City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1727 | 122 | 1849 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
भारत में हिंदू धर्म के अनेकों पवित्र स्थल हैं, तथा इन सभी पवित्र स्थलों में से एक स्थल गोवर्धन पर्वत
या पहाड़ी भी है। हिंदू धर्म में गोवर्धन पर्वत का विशेष महत्व है, तथा इसकी परिक्रमा करना अत्यधिक
शुभ माना जाता है। ऐसा इसलिए है, क्यों कि इसे राधा और कृष्ण की पूजा का प्रसाद माना जाता है।
श्रीमद्भागवत में यह उल्लेख किया गया है कि कैसे भगवान कृष्ण ने व्रजवासियों को आदेश दिया कि वे
गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। उस पूजा का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि सभी गोप और गोपियों
ने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की और इस तरह भगवान श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रसन्न किया।
गोवर्धन पहाड़ी मेरठ से बस कुछ ही दूरी पर स्थित है तथा इसका धार्मिक और भौगोलिक महत्व बहुत
अधिक है। गोवर्धन पहाड़ी को माउंट गोवर्धन और गिरिराज भी कहा जाता है, जो भारत के उत्तर प्रदेश के
मथुरा जिले में स्थित है।यह पहाड़ी 8 किलोमीटर लंबी है, जो कि गोवर्धन और राधा कुंड के बीच स्थित
है तथा वृंदावन से लगभग 21 किलोमीटर दूर है। यह ब्रज का पवित्र केंद्र है और कृष्ण के प्राकृतिक रूप
(गोवर्धन शिला) के रूप में पहचाना जाता है। गोवर्धन पहाड़ी, राधा कुंड से गोवर्धन के दक्षिण तक फैली
हुई एक लंबी पहाड़ी है, जो अपने उच्चतम स्तर पर, आसपास की भूमि से 100 फीट (30 मीटर) ऊपर
है। पहाड़ी के दक्षिणी छोर पर पुंछरी गांव है,जबकि शिखर पर आन्योर और जतिपुरा गांव हैं। गोवर्धन
पहाड़ी का परिक्रमा पथ राजस्थान के भरतपुर जिले के कुछ भाग द्वारा प्रतिच्छेदित है।
गोवर्धन पहाड़ी को एक पवित्र स्थल माना जाता है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कई
किंवदंतियों से सम्बंधित है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण इस पहाड़ी की धरती में समाविष्ट हैं। ऐसा
कहा जाता है कि कृष्ण और उनके भाई बलराम ने इस पहाड़ी की छांव में घूमते हुए खुशी का एक
महत्वपूर्ण समय व्यतीत किया था।एक ईडन (Eden) जैसा अभयारण्य,क्षेत्र के झरने, उद्यान-
उपवन,आर्बर(निकुंज), पानी की टंकी (कुंड), और वनस्पतियों को राधा के साथ कृष्ण के कारनामों और
रास के दृश्यों में दर्शाया गया है।पहाड़ी पर इमारतें और अन्य संरचनाएं सोलहवीं शताब्दी की हैं।यहां के
कुछ स्थलों में बलुआ पत्थर स्मारक और कुसुम सरोवर की झील,गिरिराज मंदिर,श्री चैतन्य मंदिर (लाल
बलुआ पत्थर से बना है और कृष्ण और राधा के चित्रों से सुशोभित है),राधा कुंड मंदिर,मानसी गंगा
झील,दंघाटी मंदिर आदि शामिल हैं।
गिरिराज चालीसा (गोवर्धन पहाड़ी को समर्पित एक चालीस श्लोक) के अनुसार मानव रूप में
गोवर्धन,पुलस्त्य के साथ वृंदावन गए और वहां हमेशा रहने का फैसला किया।वृंदावन में गोवर्धन पहाड़ी
और यमुना नदी के नजारे ने उन देवताओं को आकर्षित किया जिन्होंने वृंदावन में रहने के लिए पेड़,
हिरण और बंदर का रूप धारण किया।
गोवर्धन पहाड़ी के महत्व को देखते हुए दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता
है।यह वह दिन है, जिस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र को हराया था।इसके पीछे भागवत और अन्य पुराणों
में श्री कृष्ण के बारे में एक दिलचस्प कहानी मौजूद है, जिसके अनुसार श्री कृष्ण जब बच्चे थे तब
उन्होंने 'गोवर्धन पर्वत' या गोवर्धन पहाड़ी को उठाया था। एक बार जब नंद महाराज सहित ब्रज के बड़े
लोग भगवान इंद्र की पूजा की योजना बना रहे थे, तब बाल श्री कृष्ण ने उनसे सवाल किया कि वे ऐसा
क्यों कर रहे हैं। नंद महाराज ने कृष्ण को समझाया कि यह हर साल भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के
लिए किया जाता है ताकि वे आवश्यकता पड़ने पर ब्रज के लोगों को वर्षा प्रदान करते रहें।लेकिन छोटे
कृष्ण ने इस बात पर बहस की कि वे किसान हैं और उन्हें किसी भी प्राकृतिक घटना के लिए पूजा या
बलिदान करने के बजाय खेती पर ध्यान केंद्रित करके और अपने मवेशियों की रक्षा करके केवल अपना
कर्तव्य या 'कर्म' करना चाहिए।बालक कृष्ण की बात सुनने और उनके स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा
करने से ब्रजवासियों से क्रोधित होकर स्वर्ग के राजा इंद्र ने वृंदावन की भूमि में बाढ़ के भयानक बादल
भेजकर उन्हें दंडित करने का निर्णय लिया, जो व्यापक बाढ़ का कारण बना।भयानक बारिश और आंधी ने
भूमि को तबाह कर दिया और इसे पानी के नीचे डुबो दिया।वृंदावन के भयभीत और असहाय निवासियों
ने मदद के लिए भगवान कृष्ण से संपर्क किया। स्थिति को भली-भांति समझ चुके कृष्ण ने अपने बाएं
हाथ से एक ही बार में संपूर्ण गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और उसे एक छत्र की तरह इस्तेमाल किया।
एक-एक करके वृंदावन के सभी निवासियों ने अपनी गायों और अन्य घरेलू सामानों के साथ गोवर्धन
पहाड़ी के नीचे शरण ली। सात दिनों तक वे पहाड़ी के नीचे रहे, भयानक बारिश से सुरक्षित रहे और
आश्चर्यजनक रूप से भूख या प्यास से मुक्त रहे।
कृष्ण की छोटी उंगली पर पूरी तरह से संतुलित
विशाल गोवर्धन पहाड़ी को देखकर वे भी चकित रह गए।घटनाओं के क्रम से स्तब्ध और रहस्यमय, राजा
इंद्र को तब तबाही के बादलों को वापस बुलाना पड़ा।आकाश फिर से साफ हो गया और वृंदावन पर सूरज
चमकने लगा। छोटे कृष्ण ने निवासियों को बिना किसी डर के घर लौटने के लिए कहा, और धीरे से
गोवर्धन पहाड़ी को वापस वहीं रख दिया जहां वह था। नंद महाराज, यशोदा और बलराम सहित ब्रज के
सभी निवासियों ने कृष्ण की प्रशंसा की और उन्हें खुशी से गले लगा लिया। इस प्रकार राजा इंद्र का
मिथ्या अभिमान टुकड़े-टुकड़े हो गया।
माना जाता है, कि गोवर्धन पहाड़ी की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यह विश्वास
है, कि परिक्रमा की शुरुआत सुंदर मानसी गंगा झील में स्नान करके करनी चाहिए। इस गोवर्धन परिक्रमा
के दौरान तन, मन और वचन को अर्पित कर श्री गिरिराज की पूजा शुरू करनी चाहिए।उत्तर प्रदेश के
लिए गोवर्धन पर्वत एक विशेष महत्त्व रखता है, क्यों कि यह उत्तर प्रदेश में एकमात्र प्रमुख पहाड़ी है।
2018 में, गोवर्धन को मथुरा, बलदेव, नंदगांव, राधाकुंड और गोकुल के साथ एक तीर्थस्थल के रूप में
घोषित किया गया था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3fYzuVF
https://bit.ly/3yOCWcT
https://bit.ly/3yMAHGJ
चित्र संदर्भ
1. हाथ में गोर्वर्धन पर्वत धारण किए हुए श्री कृष्ण का एक चित्रण (flickr)
2. गोवर्धन पहाड़ी का एक चित्रण (wikimedia)
3. हाथ में गोवर्धन पर्वत उठाए श्री कृष्ण का एक चित्रण (facebook)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.