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गांधीजी का एक बेहद प्रसिद्ध उद्धरण है, "जीवन यह सोचकर जियो की आप कल ही मर जायगें
और शिक्षा इस प्रकार से ग्रहण करों की आप हमेशा जीवित रहेंगे" अर्थात उनके कहने का तात्पर्य
था, की हमें अपने जीवन को क्षीण मानना चाहिए, और जब तक शरीर में प्राण का एक भी कतरा है,
तब तक हमें सीखते रहने चाहिए। किंतु वर्तमान में कोरोना महामारी ने हमारे सामने ऐसी
अनिश्चित परिस्थितियां खड़ी कर दी हैं की, शिक्षा ग्रहण करने को आतुर छात्र-छात्राएं चाहकर भी
विद्यालय नहीं जा सकती। हालांकि जैसा की मानवता के साथ अक्सर हुआ है, हमने जीवन के
अधिकांश संकटों का या तो समाधान निकाल लिया, या फिर उन संकटों में ही संभावनाओं को
तलाश लिया।
कोविड -19 महामारी ने पूरी दुनियां में ऐसा वैश्विक संकट खड़ा कर दिया की, आज न केवल भारत
बल्कि दुनियाभर के विद्यार्थी, स्कूलों में अपनी भौतिक उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तरस गए हैं।
महामारी की पहली और दूसरी लहर ने जिस प्रकार भारत की जनसंख्या को प्रभावित किया है,
इससे यह अंदाजा लगाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है की, लोग तीसरी लहर को लेकर कितने डरे
हुए हैं। 2019 से शुरू हुई महामारी के कारण दुनियाभर की सरकारों को अनिश्चित काल के लिए
विद्यालयों और सभी प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों को मजबूरन बंद करना पड़ा। चूँकि कोरोना
महामारी एक-दूसरे से भौतिक रूप से संपर्क में आने से फैलती है, जिस कारण सरकारों को यह
कठोर कदम उठाना भी जरूरी था।
यूनेस्को (UNESCO) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में महामारी के प्रकोप से विश्व स्तर पर
900 मिलियन से अधिक छात्र प्रभावित हुए। हालाँकि कोरोना महामारी ने केवल शिक्षा क्षेत्र को ही
प्रभावित नहीं किया, बल्कि कुछ बेहद ज़रूरी सेवाओं को छोड़कर, देशभर में सभी प्रकार की सेवाओं
और उद्पादन क्षेत्रों को पूरी तरह बंद कर दिया गया। परंतु “शिक्षा के क्षेत्र में पाबंदी लगाने से भले ही
आज हम देश के बच्चों को सुरक्षित रख सकते हैं, लेकिन इससे देश का भविष्य घोर अंधकार में जा
सकता है”, इसी बात ने दुनियाभर की सरकारों को दोहरे संकट में डाल दिया। किंतु जैसा की हमने
शुरू में कहा था "हर समस्या अपने साथ कोई न कोई संभावना भी लेकर आती है " और ठीक यही
शिक्षा क्षेत्र में हुआ।
महामारी के दौरान जहां, विद्यार्थियों का अपने घरों से निकलना असंभव था. लेकिन इसी बीच
ऑनलाइन शिक्षा (E-Learning) के विभिन्न माध्यमों ने शिक्षा क्षेत्र में एक क्रन्तिकारी परिवर्तन
ला दिया। सरकारी निर्देशों के कुछ दिनों के भीतर, विश्वविद्यालय के कई शिक्षकों और सहयोगियों
ने उपलब्ध वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग अनुप्रयोगों (video-conferencing applications) और
प्लेटफार्मों के सभी रूपों की खोज शुरू कर दी। विश्वविद्यालय द्वारा उपयोग किए जाने वाले मूडल
प्लेटफॉर्म के अलावा GoToMeeting, Skype, WhatsApp, ezTalk, ईमेल, BlueJeans, और
Zoom जैसे कई प्लेटफॉर्म उभरकर सामने आये, और विद्यार्थियों का दूसरा स्कूल बन गए।
हालांकि शिक्षा ग्रहण करने के यह माध्यम भौतिक न होकर आभासी थे, किंतु इन्होने महामारी के
बीच देश में शिक्षा की निरंतरता को जारी रखने तथा ज्ञान के प्रचार में निःसंदेह सबसे अहम्
भूमिका निभाई। ऑनलाइन शिक्षा माध्यमों ने लगभग ख़त्म हो चुके शिक्षा क्षेत्र में संजीवनी बूटी
का काम किया।
भारत में इस बीच शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखा गया, टेलीविज़न पर कक्षा के अनुसार
शैक्षणिक चैनलों और कार्यक्रमों का प्रसारण ,शिक्षण संस्थानों और सरकार उठाये गए सबसे
सराहनीय क़दमों में से एक साबित हुआ। यह देश का सौभाग्य था की यहां के कई क्षेत्रों में इंटरनेट
और संचार के अन्य माध्यमों की व्यवस्था महामारी के शुरू होने से पहले ही सुनिश्चित की गई थी,
हालांकि देश के कई दुर्गम क्षेत्रों में अब ही मूल संचार व्यवस्था का आभाव है।
इंटरनेट और अन्य संचार माध्यमों की उपलब्धता के बावजूद कई जगहों पर ऑनलाइन शिक्षा,
अभी भी काला अक्षर भैंस बराबर के लोकप्रिय मुहावरे को सार्थक कर रही है। क्यों की विभिन्न
शैक्षणिक विभागों और संकायों को अपनी शिक्षाओं को ऑनलाइन स्थानांतरित करने के लिए कहा
जा रहा है, चूँकि कई शिक्षकों अथवा छात्रों के लिए यह सब एक नया अनुभव है, इसलिए तकनीक के
साथ बेहतर अनुभव के आभाव में वे, ऑनलाइन शिक्षा की प्रक्रिया को समझ नहीं पा रहे हैं, अथवा
मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। साथ ही बिजली आपूर्ति, ऑनलाइन संचार प्लेटफार्मों के लिए
लाइसेंस, इंटरनेट एक्सेस की मान्यता और प्रावधान भी एक नई समस्या खड़ी कर रहे हैं। भारत के
320 मिलियन शिक्षार्थियों में से एक महत्वपूर्ण प्रतिशत (ग्रामीण, गरीब और पिछड़े क्षेत्र के
विद्यार्थियों) के पास डिजिटल सुविधाओं तक उतनी पहुंच नहीं है, जितनी की उनके शहरी, सक्षम
और सुविधा सम्पन्न साथी छात्रों के पास है। यह असमानता शहरी और ग्रामीण भारत के बीच
डिजिटल विभाजन से और अधिक जटिल हो जाती है, जिससे सीखने की गुणवत्ता और निरंतरता के
साथ समस्याएं पैदा होती हैं।
ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करने के लिए कई स्थानों में छात्रों के पास कंप्यूटर, लैपटॉप और टैबलेट
जैसी आधारभूत सुविधाओं का भी अभाव है। वही कई बार सभी सुविधाओं के बावजूद बहुत से छात्र
कक्षा चर्चा में शामिल नहीं होते हैं, नतीजतन, कुछ ऑनलाइन कक्षाएं लंबी और कभी-कभी
तनावपूर्ण हो जाती हैं। विद्यालयों को बंद करने और पारंपरिक कक्षाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर
स्थानांतरित करने का निर्णय न केवल बच्चों में सीखने की असमानता को बढ़ा रहा है, बल्कि बच्चों
को भौतिक शिक्षा के लाभों से भी वंचित कर रहा है।
ज्ञान के अलावा , स्कूली शिक्षा का आभाव बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण को भी लंबे समय
प्रभावित करेगा। अपने स्कूली जीवन का अधिकांश समय, विद्यालयों की इमारतों में अपने
पसंदीदा अध्यापकों और सहपाठियों के बीच बिताने वाले छात्रों को, ऑनलाइन शिक्षा पद्धति
बोझिल लग रही है। यह स्वीकार्य भी है, क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जिसे अपने जन्म
के साथ ही लोगों के साथ भौतिक रूप से उपस्थित होने की आदत है। अतः विद्यार्थियों के समुचित
विकास के लिए यह बेहद ज़रूरी है की महामारी जल्द से जल्द समाप्त हो और सभी विद्यालय
सुचारु रूप से खुलने लगें। हालांकि हमें ऑनलाइन शिक्षा के अभूतपूर्व और अनगिनत लाभों को भी
नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए। सोचिये यदि ऑनलाइन और पारंपरिक शिक्षा आपस में बेहतर
तालमेल बिठाकर चलने लगे, तो यह मनुष्य के शैक्षणिक इतिहास में सबसे बड़ी क्रांति साबित हो
सकती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3kYSSDv
https://bit.ly/3neqKz1
https://bit.ly/3jNkM62
https://bit.ly/3h9VUDI
चित्र संदर्भ
1. स्कूल का बैग लेकर खिड़की पर खडे छोटे बच्चे का एक चित्रण (englishtribuneimages)
2. बच्चों के बिना खली पड़ी कक्षाओं का एक चित्रण (t3.ftcdn)
3. लैपटॉप पर शिक्षा लेते बच्चे एक चित्रण (flickr)
4. ग्रामीण क्षेत्रों में खेलते बच्चों का एक चित्रण (flickr)