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पतंग उड़ाना, नि:संदेह एक किफायती और बेहद रोमांचक खेलों में से एक हैं। आधुनिक युग में
समाज में तकनीक के एकाधिकार के बावजूद, त्योहारों और विभिन्न अवसरों पर पतंगबाज़ी की
लोकप्रियता देखते ही बनती है। किंतु वजन में बेहद हल्की मानी जाने वाली यह सुंदर पतंगे,
वास्तविक जीवन में कभी न भरने वाले भारी घाव भी दे सकती हैं।
दरअसल पतंग उड़ाने में प्रयोग किया जाने वाला धागा, जिसे मांजा भी कहा जाता है। यह मांझा
उड़ाने वाले और दर्शक अथवा सड़क पर चलने वाले किसी भी आम नागरिक के लिए बेहद घातक
साबित हो सकता है। प्रतिद्वंद्वी की पतंग की डोरी को काटने के लिए इस धागे को कुचले हुए कांच,
धातु और अन्य तेज पदार्थों के साथ लेपित जा सकता है, जो पतंग उड़ाने वाले के हाथ तथा
पतंगबाज़ी देखने वाले के गले को भी काट सकता है। इससे सम्बंधित कई दुर्घटनाएं, समय-समय
पर हमारे सामने आ चुकी हैं।
एक वास्तविक घटना में अडुगोडी (Adugodi) में विल्सन गार्डन (Wilson Garden) निवासी
मल्लिकार्जुन केएच (Mallikarjun KH) सड़क पर लटके पतंग के तार (मांझे) में फंस गए, जिस
कारण उनकी गर्दन और उंगलियों पर गहरे घाव हो गए। उन्होंने सड़क सुरक्षा हेतु अपने सिर को
हेलमेट द्वारा पूरी तरह से सुरक्षित किया हुआ था। किंतु बावजूद इसके तार ने उसका गला काट
दिया। वे बेहद बुरी तरह घायल हो गए , तथा उन्हें तुरंत अस्पताल भर्ती किया गया।
बिजली के तारों में फसने पर यह चीनी माझा करंट लगने का भी कारण बनता है। अतः इसके
खतरों को समझते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal (NGT) ने 2017 में
सिंथेटिक (synthetic) और नायलॉन (nylon) मांझे के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीँ
दिल्ली सरकार ने मांझे के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगा दिया है, अब केवल सूती धागे से निर्मित
मांझे की पतंग उड़ाने की अनुमति है।
प्रतिबंधित मांजे का उपयोग मोटर चालकों को खतरे में डाल सकता है, और इसके परिणामस्वरूप
विकलांगता या मृत्यु भी हो सकती है। साथ ही मांझे के कारण हर साल सैकड़ों पक्षी घायल हो जाते
हैं। कर्नल डॉ नवाज शरीफ, महाप्रबंधक और मुख्य पशु चिकित्सक, पीपल फॉर एनिमल्स (People
for Animals) के अनुसार, “जब से दुनियाभर में महामारी की मार पड़ी है, तब से पक्षियों की चोटों
में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। जहां आमतौर पर, पहले हमें एक या दो रेस्क्यू कॉल (rescue call) आते
थे, लेकिन दूसरी लहर के दौरान ऐसे बचाव कॉल बढ़कर प्रतिदन 10 हो गए।
महामारी के दौरान लोग घरों में ही बंद रह गए, जिस कारण पतंग की बिक्री में भारी वृद्धि देखी
गई। सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के बाद यह बिक्री तेज़ गति से बड़ी है। पतंग विक्रेता
अल्ताफ का कहना है कि, जहां एक मीटर कॉटन मांजे की कीमत 90 पैसे है, जबकि चीनी नायलॉन
मांजे की कीमत केवल 35 पैसे है। अतः जानलेवा नायलॉन मांजा सस्ता होने के कारण बेतहाशा
लोकप्रिय हो गया है। चयनीज़ धागे से आप यह नहीं समझिएगा कि, यह केवल चीन से आयत होता
है। अपितु 'चीनी' मांझा का नाम दो कारणों से पड़ा है। पहला नायलॉन के धागे के उपयोग के कारण
इसने पारंपरिक सूती धागे की जगह ले ली है। क्यों की उच्च तन्यता ताकत के कारण नायलॉन के
धागे को तोड़ना लगभग असंभव है। दूसरा, नायलॉन के धागे की कीमत कपास की तुलना में
तुलनात्मक रूप से सस्ती है। प्रायः जो कुछ भी सस्ता होता है चाहे दीया हो, दिवाली त्योहार के
दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले रंगीन बल्बों की एक श्रृंखला या खिलौने सभी को चीनी माल का
नाम दे दिया जाता है, जो कई मायनों में तर्क संगत भी है। आज जहां कपास मांजे की 12 रीलों की
कीमत लगभग 1,150 रुपये और उससे अधिक है, जबकि चीनी मांजे की 12 रीलों की कीमत
लगभग मात्र 350 से 500 रुपये है। जानकारों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में चीनी मांझे की मांग
कई गुना बढ़ गई है। पतंग उड़ाने वाले, दुकानदारों से केवल चीनी मांझे के लिए पूछते हैं क्योंकि यह
सूती मांजे से सस्ता है, और इसे तोड़ना भी बेहद मुश्किल है। इस पर 'मसाला' लेपने के बाद, चीनी
मांजा पारंपरिक मांझे की तुलना में मजबूत भी हो जाता है।
प्रतिबंधों के बावजूद अब तक यह बाजार में आसानी से उपलब्ध है, और दिल्ली में पतंग विक्रेताओं
के पास पर्याप्त स्टॉक है। भारत के विभिन्न हिस्सों में अनेक अवसरों पर पतंग उड़ाना परंपरा का
हिस्सा माना जाता है, लेकिन जहां पहले, पतंग उड़ाने वाले सूती धागे के मांझे का इस्तेमाल करते
थे, जो चीनी मांझे के विपरीत आसानी से टूट जाता है।
वहीं आजकल चीनी अर्थात नायलॉन के धागे
का प्रयोग किया जाता है, जो अपनी उच्च तन्यता ताकत के कारण बेहद घातक साबित हो जाता है।
इस मांझे के कारण या तो पक्षी मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं। अतः हम पतंगों से हुई दुर्घटनाओं
के लिए परम्पराओं को दोष नहीं दे सकते। चूँकि ऐसे प्रावधान और कानून पहले से ही मौजूद हैं, जो
पतंग निर्माण में नायलॉन के मांझे को प्रतिबंधित तो करते हैं, परंतु आज भी यह ऑनलाइन और
बाज़ारों में खुले तौर पर बेचे जाते हैं। अतः इंसानों और निर्जीव पक्षियों को घायल अथवा मृत होने से
बेचने के लिए इन प्रतिबंधों की सख्ती से निगरानी करने की भी आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3gsM9k2
https://bit.ly/386sUYV
https://bit.ly/3jbvrXP
https://bit.ly/3ykfGCA
https://bit.ly/3krgXmq
https://bit.ly/2WpFMqw
https://bit.ly/389e2c5
https://patangdori.com/
चित्र संदर्भ
1. नायलॉन के मांझों में उलझे पक्षी का एक चित्रण (flickr)
2. नायलॉन के मांझे को रंगीन और कांच का लेप किया जा रहा है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. पतंग सेनानी का एक चित्रण (wikimedia)
4. चिड़िया के पंखों में उलझे मांझे का एक चित्रण (youtube)
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