चीतों का होगा भारत में फिर से पुनःस्थापन

मेरठ

 05-08-2021 10:00 AM
स्तनधारी

भारत में कभी कई चीते मौजूद हुआ करते थे, किंतु आज देश में एक भी चीता मौजूद नहीं है। देश में आखिरी चीते को सन् 1947 में मार दिया गया था। इसके बाद 1952 में इस जीव को विलुप्त घोषित कर दिया गया। चीता एकमात्र ऐसा बड़ा जानवर है जिसे रिकॉर्ड इतिहास में भारत में विलुप्त घोषित किया गया है। आज, चीता केवल एशिया (Asia) में पूर्वी ईरान (Iran) के शुष्क क्षेत्रों और बोत्सवाना (Botswana), नामीबिया (Namibia) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में पाया जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में 60 से अधिक वर्षों से विलुप्त है।
भारत से चीतों के विलुप्त होने के पीछे अनेकों कारण मौजूद हैं।इनमें सबसे मुख्य कारण तो यह है, कि सन् 1700 और 1800 के दशक में चीते का अत्यधिक शिकार किया गया था। चीतों को विभिन्न उद्देश्यों के लिए कैद किया जाता था, जैसे अन्य जानवरों के शिकार के लिए, मनोरंजन के लिए आदि। इन सभी उद्देश्यों के लिए पहले चीतों को बंदी बनाया जाता तथा फिर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता। चूंकि बंदी अवस्था में चीते में प्रजनन असंभव होता है, इसलिए इनकी प्रजनन दर कम होती गयी जिससे इन जीवों की संख्या भी कम होती चली गयी। मुगल बादशाह अकबर ने चीतों को ब्लैकबक्स (Black Bucks) के शिकार के लिए बंदी बना कर रखा था। मुगल काल और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय चीतों का इतना अधिक दुरूपयोग किया गया कि 20वीं सदी की शुरुआत तक इनकी संख्या केवल कुछ हजार ही रह गयी थी।
संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (United Nations Convention to Combat Desertification) की हालिया बैठक में, भारतीय प्रतिनिधिमंडल के एक शोधकर्ता ने चीता के विलुप्त होने का प्राथमिक कारण मरुस्थलीकरण (Desertification) को भी बताया है। चीता के विलुप्त होने का एक अन्य कारण इसकी आंतरिक रूप से विनम्र प्रकृति है। उस समय इसका व्यवहार इतना सौम्य था,कि उसकी तुलना कुत्ते से की गई।इसने कभी उस डर को पैदा नहीं किया जो बाघों, शेरों और तेंदुओं ने किया था।इन जानवरों में से कई, जब पालतू हो जाते हैं, तो वे कुत्ते की तरह कोमल और विनम्र होते हैं, पालतू होने में प्रसन्न होते हैं, और अजनबियों के साथ भी अच्छा व्यवहार करते हैं। इस प्रकार वे शिकारियों से अपनी रक्षा कर पाने में अक्षम हो जाते हैं। चीते को भारत में फिर से वापस लाने या स्थापित करने के लिए अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं। पहले यह माना जा रहा था कि यदि अफ्रीकी चीते को भारत में लाया जाता है, तो वह ठीक से वृद्धि नहीं कर पाएगा, किंतु अब कुछ ऐसे वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं, जो बताते हैं कि अफ्रीकी चीता "एक विदेशी प्रजाति नहीं है" और यह भारत में भी जीवित रह सकताहै।वह भारत के पर्यावरण के अनुसार अनुकूलित हो सकता है।चीता के भारत में आने से भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बन जाएगा, जो दुनिया की आठ बड़ी बिल्लियों में से छह का प्रतिनिधित्व करेगा। सरकार 60 साल पहले विलुप्त हो चुके जानवर के आयात की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की योजना बना रही है। भारत में चीतों की पुनःस्थापना उन क्षेत्रों में की जानी है, जहां वे पहले मौजूद थे तथा प्रजनन किया करते थे।इस प्रक्रिया में चीते के पूर्व चरागाह वन निवासों की पहचान तथा बहाली की जायेगी। यह कार्य भारतीय केंद्र सरकार के वित्तपोषण के माध्यम से प्रत्येक राज्य के स्थानीय वन विभाग की देख-रेख में किया जाएगा। पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ समय पूर्व नामीबिया चीते को भारत में आयात करने हेतु 300 करोड़ रुपये की परियोजना प्रस्तावित की थी,किंतु शीर्ष अदालत ने नामीबिया चीता को आयात करने वाली इस परियोजना को अवैध बताते हुए इसे रद्द कर दिया था।
इस परियोजना को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन करार दिया था। नामीबिया से चीते का पहला बैच 2012 में मध्य प्रदेश के वन्यजीव अभयारण्य में लाया जाना था। लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा परियोजना को रद्द करने के बाद यह विचार छोड़ दिया गया।लेकिन इस साल के अंत तक चीतों को भारत में फिर से लाया जाएगा।तथा यह शुरूआत मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क से होगी।मध्य प्रदेश को आठ चीते प्राप्त होंगे, जिनमें पांच नर और तीन मादाएं शामिल हैं। इन्हें दक्षिण अफ्रीका से भारत में लाया जाएगा। दक्षिण अफ्रीका के एक विशेषज्ञ ने भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के साथ इस साल 26 अप्रैल को कुनो नेशनल पार्क का दौरा किया और अफ्रीकी चीतों के आगमन के लिए वहां सृजित सुविधाओं और आवासों का निरीक्षण किया।निरीक्षण के बाद उन्होंने इसे मंजूरी दे दी है और अब चीते को लाने की अंतिम प्रक्रिया चल रही है।पिछले साल भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों ने चीतों के लिए सर्वोत्तम संभव आवास की तलाश में राज्य के चार स्थलों का दौरा किया था,किंतु अब चीते के लिए एक उपयुक्त आवास स्थान प्राप्त हो गया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3rPWXgk
https://bit.ly/3xm5Yij
https://bit.ly/37evVG0
https://bit.ly/3jh13dE
https://bit.ly/2r4Nabt
https://bit.ly/35yNqyq

चित्र संदर्भ

1. तेज़ी से दौड़ लगाते चीते का एक चित्रण (outlookindia)
2. स्टब्स, जॉर्ज (1724-1806) - 1764–65 दो भारतीयों के साथ चीते का एक चित्रण (flickr)
3. नन्हे चीते का एक चित्रण (flickr)

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id