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कैंसर (Cancer) रोगों का एक समूह है‚ जिसमें शरीर के अन्य भागों में आक्रमण
करने या फैलने की क्षमता होती है‚ तथा असामान्य कोशिका वृद्धि शामिल होती
है। आधुनिक जीवन शैली के कारण हाल ही में कैंसर अधिक आम हो गया है। ये
सुसाध्य ट्यूमर (tumour) के विपरीत होते हैं‚ क्योंकि ट्यूमर फैलते नहीं हैं। कैंसर
के संभावित संकेतों तथा लक्षणों में‚ एक गांठ‚ असामान्य रक्तस्राव‚ लंबी खांसी‚
अस्पष्टीकृत वजन घटना तथा मल त्याग में बदलाव आदि शामिल हैं। हालांकि ये
लक्षण कैंसर का संकेत दे सकते हैं‚ लेकिन इनके अन्य कारण भी हो सकते हैं।
कैंसर के ऐसे 100 से अधिक प्रकार हैं‚ जो मनुष्यों को प्रभावित कर सकते हैं।
कैंसर से होने वाली लगभग 22% मौतों का कारण तंबाकू का सेवन है‚ तथा अन्य
10% मोटापे‚ खराब आहार‚ शारीरिक गतिविधि की कमी या अत्यधिक शराब पीने
के कारण हैं। अन्य कारकों में कुछ संक्रमण‚ आयनकारी विकिरण के संपर्क में
आना तथा पर्यावरण प्रदूषण शामिल हैं।
विकासशील देशों में‚ 15% कैंसर
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (Helicobacter pylori)‚ हेपेटाइटिस बी (hepatitis B)‚
हेपेटाइटिस सी (hepatitis C)‚ मानव पेपिलोमावायरस संक्रमण (human
papillomavirus infection)‚ एपस्टीन-बार वायरस (Epstein–Barr virus) और
मानव इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) (human immunodeficiency
virus (HIV)) जैसे संक्रमणों के कारण होते हैं। ये कारक‚ कम से कम आंशिक
रूप से‚ एक कोशिका के जीन को बदलकर कार्य करते हैं। आमतौर पर‚ कैंसर के
विकसित होने से पहले‚ आवश्यक रूप से कई आनुवंशिक परिवर्तन होते हैं।
लगभग 5-10% कैंसर‚ वंशानुगत आनुवंशिक दोषों के कारण होते हैं।
कुछ संकेतों‚ लक्षणों तथा स्क्रीनिंग परीक्षणों (screening tests) से कैंसर का पता
लगाया जा सकता है। इसके बाद आमतौर पर मेडिकल इमेजिंग (medical
imaging) द्वारा इसकी और जांच की जाती है तथा बायोप्सी (biopsy) द्वारा
इसकी पुष्टि की जाती है।
कैंसर प्राचीन काल से ही मानव जाति द्वारा जाना जाता था । प्राचीन मिस्र
(Egypt) में‚ मानव ममियों (Mummies) में जीवाश्मित अस्थि ट्यूमर के बीच
कैंसर के कुछ शुरुआती प्रमाण पाए गए हैं‚ तथा इसके संदर्भ प्राचीन हस्तलिपियों
में पाए जाते हैं। हालांकि‚ तब कैंसर शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था।
लेकिन इस बीमारी का सबसे पुराना विवरण लगभग 3000 ईसा पूर्व का है तथा
मिस्र से है। इसे एडविन स्मिथ पेपिरस (Edwin Smith Papyrus) कहा जाता है
तथा यह ट्रॉमा सर्जरी (trauma surgery) पर मिस्र की एक प्राचीन पाठ्यपुस्तक
के हिस्से की एक प्रतिलिपि है। यह स्तन के ट्यूमर (tumors) या अल्सर
(ulcers) की 8 स्थितियों का वर्णन करता है‚ जिनका इलाज “फायर ड्रिल” (fire
drill) नामक उपकरण के साथ सावधानी से किया गया था। विवरण में यह भी
कहा गया है कि‚ इस स्थिति का कोई इलाज नहीं है। केवल उपशामक उपचार
(palliative treatment) था।
कैंसर शब्द की उत्पत्ति 460-370 ईसा पूर्व हुई थी। इस रोग को सर्वप्रथम यूनानी
चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) ने कैंसर कहा था। लेकिन वह निश्चित रूप
से इस बीमारी की खोज करने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे। उन्हें “चिकित्सा का
जनक” माना जाता है। हिप्पोक्रेट्स ने गैर-अल्सर (non-ulcer) बनाने और अल्सर
बनाने वाले ट्यूमर का वर्णन करने के लिए कार्सिनो (carcinos) और कार्सिनोमा
(carcinoma) शब्द का इस्तेमाल किया। ग्रीक (Greek) में इसका मतलब केकड़ा
(crab) होता है। इस प्रकार ग्रीक में कैंसर को “कार्किनोस” (“karkinos”) कहा
गया। बाद में 28-50 ईसा पूर्व‚ रोमन चिकित्सक सेल्सस (Celsus) ने ग्रीक शब्द
का कैंसर में अनुवाद किया। 130-200 ईस्वी में एक अन्य रोमन चिकित्सक गैलेन
(Galen) था‚ जिसने ट्यूमर का वर्णन करने के लिए ऑन्कोस (oncos) शब्द का
इस्तेमाल किया था। इसलिए कैंसर के अध्ययन को ऑन्कोलॉजी (oncology) कहा
जाता है।
भारत के प्राचीन आयुर्वेद और सिद्ध हस्तलिपियों में कैंसर जैसी बीमारियों और
उपचारों का उल्लेख है। भारत के मध्ययुगीन साहित्य में कैंसर का उल्लेख शायद
ही कभी हुआ हो। लेकिन भारत से कैंसर के स्थितियों के विवरण आना 17वीं सदी
में शुरू हुए थे। 1860 और 1910 के मध्य‚ पूरे भारत में‚ भारतीय चिकित्सा सेवा
के डॉक्टरों द्वारा कई ऑडिट तथा कैंसर केस सीरीज़ प्रकाशित की गईं। नाथ
(Nath) और ग्रेवाल (Grewal) द्वारा किए गए ऐतिहासिक अध्ययन में‚ भारत भर
के विभिन्न मेडिकल कॉलेज अस्पतालों से‚ 1917 और 1932 के बीच शव
परीक्षण‚ विकृति विज्ञान और नैदानिक डेटा का उपयोग किया गया‚ ताकि यह
पुष्टि हो सके कि कैंसर मध्यम आयु वर्ग तथा बुजुर्ग भारतीयों में मृत्यु का एक
सामान्य कारण था। उस समय के मूल निवासियों की कम जीवन प्रत्याशा के
परिणामस्वरूप भारत में कैंसर का बोझ स्पष्ट रूप से कम था। 1946 में‚ स्वास्थ्य
सुधारों पर एक राष्ट्रीय समिति ने सभी भारतीय राज्यों में बढ़ते कैंसर के बोझ के
निदान और प्रबंधन के लिए पर्याप्त सुविधाओं के निर्माण की सिफारिश की।
मुंबई जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्री के रुझानों से पता चला कि 1964 से
2012 तक कैंसर के रोगियों में चार गुना वृद्धि हुई है। भारत में सार्वजनिक कैंसर
सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं‚ तथा निजी कैंसर देखभाल सुविधाओं की कमी नहीं है।
कुछ लोगों ने कैंसर को रोकने‚ ठीक करने या नियंत्रित करने के लिए असुरक्षित
रोगियों को अप्रमाणित उपचार बेचकर इस स्थिति का फायदा उठाया है। कैंसर में
हो रही वृद्धि के कारण‚ सभी सार्वजनिक कैंसर उपचार सुविधाएं रोगियों से भरी
हुई हैं‚ जिसके परिणामस्वरूप भारत की कैंसर समस्या को महामारी या सुनामी
कहा जा रहा है। कैंसर में वृद्धि के कारण रहस्यपूर्ण हैं‚ लेकिन लोकप्रिय मीडिया
और आम जनता‚ नियमित रूप से पारंपरिक भारतीय संस्कृति तथा पश्चिमीकरण
के क्षरण को दोष देती है।
ऐतिहासिक रूप से‚ 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इंग्लैंड (England) में भी इसी
तरह की स्थिति उत्पन्न हुई थी‚ जिसके कारण किंग (King) और न्यूशोल्मे
(Newsholme) ने कैंसर से होने वाली मौतों में खतरनाक वृद्धि की व्याख्या करने
के लिए “कैंसर की कथित वृद्धि” (“On the Alleged Increase of Cancer”)
शीर्षक से एक पेपर प्रकाशित किया था। इस अध्ययन के बाद बहुत चर्चा और
बहस हुई‚ तथा 1907 में‚ बैशफोर्ड (Bashford) ने एक लेख प्रकाशित किया‚
जिसका शीर्षक था‚ “कैंसर की घटनाओं में वास्तविक और स्पष्ट अंतर” (“Real
and Apparent Differences in the Incidence of Cancer”)। संयुक्त राज्य
अमेरिका (United States) और कनाडा (Canada) में भी इसी तरह के कदम
उठाए गए थे।
कैंसर के विकास के जोखिम को कम किया जा सकता है। जैसे: धूम्रपान न करने‚
स्वस्थ वजन बनाए रखने‚ शराब का सेवन सीमित करने‚ ताजी सब्जियां‚ फल
तथा साबुत अनाज खाने‚ कुछ संक्रामक रोगों के खिलाफ टीकाकरण‚ प्रक्रमणित
मांस तथा लाल मांस की खपत को सीमित करना‚ और प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश के
संपर्क को सीमित करना आदि कारकों का अनुसरण तथा स्वस्थ्य जीवन शैली
अपनाकर कैंसर के विरुद्ध लड़ा जा सकता है। स्क्रीनिंग के माध्यम से जल्दी पता
लगाना सर्वाइकल (cervical) तथा कोलोरेक्टल कैंसर (colorectal cancer) के
लिए उपयोगी है। स्तन कैंसर की जांच के लाभ अभी भी विवादास्पद हैं। कैंसर का
उपचार अक्सर विकिरण चिकित्सा‚ शल्य चिकित्सा‚ रसायन चिकित्सा और लक्षित
चिकित्सा के संयोजन से किया जाता है। दर्द और लक्षण प्रबंधन‚ देखभाल का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्नत बीमारी वाले लोगों में प्रशामक देखभाल विशेष रूप से
महत्वपूर्ण होता है। उपचार की शुरुआत में‚ कैंसर के प्रकार और बीमारी की सीमा
पर ही‚ व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना निर्भर करती है। विकसित दुनिया में‚
रोग-निदान के दौरान 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में‚ पांच साल की जीवित रहने
की दर औसतन 80% है। संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) में कैंसर के
लिए‚ औसत पांच साल की जीवित रहने की दर 66% है।
संदर्भ:
https://cnn.it/3nRWBpv
https://bit.ly/3lDIiSO
https://bit.ly/39ou6Ya
https://bit.ly/3hR0ZS6
https://bit.ly/2ZgH8oS
चित्र संदर्भ
1. कंप्यूटर पर कैंसर की जाँच करते वैज्ञानिकों का एक चित्रण (flickr)
2. तंबाकू से फेफड़ों पर प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (ltkcdn)
3. जीभ के अल्सर को संदर्भित करता एक चित्रण (medicalnewstoday)
4. 2016 में तंबाकू के कारण कैंसर से होने वाली मौतों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कैंसर से ठीक हो चुके मरीज का एक चित्रण (healthline)
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