मछलियां न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिर रखने के लिए महत्वपूर्ण होती है, बल्कि यह भारत
में मध्यम वर्ग की आय का भी प्रमुख श्रोत मानी जाती हैं, जिनके व्यापार से लोग अपना जीवन
गुजर-बसर कर पाते हैं। जिस कारण आज यह बेहद ज़रूरी हो गया है की, हम मछलियों की
अहमियत को समझें। अतः समुद्र में मछलियों की पर्याप्त संख्या संतुलन बनाए रखने और उनके
आवासों और संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा करने के लिए संतुलित मछली व्यापार (Sustainable
fishing) करना अति आवश्यक हो गया है। साथ ही मछलियों के संतुलित शिकार और उपभोग से
मछली पालन पर निर्भर रहने वाले लोगों को भी अपनी आजीविका बनाए रखने में सहायता प्राप्त
होगी।
आजीविका के अलावा भी मछलियों को दूसरे आर्थिक कारणों से भी पाला और काटा जाता है, जैसे
कि सीप जो गहनों में इस्तेमाल होने वाले मोतियों का उत्पादन करते हैं। समुद्री भोजन को दुनिया
भर की विविध संस्कृतियों में, प्रोटीन और स्वस्थ वसा के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में माना जाता
है। हजारों सालों से, लोग अपने परिवार तथा स्थानीय समुदायों का भरण पोषण करने के लिए भी
मछली पालन कर रहे हैं। आज ऐसी ही ढेरों आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मछुआरे हर साल
समुद्र से 77 बिलियन किलोग्राम (170 बिलियन पाउंड) से अधिक समुद्री जीवों का दोहन अथवा
व्यापार कर रहे हैं। वैज्ञानिकों को डर है कि, इस दर से मछली पकड़ना जारी रहा, तो जल्द ही दुनिया
में मत्स्य पालन से जुड़े हुए व्यापार और समुदायों का पतन हो सकता है।
एक बार में बहुत सारी मछलियाँ पकड़ने से मछुआरों को तत्काल लाभ मिल सकता है, किंतु इससे
उन्हें लंबे समय में मछलियों के अभाव संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इस
सन्दर्भ में अर्थशास्त्रियों और संरक्षणवादियों का यह सुझाव है की, हमें स्थायी मछली पकड़ने की
प्रथाओं को नियोजित करने की विभिन्न योजनाओं पर जल्द ही अमल करना होगा।
भारत दुनिया के बड़े पैमाने पर जंतु विविधता वाले देशों में से एक है, और मीठे पानी की जैव
विविधता के मामले में नौवें स्थान पर है। भारतीय मछलियों की आबादी 80% वैश्विक मछलियों
का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ अब तक 2200 प्रजातियां सूचीबद्ध की गई हैं, जिनमे से 73
(3.32%) प्रजातियां ठंडे मीठे पानी , 544 (24.73%) गर्म ताजे पानी , 143 (6.50%) खारे पानी से
और 1440 (65.45%) समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित हैं।
जलीय रोगों और परजीवियों के प्रसार ने मछलियों में संक्रमण के जोखिमों को भी बढ़ा दिया है,
जिस कारण जलीय कृषि प्रबंधकों में इस उद्योग जोखिमों की अनिश्चितता भी बढ़ गई है। इस
अनिश्चितता के फलस्वरूप कृषि प्रबंधकों को उद्योग विकसित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा
है। जलीय जैव विविधता में होने वाले नुकसान के तीन प्रमुख कारण: परजीवी संक्रमण बैक्टीरियल,
वायरल, फंगल और प्रोटोजोअन रोग होते हैं।
पिछले कई दशकों के दौरान प्रायोगिक जलीय कृषि, मछली पालन, और मछलीघर रखने के लिए
विदेशी मछलियों की 300 से अधिक प्रजातियों को भारत में लाया गया है। मछलियां गुणवत्ता वाले
प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती हैं, जिन्हें बड़ी आसानी और पूरी तरह से पचाया जा सकता है। इसके
अलावा, मछलियां पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (polyunsaturated fatty acids) का भी
उत्कृष्ट स्रोत होती हैं। विदेशी मछलियाँ रोगजनक परजीवियों के लिए भी एक आदर्श वातावरण
प्रदान करती हैं,और जब इन विदेशी मछलियों को देशी मछलियों के साथ सम्मिलित किया जाता
है, तो परजीवी भी आपस में सम्मिलित हो जाते हैं। रोगवाहक परजीवी अपने मेजबानों के स्वास्थ्य
को या तो सीधे प्रभावित कर सकते हैं या उन्हें पर्यावरणीय तनावों के प्रति कम प्रतिरोधी बना
सकते हैं। बहुत सारे परजीवी मेजबान मछलियों में गंभीर शारीरिक गड़बड़ी और रोग संबंधी
स्थितियों का कारण बनते हैं। मीठे पानी की अधिकांश मछलियों में पाए जाने वाले परजीवी बेहद
संक्रामक होते हैं जो मछली के खाद्य मूल्य में गिरावट का कारण बनते हैं, और यहां तक कि
उनकी मृत्यु भी हो सकती है। इनके अलावा, कई हेलमिन्थ परजीवी (helminth parasites) भी
होते हैं जो मछली के माध्यम से मनुष्यों में भी फैलते हैं। परजीवी प्रकृति में अत्यंत प्रचुर मात्रा में
और विविध हैं, जो वैश्विक जैव विविधता के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वायरस और कुछ बैक्टीरिया को देखते हुए मेरठ क्षेत्र में भी मछली प्रजातियों के विविधीकरण को
नुकसान उठाना पड़ रहा है। यहां की पेज और यूकेरियोटिक (Pages and eukaryotic) प्रजातियां
सबसे अधिक परजीवी संलिप्त होती हैं, जो पशुधन, फसल और वन्यजीव सहित मनुष्य को भी
प्रभावित कर सकती हैं। मेरठ क्षेत्र में मछली प्रजातियों के विविधीकरण में बड़ा नुकसान देखा गया
है। विविध संस्कृतियों में, स्वाद, प्रोटीन और स्वस्थ वसा के एक महत्वपूर्ण स्रोत होने के
कारण मछली के मांस की मांग बड़ी तेज़ी से निरंतर बढ़ रही है, जिस कारण अपनी
आजीविका चलाने और अधिक लाभ कमाने हेतु मछुआरे समुद्रों से बड़ी मात्रा में मछलियों
का शिकार कर रहे हैं। यह शिकार इतनी भारी मात्रा में हो रहा है, की इतने विशाल
समुद्रों से भी मछलियों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं, अथवा विलुप्त
हो चुकी हैं। अतः भविष्य में हम कई मछलियों को कम से कम देख सकें इसलिए यह
जरूरी है की कोई भी इनका संतुलित मात्रा में शिकार करे, और अधिक लाभ कमाने के
चक्कर में किसी प्रजाति की विलुप्ति का ही कारण न बन जाए। दुनिया के विभिन्न देश
फिलीपींस के टैगबानुआ (Tagbanua of the Philippines) समुदाय के लोगों से प्रेरणा
ले सकते हैं जिन्होंने परंपरागत रूप मछलियों का संतुलित शिकार करके मछलियों की
कई प्रजातियों को जीवित रखा है। उन्होंने कुछ क्षेत्रों को अलग रखा है, जैसे कि संरक्षित
स्थानों के रूप में जहाँ मछली पकड़ना प्रतिबंधित है जब ये पारंपरिक मछुआरे मछली
पकड़ते हैं, तो मुख्य रूप से हुक-एंड-लाइन (hook-and-line) विधियों का उपयोग करते हैं
और केवल वही पकड़ते हैं, जो उन्हें अपने और अपने समुदायों को खिलाने के लिए
चाहिए। 2007 के एक अध्ययन द्वारा स्थानीय इरावदी डॉल्फ़िन को चोट और मृत्यु को
रोकने के तरीके के रूप में पारंपरिक टैगबनुआ प्रथाओं की सराहना भी की गई, जो जाल
और आधुनिक मछली पकड़ने के गियर में उलझ जाते हैं।
ओवरफिशिंग (Overfishing)
को रोकने का एक और तरीका है कि, मछली और अन्य समुद्री भोजन खाने से परहेज
करें। डॉ. सिल्विया अर्ल (Dr. Sylvia Earle), प्रसिद्ध समुद्री वैज्ञानिक और नेशनल
ज्योग्राफिक एक्सप्लोरर-इन-रेसिडेंस (National Geographic Explorer-in-Residence)
सुझाव देते हैं कि, लोगों को तब तक समुद्री भोजन खाने से एक ब्रेक लेने की
आवश्यकता है, जब तक कि हम यह नहीं सीखते कि स्वस्थ मछली और वन्यजीव
आबादी को कैसे बनाए रखा जाए। आश्चर्य की बात है की उन्होंने खुद भी इन्हें भोजन के
रूप में खाना बंद कर दिया है। साथ ही इस परिप्रेक्ष्य में हमें पर्यावरण की भी रक्षा करने
की आवश्यकता है, क्योंकि मछलियां आदर्श पर्यावरण के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं।
मछली में पोषक तत्वों की कमी, परजीवी संक्रमण, अधिक शिकार या पानी की अस्वच्छ
स्थिति के कारण बड़ी संख्या में जानलेवा रोग भी होते हैं। मीठे पानी की प्रजातियों के
संबंध में भारत अति विविधता वाले देशों में से एक है। खेती योग्य स्वदेशी प्रजातियां भी
बहुत हैं। अतः अधिक मात्रा में विदेशी प्रजातियों की आवश्यकता नहीं है। भारत को
स्वदेशी प्रजातियों की प्राकृतिक जनसंख्या क्षमता वृद्धि पर जोर देने की आवश्यकता है
और अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों को प्रभावी निगरानी और संरक्षण कार्यक्रमों की पहचान
की जानी चाहिए। लुप्तप्राय मछलियों को आश्रय देने वाले जल निकायों, मछली
अभयारण्य या जलीय विविधता प्रबंधन की भी आवशयकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3Cdn2L5
https://bit.ly/3xk7Jwn
https://bit.ly/3rOTLSi
चित्र संदर्भ
1. मछली व्यापारियों का एक चित्रण (flickr)
2. द फिश मार्केट, दुबई का एक चित्रण (flickr)
3. जाल में फंसी बेहद दुर्लभ दुर्लभ स्टर्जन का एक चित्रण (flickr)
4. हुक-एंड-लाइन (hook-and-line) विधि को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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