 
                                            समय - सीमा 276
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                                            ईश्वर हैं या नहीं! यह सवाल काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता हैं कि, हम भगवान अथवा
ईश्वर किसे मानते हैं? आमतौर पर प्रत्येक धर्म में ईश्वर किसी अदृश्य शक्ति को माना जाता है,
जिसने इस संसार की रचना की तथा जो सभी प्राणियों और समस्त जगत का पालन-पोषण एवं
रक्षा कर रहा है। परंतु इन अदृश्य शक्तियों के साथ ही कई बार धरती पर मौजूद मनुष्य, प्राणियों,
वस्तुओं तथा तत्वों को भी मानव इतिहास में ईश्वर की संज्ञा दी गई है, अथवा भगवान माना गया
है, जिसके लिए वस्तुतः एपोथोसिस "Apotheosis"(दैवीकरण) शब्द का प्रयोग किया जाता है।
जब किसी मनुष्य को ईश्वर अथवा देवता की पदवी दे दी जाती है, तो उसे एपोथोसिस अथवा
दैवीकरण कहा जाता है। इस प्रक्रिया में मनुष्यों द्वारा ही किसी दूसरे मनुष्य के साथ देवताओं के
सामान व्यवहार किया जाता है। मानव इतिहास में कई ऐसे व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने खुद को ईश्वर
की उपाधि दी है, अथवा कई बार किसी विशेष वर्ग अथवा समूह ने उन्हें ईश्वर माना है।
मिस्र: प्राचीन मिस्र अथवा मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में हेलेनिस्टिक काल से पहले सभी
शाही पंथ फिरौन (Pharaoh) के नाम से जाने जाते थे, किसी भी फिरौन की मृत्यु हो जाने के
पश्चात् उसे भगवान् ओसिरिस (Osiris) के रूप में देवता मान लिए जाता था। ग्रीस: प्राचीन ग्रीस में नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में मैसेडोन का फिलिप द्वितीय (Philip II of
Macedon) ने खुद को दुनिया में पहली बार दैवीय सम्मान प्रदान किया, जिसके बाद हेलेनिस्टिक
राज्य के नेताओं जैसे सिकंदर महान को मृत्यु से पहले अथवा टॉलेमिक राजवंश (Ptolemaic
dynasty) के सदस्यों को मृत्यु के बाद देवताओं की बराबर की स्थिति में माना गया।
ग्रीस: प्राचीन ग्रीस में नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में मैसेडोन का फिलिप द्वितीय (Philip II of
Macedon) ने खुद को दुनिया में पहली बार दैवीय सम्मान प्रदान किया, जिसके बाद हेलेनिस्टिक
राज्य के नेताओं जैसे सिकंदर महान को मृत्यु से पहले अथवा टॉलेमिक राजवंश (Ptolemaic
dynasty) के सदस्यों को मृत्यु के बाद देवताओं की बराबर की स्थिति में माना गया।
रोम: प्राचीन रोम में गणतंत्र से पूर्व भगवान क्विरिनस (Quirinus) को ही रोमनों के देवता के रूप में
स्वीकार किया जाता था, परंतु इसके बाद रोम के प्रत्येक शाशक की मृत्यु के बाद उसको शाशक के
उत्तराधिकारी द्वारा देवता माना जाने लगा। रोमन साम्राज्य के दौरान कभी-कभी सम्राट के मृतक
प्रियजनों-उत्तराधिकारियों, महारानी, या प्रेमी, जैसे हैड्रियन के एंटिनस (Hadrian's
Antinus) को भी देवता बना दिया गया था। शाशक को मरणोपरांत उनके देवत्व को दर्शाने के
लिए उनके नाम पर दिवस (दिवा अगर महिलाएं) की उपाधि से सम्मानित किया गया।
चीन: प्राचीन चीन में मिंग राजवंश में गुआन यू (Guan Yu), आयरन-क्रच ली (Iron-crunch Li)
और फैन कुई (Fan Kui) जैसे कई नश्वर लोगों को ताओवादी पंथ (Taoist cult) में देवता की पदवी
दे दी गई। वहीँ सोंग राजवंश (Song Dynasty) जनरल यू फी (General Yu Fei) को मिंग राजवंश
(Ming dynasty) के दौरान देवता बना दिया गया था, और कुछ किवदंतियों में इन्हे तीन सर्वोच्च
रैंकिंग वाले स्वर्गीय जनरलों में से एक माना जाता है।
भारत : प्राचीन भारत, दक्षिण पूर्व एशिया में भारत से लेकर इंडोनेशिया तक विभिन्न हिंदू और
बौद्ध शासकों को विशेष रूप से मृत्यु के बाद देवताओं के रूप में दर्शाया गया है। भारतीय संस्कृति
में प्राचीन किवदंतियों और इनके अलौकिक गुणों के आधार पर नदियों को भी ईश्वर के समतुल्य
रखा गया है। अपने निरंतर प्रवाह के कारण, एक नदी को हमेशा स्वच्छ, शुद्ध और पवित्र माना
जाता है। जहां यह एक शोधक की भांति भौतिक गंदगी और धूल को साफ़ करती हैं वहीँ रूपक रूप
से मन की अशुद्धियों को साफ करती है। यहां नदी में स्नान या डुबकी लगाना पवित्र माना जाता
है। यह गंदगी को धोता है, और ज्ञान का पवित्र जल अज्ञान की अशुद्धियों को धो देता है। अभिषेक
के दौरान इन पावन नदियों के जल से राजा को औपचारिक स्नान कराया जाता है। परंतु नदियों का
पवित्र माना जाना, खुद नदियों के लिए एक बड़ा अभिशाप साबित हो रहा है। हर दिन नदियों में
अनेक प्रकार की पूजा सामग्रियां प्रवहित की जाती हैं, जिससे पवित्र नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं।
हालाँकि यह आस्था के नज़रिए से बेहद संवेदनशील पहलु है, परंतु हमें इनके संरक्षण के नज़रिये से
भी गंभीर होने की आवश्यकता है। भारतीय समाज विशेष तौर पर हिन्दू धर्म में गाय को माँ के समतुल्य रखा गया है, और माँ को
ईश्वर से ऊपर स्थान दिया गया है। अतः हम यह समझ सकते हैं, की गाय यहां किस स्तर पर
पूजनीय है। गोदावरी या गोमती जैसी नदियों के नाम गाय से जुड़े हुए हैं। भारत में गाय पौराणिक
काल से ही मनुष्य की तारणहार के रूप में देखा गया है, क्यों की गाय कई मायनों में दाता है, उसने
न केवल दूध दिया, बल्कि उन्होंने कृषि को भी संभव बनाया।
भारतीय समाज विशेष तौर पर हिन्दू धर्म में गाय को माँ के समतुल्य रखा गया है, और माँ को
ईश्वर से ऊपर स्थान दिया गया है। अतः हम यह समझ सकते हैं, की गाय यहां किस स्तर पर
पूजनीय है। गोदावरी या गोमती जैसी नदियों के नाम गाय से जुड़े हुए हैं। भारत में गाय पौराणिक
काल से ही मनुष्य की तारणहार के रूप में देखा गया है, क्यों की गाय कई मायनों में दाता है, उसने
न केवल दूध दिया, बल्कि उन्होंने कृषि को भी संभव बनाया।
संदर्भ
https://bit.ly/3idlAjV
https://cutt.ly/6QdRaqp
https://cutt.ly/gQdRdPC
चित्र संदर्भ 
1. प्राचीन मिस्र अथवा मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में हेलेनिस्टिक काल से पहले शाही पंथ फिरौन (Pharaoh) का एक चित्रण (flickr)
2. फिलिप द्वितीय, मैसेडोनिया के राजा, ग्रीक मूल की रोमन प्रति का एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत में पूजनीय गाय का एक चित्रण (flickr)
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        