और पैडिंगटन (Paddington) के बीच पहली
भूमिगत रेलवे खुलने के बाद से, मेट्रो आधुनिक दुनिया में बड़े पैमाने पर परिवहन के सबसे
महत्वपूर्ण साधनों में से एक बन गई है। दुनिया भर के लगभग हर बड़े शहर का अपना मेट्रो
नेटवर्क है, जिसमें यात्रियों को काम पर आने और जाने के लिए हर दिन लंबी कतारों में
लगना पड़ता है। जिसमे कि पीक समय में ट्रेन की निरंतरता (frequency) दो मिनट 44
सेकेंड और नॉन-पीक आवर्स (non-peak hours) में 10 मिनट तक होती है। वर्तमान में 10
भारतीय शहरों में चमकदार, वातानुकूलित और यकीनन विश्व स्तरीय मेट्रो ट्रेनें चल रही हैं।
जिनमें दिल्ली, गुड़गांव, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोच्चि, कोलकाता, चेन्नई, जयपुर और
लखनऊ शामिल हैं।
हमारे शहर मेरठ में भी मेट्रो रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (Rapid Transit System) प्रस्तावित
है। इस परियोजना का अध्ययन जून 2015 में राइट्स द्वारा पूरा कर लिया गया था। चूंकि
सरकार ने मेरठ मेट्रो की लाइन 1 को आरआरटीएस (RRTS) में विलय कर दिया है, अतः
आरआरटीएस परियोजना के साथ 2025 के आसपास पूरा होने की संभावना है। नागपुर,
नवी मुंबई, अहमदाबाद/गांधीनगर और पुणे में ही जल्द ही शुरू होने की संभावना है। ये
सभी मेट्रों स्टेशन आधुनिक हैं, टिकटिंग और यात्री नियंत्रण प्रणाली आधुनिक हैं, यात्री
सूचना प्रणाली आधुनिक हैं, और ये सभी दक्षता और अनुशासित पालन के साथ काम करते
हैं।
दिल्ली मेट्रों में प्रतिदिन 57 लाख से भी अधिक यात्रियों के सफर करने के बावजूद, यहां की
जनसँख्या सड़कों पर यातायात जाम और शहर भारी वाहनों के प्रदूषण से ग्रस्त है। बेंगलुरू
की नम्मा मेट्रो की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही है। मेट्रो परिवहन के संदर्भ में अंतिम
मील कनेक्टिविटी ("last mile connectivity) भी एक बड़ी समस्या है। दरअसल
परिवहन भाषा में, "अंतिम मील कनेक्टिविटी" का अर्थ लोगों को रेलवे स्टेशन, बस
डिपो या मेट्रो स्टेशन जैसे परिवहन केंद्र से उनके अंतिम गंतव्य या इसके विपरीत
तक ले जाना है। परतुं यह भी एक बड़ा अपवाद है की शहरों की भीड़ में किसी भी
मेट्रो स्टेशन पर पहुंचना अथवा स्टेशन से घर पहुंचना बेहद मुश्किल काम रहता
है। बेंगलुरु के चुनिंदा मेट्रो स्टेशनों में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (World Resource
Institute) द्वारा किए गए अंतिम मील कनेक्टिविटी पर किए गए एक सर्वेक्षण से
पता चला है कि, 63 फीसदी लोगों ने मेट्रो स्टेशन तक पहुंचने के लिए बस का
इस्तेमाल किया, जबकि शेष 27 फीसदी लोगों ने पैदल चलकर, साइकल, ऑटो
अथवा निजी कारों का इस्तेमाल किया। हालांकि लोग इससे संतुष्ट नहीं थे मेट्रो
स्टेशन पहुंचने वाले 65 प्रतिशत यात्रियों के अनुसार बस सेवा सुचारु नहीं थी। और
58 प्रतिशत ने यह माना की उन्हें आवश्यकता के समय ऑटो नहीं मिला। निजी
वाहन लाने वालों को पार्किंग की समस्या का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन
इस बीच ई-रिक्शा दिल्ली के कई मोहल्लों में लास्ट-मील कनेक्टिविटी के लिए
एक किफायती और तुलनात्मक रूप से तेज़ मोड के रूप में उभरा है। स्कूल ऑफ
प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (School of Planning and Architecture) (एसपीए)
दिल्ली द्वारा किए गए दिल्ली मेट्रो उपयोगकर्ताओं के बीच अंतिम-मील
कनेक्टिविटी के एक सर्वेक्षण में, यह पाया गया कि जो लोग सुबह घर से मेट्रो
तक साइकिल या ऑटो रिक्शा लेते थे, वे शाम को ऐसा नहीं करते थे। क्यों की वे
शाम को कम जल्दी में होते हैं साथ ही अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए उनका
अतिरिक्त खर्च भी बच जाता है हालांकि सर्वेक्षण में शामिल महिलाओं और बुजुर्गों
ने शिकायत की कि यह बहुत लंबा था और पैदल चलना थका देने वाला था और
शोरपूर्ण और प्रदूषित वातावरण भी एक अतिरिक्त समस्या है।
महामारी के साथ ही सेवाओं की बहाली के बाद मेट्रों में सफर को सुरक्षित बनाए रखने के
लिए, सभी कदम उठाए गए, जिनमे यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक
दूरी बनाए रखना, बिना नकद लेनदेन, टोकन की अनुमति नहीं है, और ऑफ-पीक घंटों के
दौरान अधिक ट्रेनें चलाना आदि जैसे महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं। मेट्रो की महत्ता को
समझते हुए देश में नई मेट्रो लाइनों का निर्माण भी प्रगति पर है। दिल्ली मेट्रों के तीसरे
चरण पर,मयूर विहार पॉकेट (Mayur Vihar Pocket) से त्रिलोकपुरी तक के शेष खंड पर
काम अब मार्च 2021 तक पूरा किया जाना है। हालांकि COVID-19 महामारी के दौरान
देशव्यापी तालाबंदी के प्रभाव के कारण इन दो हिस्सों के पूरा होने के कार्यक्रम को संशोधित
किया गया है। भूमिगत मेट्रो प्रवाह के लिए भी JICA (जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी)
ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया प्रगति पर है। इन लाइनों के लिए साइट पर काम की प्रगति भी
लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई थी। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (Center for
Science and Environment) के एक अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली मेट्रो, 10 किमी
की सवारी के लिए नौ वैश्विक शहरों में दूसरी सबसे महंगी थी। सेंटर फॉर साइंस एंड
एनवायरनमेंट (Center for Science and Environment) (सीएसई) के एक अध्ययन में
पाया गया है कि. पिछले साल किराए में बढ़ोतरी के बाद, दिल्ली मेट्रो दुनिया की दूसरी सबसे
महंगी सेवा बन गई है, जो एक यात्रा के लिए आधे अमेरिकी डॉलर से केवल कुछ कम चार्ज
करती है। वहीं "दुनिया भर के नौ महानगरीय शहरों में 10 किलोमीटर की यात्रा की लागत
आधे अमेरिकी डॉलर से भी कम है। देश की राजधानी दिल्ली में यात्री अपनी आय का
लगभग 14 प्रतिशत मेट्रो की सवारी पर खर्च करते हैं, जो वियतनाम के हनोई में यात्रियों
द्वारा खर्च किए जाने वाले केवल 25 प्रतिशत से कम है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि
पिछले साल किराए में बढ़ोतरी के कारण इस साल की संख्या की तुलना में सवारियों की
संख्या में भी 32 प्रतिशत की गिरावट आई है।
एड हौज विजिट साइट (Ad Hodge visit
site) द्वारा दिए गए अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में एक अकुशल दिहाड़ी मजदूर अपनी
आय का औसतन 8 प्रतिशत गैर-एसी बस में यात्रा करके, 14 प्रतिशत एसी बस के लिए और
22 प्रतिशत मेट्रो के लिए खर्च करता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि पिछले साल
किराए में बढ़ोतरी के कारण इस साल की संख्या की तुलना में सवारियों की संख्या में भी 32
प्रतिशत की गिरावट आई है। अध्ययन में कहा गया है कि पिछले साल की तुलना में 2018
में यात्रियों की संख्या में लगभग 4.2 लाख की गिरावट आई है।
संदर्भ
https://bit.ly/2Y5NYxd
https://bit.ly/3id4jH5
https://bit.ly/3EVY7gx
https://bit.ly/3kM4ZVS
https://bit.ly/3ick2X4
https://bit.ly/3zWDFbO
चित्र संदर्भ
1. स्टेशन पर खड़ी मेट्रो का एक चित्रण (indbiz)
2. मेट्रो स्टेशन की भीड़ को दर्शाता एक चित्रण (istock)
3. निर्माणाधीन मेट्रो मार्ग का एक चित्रण (youtube)
4. हुडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन पर अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी के लिए ई-रिक्शा को हरी झंडी दिखाते हुए नितिन गडकरी का एक चित्रण (wikimedia)
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