Post Viewership from Post Date to 24-Sep-2021 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2412 145 2557

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

पतंगबाजी में गलत मांझे का चुनाव इंसान और पक्षी के लिए घातक साबित हो सकता है

मेरठ

 25-08-2021 09:19 AM
हथियार व खिलौने

पतंग उड़ाना, नि:संदेह एक किफायती और बेहद रोमांचक खेलों में से एक हैं। आधुनिक युग में समाज में तकनीक के एकाधिकार के बावजूद, त्योहारों और विभिन्न अवसरों पर पतंगबाज़ी की लोकप्रियता देखते ही बनती है। किंतु वजन में बेहद हल्की मानी जाने वाली यह सुंदर पतंगे, वास्तविक जीवन में कभी न भरने वाले भारी घाव भी दे सकती हैं।
दरअसल पतंग उड़ाने में प्रयोग किया जाने वाला धागा, जिसे मांजा भी कहा जाता है। यह मांझा उड़ाने वाले और दर्शक अथवा सड़क पर चलने वाले किसी भी आम नागरिक के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है। प्रतिद्वंद्वी की पतंग की डोरी को काटने के लिए इस धागे को कुचले हुए कांच, धातु और अन्य तेज पदार्थों के साथ लेपित जा सकता है, जो पतंग उड़ाने वाले के हाथ तथा पतंगबाज़ी देखने वाले के गले को भी काट सकता है। इससे सम्बंधित कई दुर्घटनाएं, समय-समय पर हमारे सामने आ चुकी हैं।
एक वास्तविक घटना में अडुगोडी (Adugodi) में विल्सन गार्डन (Wilson Garden) निवासी मल्लिकार्जुन केएच (Mallikarjun KH) सड़क पर लटके पतंग के तार (मांझे) में फंस गए, जिस कारण उनकी गर्दन और उंगलियों पर गहरे घाव हो गए। उन्होंने सड़क सुरक्षा हेतु अपने सिर को हेलमेट द्वारा पूरी तरह से सुरक्षित किया हुआ था। किंतु बावजूद इसके तार ने उसका गला काट दिया। वे बेहद बुरी तरह घायल हो गए , तथा उन्हें तुरंत अस्पताल भर्ती किया गया। बिजली के तारों में फसने पर यह चीनी माझा करंट लगने का भी कारण बनता है। अतः इसके खतरों को समझते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal (NGT) ने 2017 में सिंथेटिक (synthetic) और नायलॉन (nylon) मांझे के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीँ दिल्ली सरकार ने मांझे के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगा दिया है, अब केवल सूती धागे से निर्मित मांझे की पतंग उड़ाने की अनुमति है।
प्रतिबंधित मांजे का उपयोग मोटर चालकों को खतरे में डाल सकता है, और इसके परिणामस्वरूप विकलांगता या मृत्यु भी हो सकती है। साथ ही मांझे के कारण हर साल सैकड़ों पक्षी घायल हो जाते हैं। कर्नल डॉ नवाज शरीफ, महाप्रबंधक और मुख्य पशु चिकित्सक, पीपल फॉर एनिमल्स (People for Animals) के अनुसार, “जब से दुनियाभर में महामारी की मार पड़ी है, तब से पक्षियों की चोटों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। जहां आमतौर पर, पहले हमें एक या दो रेस्क्यू कॉल (rescue call) आते थे, लेकिन दूसरी लहर के दौरान ऐसे बचाव कॉल बढ़कर प्रतिदन 10 हो गए।
महामारी के दौरान लोग घरों में ही बंद रह गए, जिस कारण पतंग की बिक्री में भारी वृद्धि देखी गई। सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के बाद यह बिक्री तेज़ गति से बड़ी है। पतंग विक्रेता अल्ताफ का कहना है कि, जहां एक मीटर कॉटन मांजे की कीमत 90 पैसे है, जबकि चीनी नायलॉन मांजे की कीमत केवल 35 पैसे है। अतः जानलेवा नायलॉन मांजा सस्ता होने के कारण बेतहाशा लोकप्रिय हो गया है। चयनीज़ धागे से आप यह नहीं समझिएगा कि, यह केवल चीन से आयत होता है। अपितु 'चीनी' मांझा का नाम दो कारणों से पड़ा है। पहला नायलॉन के धागे के उपयोग के कारण इसने पारंपरिक सूती धागे की जगह ले ली है। क्यों की उच्च तन्यता ताकत के कारण नायलॉन के धागे को तोड़ना लगभग असंभव है। दूसरा, नायलॉन के धागे की कीमत कपास की तुलना में तुलनात्मक रूप से सस्ती है। प्रायः जो कुछ भी सस्ता होता है चाहे दीया हो, दिवाली त्योहार के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले रंगीन बल्बों की एक श्रृंखला या खिलौने सभी को चीनी माल का नाम दे दिया जाता है, जो कई मायनों में तर्क संगत भी है। आज जहां कपास मांजे की 12 रीलों की कीमत लगभग 1,150 रुपये और उससे अधिक है, जबकि चीनी मांजे की 12 रीलों की कीमत लगभग मात्र 350 से 500 रुपये है। जानकारों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में चीनी मांझे की मांग कई गुना बढ़ गई है। पतंग उड़ाने वाले, दुकानदारों से केवल चीनी मांझे के लिए पूछते हैं क्योंकि यह सूती मांजे से सस्ता है, और इसे तोड़ना भी बेहद मुश्किल है। इस पर 'मसाला' लेपने के बाद, चीनी मांजा पारंपरिक मांझे की तुलना में मजबूत भी हो जाता है।
प्रतिबंधों के बावजूद अब तक यह बाजार में आसानी से उपलब्ध है, और दिल्ली में पतंग विक्रेताओं के पास पर्याप्त स्टॉक है। भारत के विभिन्न हिस्सों में अनेक अवसरों पर पतंग उड़ाना परंपरा का हिस्सा माना जाता है, लेकिन जहां पहले, पतंग उड़ाने वाले सूती धागे के मांझे का इस्तेमाल करते थे, जो चीनी मांझे के विपरीत आसानी से टूट जाता है।
वहीं आजकल चीनी अर्थात नायलॉन के धागे का प्रयोग किया जाता है, जो अपनी उच्च तन्यता ताकत के कारण बेहद घातक साबित हो जाता है। इस मांझे के कारण या तो पक्षी मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं। अतः हम पतंगों से हुई दुर्घटनाओं के लिए परम्पराओं को दोष नहीं दे सकते। चूँकि ऐसे प्रावधान और कानून पहले से ही मौजूद हैं, जो पतंग निर्माण में नायलॉन के मांझे को प्रतिबंधित तो करते हैं, परंतु आज भी यह ऑनलाइन और बाज़ारों में खुले तौर पर बेचे जाते हैं। अतः इंसानों और निर्जीव पक्षियों को घायल अथवा मृत होने से बेचने के लिए इन प्रतिबंधों की सख्ती से निगरानी करने की भी आवश्यकता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3gsM9k2
https://bit.ly/386sUYV
https://bit.ly/3jbvrXP
https://bit.ly/3ykfGCA
https://bit.ly/3krgXmq
https://bit.ly/2WpFMqw
https://bit.ly/389e2c5
https://patangdori.com/

चित्र संदर्भ
1. नायलॉन के मांझों में उलझे पक्षी का एक चित्रण (flickr)
2. नायलॉन के मांझे को रंगीन और कांच का लेप किया जा रहा है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. पतंग सेनानी का एक चित्रण (wikimedia)
4. चिड़िया के पंखों में उलझे मांझे का एक चित्रण (youtube)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id