पेशेवर संगीतकारों और डीजे (DJ) के आगमन से संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं भारतीय विवाह बैंड

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
18-08-2021 07:27 AM
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पेशेवर संगीतकारों और डीजे (DJ) के आगमन से संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं भारतीय विवाह बैंड

भारत में मेरठ तुरही जैसे पीतल और वायु उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक है। मेरठ में शादी समारोह में मुख्य रूप से उपयोग होने वाले तुरही का व्यापक रूप से निर्माण किया जाता है। तुरही पीतल से बना वाद्य यंत्र है जिसका उपयोग आमतौर पर संगीत की शास्त्रीय और जाज़ (Jazz) शैली में किया जाता है। 1500 ईसा पूर्व में इसका इस्तेमाल लड़ाई या शिकार के दौरान संकेत देने के लिए किया जाता था। संगीत वाद्ययंत्र के रूप में इनका इस्तेमाल 14वीं शताब्दी के अंत या 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में होने लगा। इसका उपयोग विभिन्न कला संगीत शैलियों जैसे ऑर्केस्ट्रा (Orchestras), कॉन्सर्ट बैंड (Concert bands) और जाज़ में किया जाता है। 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से इसका निर्माण मुख्य रूप से पीतल टयूबिंग (Brass Tubing) के द्वारा किया जा रहा है जिसे आमतौर पर दो बार गोल आयताकार आकार में झुकाया जाता है।तुरही के कई अलग-अलग प्रकार हैं, जिनमें सबसे सामान्यB♭प्रकार है, लेकिन A, C, D, E♭, E, low F, और Gतुरही भी उपलब्ध हैं।अमेरिकी (America) आर्केस्ट्रा वादन में C तुरही सबसे आम है, जहां इसका उपयोग B♭ तुरही के साथ किया जाता है।सबसे छोटी तुरही को पिककोलो (Piccolo) तुरही कहा जाता है।तुरही को इसके आच्छादन में फूंक भरकर बजाया जाता है जिससे गुंजायमानजैसी ध्वनि उत्पन्न होती है जोकि उपकरण के भीतर हवा के स्तंभ में एक कंपन लहर शुरू करती है।तुरही में कोई छेद नहीं होता, केवल हवा फूँककर उसके विभिन्न दवाबों, ऊँचे-नीचे स्वरों की उत्पति की जाती है। इसीलिए इसमें दो-तीन स्वर बहुत तेज आवाज़ से निकलते हैं।
सबसे पुरानी तुरहियां 1500 ईसा पूर्व और उससे पहले की हैं। मिस्र (Egypt) में तूतनखामुन की कब्र से कांस्य और चांदी की तुरही,स्कैंडिनेविया (Scandinavia) से कांस्य की तुरही, और चीन (China) से धातु के तुरही इस अवधि की तुरहियां हैं। मध्य एशिया की ऑक्सस सभ्यता (Oxus civilization -3 सहस्राब्दी ईसा पूर्व) ने तुरही के बीच के हिस्से को उभार रूप दिया जबकि इसे केवल धातु की एक चादर से ही बनाया गया था। 300 ईस्वी में प्राचीन पेरू (Peru) के मोचे (Moche) लोगों द्वारा अपनी कला में तुरही का चित्रण किया गया था।मध्य युग और पुनर्जागरण में उपकरण बनावट और धातु बनाने में सुधार ने एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में तुरही की उपयोगिता में वृद्धि की।इस युग के प्राकृतिक तुरही में छिद्र के बिना एक एकल कुंडलित नली शामिल थी और इसलिए केवल एक ही ओवरटोन (Overtone) श्रृंखला के सुरों का उत्पादन कर सकता था। सुर को बदलने के लिए वादक खिलाड़ीको उपकरण के वक्र को बदलने की आवश्यकता होती है। सबसे शुरुआती समय में उपयोग की जाने वाली तुरही संकेत तुरही हुआ करती थी जिनका उपयोग संगीत के बजाय सैन्य या धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था तथाआधुनिक बिगुल इस सांकेतिक परंपरा को जारी रखता है।
वहीं भारत में तुरही का उपयोग विवाह समारोह या सैन्य मार्च में किया जाता है। ब्रिटिश (British) सेना ने स्थानीय लोगों को प्रभावित करने के लिए भारत में मार्चिंग ब्रास बैंड (Marching brass bands) की शुरुआत की थी। क्योंकि भारतीय लोग ब्रिटिश संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित थे इसलिए उन्होंने उनके इस उपकरण के उपयोग को बखूबी अपनाया। यहां तक कि इस उपकरण के उपयोग हेतु भारतीयों को प्रशिक्षित करने के लिए शाहीसैन्य बैंड के कुछ संगीतकारों को भी बुलाया गया। ब्रिटिश सैन्य बैंड के एक विशिष्ट व्यक्ति जॉन मैकेंज़ी रोगन ने भारतीय रेलवे के स्वयंसेवकों के एक समूह को सैन्य बैंड संगीत चलाने के लिए प्रशिक्षित किया था। इसके अलावा इस उपकरण को भारतीय विवाह में शामिल करने की परंपरा भी 19वीं शताब्दी में शुरू हुई। इस अवधि में भारतीय विवाह के लिए ब्रास बैंड को किराये पर देने की परंपरा बहुत अधिक प्रचलित हुई। एक अनुमान के अनुसार लगभग सात हज़ार से भी अधिक भारतीय विवाह बैंड या ब्रास बैंड भारत में उपलब्ध हैं। अफसोस की बात तो यह है कि शादी के बैंड को किराये पर देने का चलन अब बहुत कम हो गया है। इसके लिए मुख्य रूप से पेशेवर संगीतकारों और डीजे (DJ) के आगमन को उत्तरदायी माना जाता है। जिस कारण इस व्यवसाय की व्यवहार्यता में भारी गिरावट आई है। कम आमदनी, काम के अनियमित घंटे और अंतहीन यात्रा को भी अन्य कारण माना जाता है। साथ ही शादियों में पेशेवर संगीतकारों का चलन भी बढ़ता जा रहा है जो ब्रास बैंड व्यवसाय की व्यवहार्यता में भारी गिरावट का अन्य कारण है। बैंड संगीतकारों को ज्यादातर भारतीय समाज के निचले तबके का माना जाता है और उन्हें कोई सम्मान नहीं दिया जाता है।
उनकी उपस्थिति को एक शादी के जुलूस के दौरान पूरी तरह से नज़रअंदाज कर दिया जाता है। अधिक 'परिष्कृत' संगीतकारों के आगमन जैसे डीजे को किराए पर लेने की लोकप्रियता ने भी शादी के बैंड को किराए पर लेने की प्रथा को बाधित किया है। इसका असर सीधे-सीधे उन लोगों पर देखने को मिलता है जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। ये लोग रोज़गार की तलाश में गांवों से शहर की ओर आते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार इनमें से अधिकांश लोग बेहतर जीवन की तलाश में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के दूर-दराज़ गांवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं, 15-20 सदस्यों के साथ एक कमरे को साझा करते हैं तथा पर्याप्त पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। ऐसे में इस व्यवसाय की व्यवहार्यता में भारी गिरावट इन लोगों के जीवन को काफी संघर्ष भरा बनाती है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3CPW4cN
https://bit.ly/3CRqMlO
https://bit.ly/37PdtEk

चित्र संदर्भ
1. DJ तथा भारतीय वेडिंग बैंड का एक चित्रण (flickr)
2. तुरही बजाते हुए प्रसिद्द अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का एक चित्रण (flickr)
3. भारतीय वेडिंग बैंड का एक चित्रण (flickr)
3. भारतीय शादी में DJ पर डांस करते रिश्तेदारों का एक चित्रण (youtube)