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विश्व लोकप्रिय फल एवोकैडो की खेती के लिए एक विशिष्ट क्षमता रखता है भारत

मेरठ

 12-08-2021 08:37 AM
साग-सब्जियाँ

लगभग एक दशक पहले दुनिया के इस हिस्से में जो फल बिल्कुल अज्ञात था, आज उसने दुनिया के विभिन्न घरों में अपनी अच्छी पकड़ बना ली है।इस फल का नाम है एवोकैडो (Avocado),जो अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए दुनिया भर में अत्यधिक पसंद किया जा रहा है। एवोकैडो एक ऐसा फल है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पोषक पदार्थ पाए जाते हैं तथा यही कारण है, कि यह अन्य देशों की तरह भारत में भी अत्यधिक लोकप्रियता हासिल कर रहा है। इसमें पाए जाने वाले पोषक पदार्थों में प्रोटीन, रेशे, एंटी-ऑक्सीडेंट (Anti-oxidants), वसा, विटामिन, खनिज आदि शामिल हैं।
वर्तमान समय में शाकाहार बढ़ रहा है तथा रेस्तरां अपनी भोजन सूची में ऐसी चीजों को शामिल कर रहे हैं, जो उनके रेस्तरां को लोकप्रिय बनाए। इसलिए एवोकैडो से बनने वाले विभिन्न व्यंजनों को रेस्तरां अपनी भोजन सूची में शामिल कर रहे हैं।
इसे ग्वैकामोल (Guacamole), स्मूथी, सैंडविच, आइस क्रीम, मिल्क शेक आदि रूपों में परोसा जा रहा है।एवोकैडो मूल रूप से उष्णकटिबंधीय अमेरिका (America) से सम्बंधित है, जोकि संभवतः एक से अधिक एवोकैडो प्रजातियों के साथ मैक्सिको (Mexico) और मध्य अमेरिका में उत्पन्न हुआ। शुरुआती स्पेनिश खोजकर्ताओं ने पाया कि इसकी खेती मैक्सिको से लेकर पेरू (Peru) तक की जाती थी। लेकिन उस समय तक यह वेस्ट इंडीज में नहीं था। इसे सन् 1601 और 1650 में क्रमशः दक्षिणी स्पेन (Spain) और जमैका (Jamaica) में पेश किया गया। फ्लोरिडा (Florida) और कैलिफोर्निया (California) में इसकी खेती को पहली बार 1833 और 1856 में दर्ज किया गया था। एवोकैडो को मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला पर उगाया जा सकता है, लेकिन वे खराब जल निकासी के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं और जल-जमाव का सामना नहीं कर सकते। वे लवणीय स्थितियों के प्रति असहिष्णु हैं। इसके pH की इष्टतम सीमा 5 से 7 तक होती है।नस्ल और किस्मों के आधार पर,एवोकैडो उष्णकटिबंधीय से लेकर समशीतोष्ण क्षेत्र के गर्म भागों तक की जलवायु परिस्थितियों में पनप सकता है और अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। भारत में एवोकैडो एक वाणिज्यिक फल फसल के तौर पर शामिल नहीं है। इसे 20वीं शताब्दी के शुरुआती समय में श्रीलंका (Sri Lanka) से यहां लाया गया था। भारत में इसे तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पूर्वी हिमालयी राज्य सिक्किम में बहुत सीमित पैमाने और अव्यवस्थित रूप से उगाया जाता है। भारत में इसकी वाणिज्यिक तौर पर खेती न होने का मुख्य कारण यहां की जलवायवीय परिस्थितियां हैं, जो एवोकैडो के लिए बहुत ज्यादा उपयुक्त नहीं है। यह उत्तर भारत की गर्म शुष्क हवाओं और ठंड को सहन नहीं कर सकता। यह फल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सबसे अच्छा वृद्धि करता है,जहां तापमान 3 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
भारत में एवोकैडो, हालांकि बहुतायत में नहीं है लेकिन कुछ शहरों में यह उपलब्ध है। इसकी उपज को दक्षिण भारत में या तो स्थानीय रूप से उगाया जाता है या फिर इसका आयात किया जाता है।भारत एवोकैडो की खेती के लिए एक विशिष्ट क्षमता रखता है। देश के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां की कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ एवोकैडो के लिए उपयुक्त प्रतीत होती हैं।दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध कृषि आधारित फर्म ने वहां एक एवोकैडो बाग की भी स्थापना की है। इसके अलावा भारत के पास एवोकैडो की अच्छी किस्में भी उपलब्ध हैं, जिनकी उपज क्षमता बहुत अधिक है। वनस्पति प्रसार तकनीकों की मदद से भी इसकी खेती को विस्तार दिया जा सकता है। यदि एवोकैडो की अच्छी किस्म को चयनित कर उसका बड़े पैमाने पर गुणन किया जाता है, तथा उन्हें उचित रूप से रोपा जाता है, तो भारत एवोकैडो के उत्पादन में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है, तथा भारत के प्रसिद्ध फलों में शामिल हो सकता है। यह पाया गया है, कि भारत में जिस रंग, आकार और गुणवत्ता के एवोकैडो उपलब्ध हैं, उनकी तुलना अन्य देशों के एवोकैडो फलों के साथ की जा सकती है। भारत में एवोकैडो के वाणिज्यिक उत्पादन को आगे बढ़ाने के लिए परियोजनाएं भी संचालित की गयी हैं, जिनमें से कुछ परियोजनाएं दक्षिण भारत में तो कुछ मध्य प्रदेश में संचालित हैं।एवोकैडो की हैस्स (Hass) किस्म,पिंकर्टन (Pinkerton), एटिंगर (Ettinger) और रीड (Reed) जैसी हरी-त्वचा वाली किस्में भारत में उपयुक्त रूप से वृद्धि कर सकती हैं।भारत में, एवोकैडो आमतौर पर बीज के माध्यम से प्रचारित किया जाता है।
एवोकैडो के बीजों की व्यवहार्यता काफी कम (2 से 3 सप्ताह) होती है, लेकिन बीज को सूखे पीट या रेत में स्टोर करके इसमें सुधार किया जा सकता है।परिपक्व फलों से लिए गए बीजों को सीधे नर्सरी में या पॉलीथीन की थैलियों में बोया जाता है।6-8 महीने का होने पर पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। ऐसे अंकुर वाले पेड़ 10-15 साल में 300 से 400 फल देते हैं। एवोकैडो की एक अच्छी निर्यात क्षमता है। भारत और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एवोकैडो को एक अच्छा बाजार मिल सकता है, क्यों कि ये स्थान पर्यटकों को अत्यधिक आकर्षित करते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया के जरिए भी एवोकैडो की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। इज़राइली (Israeli) एवोकैडो विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के साथ बढ़ती सुलभ आय के कारण एवोकैडो की खेती भारत में एक बड़ी क्षमता रखती है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3fPKHaX
https://bit.ly/3s9M1u7
https://bit.ly/2UbHafC
https://bit.ly/3lNlIsH
https://bit.ly/3yP4Aqh

चित्र संदर्भ

1. नाश्पाती की आकार का एक उष्ण कटिबन्धीय फल एवोकैडो का एक चित्रण (flickr)
2. एवोकैडो से निर्मित सलाद, और एक टमाटर और काला जैतून का एक चित्रण (wikimedia)
3. पत्ते सहित एवोकैडो फल का एक चित्रण (wikimedia)
4. एवोकैडो का पौधा (अंकुर), विभाजित गड्ढे और जड़ों के साथ का एक चित्रण (wikimedia)

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