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जलवायु परिवर्तन के छह नैतिक सिद्धांत और व्यावहारिक दृष्टिकोण

मेरठ

 13-08-2021 09:31 AM
जलवायु व ऋतु

पूरे ब्रह्माण्ड में पृथ्वी एकमात्र ऐसा गृह है, जहां जीवन पनपने के लिए सबसे आदर्श परिस्थितियां और संसाधन मौजूद हैं। परंतु निरंतर रूप से बढ़ रहे जलवायु परिवर्तन से, न केवल हमारा पारिस्थितिक तंत्र खतरे में आ चुका है, बल्कि यह हमारे मौलिक अधिकारों की नींव को कमजोर कर रहा है। साथ ही जलवायु परिवर्तन से मानवीय असमानताएं और गहरी होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए एक व्यापक दृष्टकोण की आवश्यकता होती है, इसे केवल वैज्ञानिक ज्ञान और राजनितिक इच्छाशक्ति के दम पर कम नहीं किया जा सकता। नवंबर 2017 में यूनेस्को द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए छह नैतिक सिद्धांतों को लागू किया गया। यह सिद्धांत जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक जागरकता फ़ैलाने में उत्प्रेरक का काम करते हैं जो की निम्नवत हैं:
1. नुकसान की रोकथाम (Loss prevention): इसमें जलवायु परिवर्तन को कम करने तथा परिणामों का सटीक अनुमान लगाने के लिए कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास और जलवायु लचीलापन को बढ़ावा देने की पहल शामिल है।
2. एहतियाती दृष्टिकोण (Precautionary Approach): निश्चित वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को रोकने या कम करने के उपायों को अपनाने को स्थगित न करें।
3. समानता और न्याय (Equality and Justice): जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया इस प्रकार दी जानी चाहिए, की उससे न्याय और समानता की भावना से सभी लोग लाभन्वित हों। जलवायु परिवर्तन के अपर्याप्त उपायों या अपर्याप्त नीतियों के कारण से अन्याय पीड़ित लोगों को निवारण और उपचार सहित न्यायिक और प्रशासनिक कार्यवाही तक पहुंचने की अनुमति दी जानी चाहिए।
4 .सतत अथवा संतुलित विकास (Sustainable Development): विकास के लिए नए रास्ते अपनाने चाहिए, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला और अधिक न्यायपूर्ण और जिम्मेदार समाज का निर्माण करते हुए हमारे पारिस्थितिक तंत्र को स्थायी रूप से संरक्षित कर सकें। साथ ही उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, जहां जलवायु परिवर्तन के मानवीय परिणाम नाटकीय हो सकते हैं। जिनमे भोजन, ऊर्जा, जल असुरक्षा, महासागर, मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं।
5. एकजुटता (Solidarity): कम विकसित अथवा विकासशील देशों और विकासशील प्रांतों तथा छोटे द्वीपों में जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए, कमजोर लोगों और समूहों को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए।
6. वैज्ञानिक ज्ञान और निर्णय लेने में सत्यनिष्ठा (Scientific knowledge and decision- making integrity): भविष्य में होने वाले नुकसान की भविष्यवाणी सहित, निर्णय लेने और प्रासंगिक दीर्घकालिक रणनीतियों को लागू करने के लिए विज्ञान और नीति के बीच आपसी तालमेल को मजबूत किया जाना चाहिए। साथ इस भविष्यवाणी को सभी के लाभ के लिए अधिक से अधिक लोगों तक व्यापक रूप से प्रसारित किया जाना भी शामिल है।
जलवायु परिवर्तन संबंधी नियमों तथा सिद्धांतों को जारी करना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है, धरातल पर इन सद्धांतों को लागू करना। क्यों की पर्यावरण संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए लगाए गए प्रतिबंध और, जारी की गई गाइडलाइन सभी के साथ सामान रूप व्यव्हार नहीं करती। उदाहरण के लिए हम मछुआरों का संदर्भ ले सकते हैं।
हमारी पिछली पोस्ट में हमने पढ़ा था कि कुछ मछुआरे कम मछलियां पकड़ने का संकल्प लेने पर विचार कर रहे हैं, ताकि मछलियों की आबादी संतुलित हो सके। क्यों की यदि प्रत्येक मछुआरा सामान दर से मछली पकड़ना जारी रखता है, तो जल्द ही एक भी मछली नहीं बचेगी, और सबका बुरा हाल होगा। हालाँकि, हम यह भी जानते हैं कि मछली पकड़ने की दर में कमी करने से उनको अपने परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल पड़ जायेगा। मछुआरे मछली की घटती आबादी के बारे में पूरी तरह से अवगत है, फिर भी मछली पकड़ना रखते हैं, सिर्फ इसलिए कि वह मछली के जीवन को उतना महत्व नहीं दे सकते, जितना की अपने जीवन को। प्रसिद्ध दार्शनिक डेरेक पारफिट (Derek Parfitt) ने अपनी पुस्तक रीज़न एंड पर्सन्स (Reasons and Persons) में भी मछुआरे की दुविधा पर चर्चा की है।
जलवायु परिवर्तन पूरी तरह वास्तविक और मानवजनित है, 97% जलवायु वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन को भयावह तथा जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं। आज यह सदी की सबसे बड़ी समस्या है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) के वैज्ञानिकों ने, आने वाली सदी में 2.5-10℉ तापमान वृद्धि की भविष्यवाणी की है। यह समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र और मनुष्यों को समान रूप से प्रभावित करेगी।
जलवायु परिवर्तन के परिपेक्ष्य में दो मुख्य प्रकार के समाधान हो सकते हैं: नियामक समाधान और सांस्कृतिक समाधान। सामान्यतया अथवा नियामक समाधान कानूनी तौर पर किये जा सकते हैं, जबकि सांस्कृतिक समाधान नैतिक रूप से, सार्वजनिक विवेक में महसूस किए जाते हैं। जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए नियामक समाधान आवश्यक हैं। सरकार को ऐसे उत्पादों और कंपनियों को सही तरीके से नियंत्रित करने की आवश्यकता है, जो टिकाऊ नहीं हैं, या ग्रीनहाउस गैसों का अधिक उत्पादन करते हैं। दूसरी ओर, सांस्कृतिक समाधानों में सामाजिक मानदंडों के माध्यम से लोगों के व्यवहार को बदला जाता है। उदाहरण के लिए, चीन में, शार्क फिन सूप को एक विनम्रता माना जाता है, परंतु दुर्भाग्य से, शार्क की खपत की उच्च दर का पारिस्थितिक पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। हाल के वर्षों में, कई पर्यावरण संगठनों ने शार्क फिन सूप के पारिस्थितिक नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया है। नतीजतन, शार्क फिन सूप की बिक्री में काफी गिरावट आई है, इसी तरह, कई लोग जलवायु परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण के आसपास सांस्कृतिक परिवर्तन करने की कोशिश कर रहे हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/37wXvOS
https://bit.ly/3AD1zd5

चित्र संदर्भ
1. जलवायु परिवर्तन से ध्रुवीय भालुओं पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा है जिसको दर्शाता एक चित्रण (cnn)
2. भारतीय मछली पकड़ने की नाव का एक चित्रण (wikimedia)
3. स्थिर प्राकृतिक वातावरण को दर्शाता एक चित्रण (news.sap)

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