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काली गर्दन वाले सारस, आर्द्रभूमि पर निर्भर भारत की मूल प्रजाति है,जो अपना घोंसला बनाने और दो से
अधिक अंडे नहीं देने का चयन करने में बहुत ही नाज़ुकमिज़ाज मानी जाती है। लेकिन इस वर्ष इनकी प्रजनन
आदतों में कुछ असामान्य दिख रहा है। पारिस्थितिक विज्ञानी ने सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान में चार बड़े चूजों के
साथ और सूरजपुर रिजर्व वन में दो युवा चूजों के साथ एक काली गर्दन वाला सारस देखा है।इन पक्षियों की
संख्या दिन-बर-दिन कम होती जा रही है और उनका प्रजनन दुर्लभ है। काली गर्दन वाले सारस तभी प्रजनन
करते हैं जब वे वातावरण को सुरक्षित पाते हैं। उनके घोंसले बड़े होते हैं और जब तक वे पूरी तरह से संतुष्ट
नहीं हो जाते, तब तक अंडे देने का विचार नहीं करते हैं। आमतौर पर, वे दो चूजों के प्रजनन के लिए जाने जाते
हैं। लेकिन इस बार एक दुर्लभ अवसर पर संभवतः महामारी को रोकने के कारण कम शोर और कम प्रदूषण की
वजह से काली गर्दन वाले सारस को 4 चूजों के साथ देखा गया है।
भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले सारस की 8 प्रजातियों में से काली गर्दन वाला सारस एक है। सात फ़ीट
के पंख वाला यह विशालकाय सारस लगभग 130 सेंटीमीटर (Centimeter) ऊंचा होता है और यह आमतौर पर
तराई के दलदल, नदियों और तालाबों के साथ-साथ कृषि क्षेत्रों (चावल, गेहूं और बाढ़ से घिरे खेतों) में या उसके
पास पाया जाता है।वे खाद्य पदार्थों की एक विस्तृत सूची का उपभोग करते हैं: जैसे,मेंढक, कछुए के अंडे,
मछलियाँ, सरीसृप, और पानी में रहने वाले पक्षी।यह बहुत ही तेजी से एक शिकार को मुंह में और एक को पंजों
से पकड़ने में माहिर हैं। उन्हें फ्लैप-शेल (Flap-shell) कछुओं को खाते हुए भी देखा गया है।
काले गर्दन वाले सारस प्रजनन के मौसम में और कभी-कभी उसके बाद भी जोड़ों में दिखाई देते हैं।वे उत्तर में
सूरजपुर पक्षी अभयारण्य, केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और पूर्वोत्तर में दीपोर बील
वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाते हैं। वे प्रायद्वीपीय और दक्षिणी भारत में बहुत कम पाए जाते हैं। भारतीय
उपमहाद्वीप के बाहर, वे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों जैसे कंबोडिया (Cambodia), म्यांमार (Myanmar), वियतनाम
(Vietnam) तथा दक्षिण में पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) में भी पाए
जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में तो इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। इसे कभी-कभी एक जाबिरू कहा जाता है,
हालांकि यह नाम अमेरिका में पाए जाने वाले सारस प्रजाति का है।
उत्तर भारत में रहने वाला एक मुस्लिम समुदाय 'मिरशिकर' जो पारंपरिक रूप से शिकारी, पक्षियों और छोटे
जानवरों का शिकार करते थे। यह नाम फारसी (Persian) और मुगल शासकों की सभा में सेवा करने वाले
"मुख्य शिकारियों" को भी दिया गया था, जो उन्हें शिकार करना सिखाते थे। इस समुदाय में एक प्रथा थी कि
नौजवान को शादी करने हेतु अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने के लिए एक काले गर्दन वाले सारस को जीवित
पकड़ना पड़ता था। हालांकि, 1920 के दशक में इस प्रथा को तब पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था, जब
एक काले गर्दन वाले सारस (जिसे स्थानीय रूप से लाह सारंग कहा जाता था) ने एक युवक को मार दिया, जो
प्रथा के अनुसार शादी के लिए इस पक्षी का शिकार करने गया था।
केवल इतना ही नहीं आज के बदलते मौसम और तीव्र शहरीकरण ने इस सुन्दर प्रजाति को लुप्त होने की
कगार पर पहुंचा दिया है। उन्हें आवासों का क्षतिग्रस्त होना, जल स्रोतों का क्षरण और जल निकासी, अपशिष्ट
पदार्थों का जलाशयों में निष्कासन, मनुष्यों द्वारा अत्यधिक मछली पकड़ना एवं बिजली की तारों से टक्कर
आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सारस की यह प्रजाति अपनी विचित्र क्रीड़ाओं के लिए विख्यात है।
इस प्रजाति के नर तथा मादा दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े होकर, जोर-जोर से अपने पंख फड़फड़ाते हैं
और अपनी ऊंची गर्दन को इस प्रकार आगे बढ़ाते हैं कि वह एक दूसरे से मिल जाए। फिर वे अपने चोंच को
बंद कर लेते हैं। यह क्रिया एक मिनट तक चलती है और कई बार दोहराई जाती है।
यह प्रजाति अपने घोंसले कृषि क्षेत्रों के निकट बनाती है तथा मानसून के चरम पर अर्थात सितंबर से नवंबर
महीनों में बड़े-बड़े वृक्षों पर बनाना शुरू करती है। कुछ घोंसले जनवरी के बाद भी बनाए जाते हैं। इनके घोंसले
लकड़ी, शाखाओं, पानी के पौधों और किनारों पर मिट्टी के प्लास्टर से बने होते हैं, जो 3 से 6 फ़ीट ऊंचे होते
हैं। सामान्य तौर पर इस प्रजाति के अंडे हल्के सफ़ेद रंग के और आकार में चौड़े होते हैं। इनके चूजे सफ़ेद रंग
के होते हैं, जिनकी गर्दन का रंग एक सप्ताह के भीतर गहरे भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है। कुछ माह तक
वयस्क पक्षी चूजों के लिए घोंसले में भोजन लाता है परंतु उसके बाद युवा पक्षियों को स्वयं ही परिश्रम करना
पड़ता है। वयस्क जोड़ा चूजों की देखरेख साथ में करते हैं परंतु एक वर्ष के बाद यह सभी अलग-अलग हो जाते
हैं।
प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ की लाल सूची के अनुसार काले गर्दन वाले सारस को 'खतरे के करीब'
घोषित किया गया है।हालांकि इसका मतलब है कि वे अभी तक गंभीर खतरे में नहीं हैं, लेकिन फिर भी काली
गर्दन वाला सारस कई खतरों से ग्रस्त है।इनकी प्रजाति परप्रमुख खतरों में उपयुक्त आवास का नुकसान, उथले
जल निकायों के क्षरण और जल निकासी, कचरे का क्षेपण, अत्यधिक मछली पकड़ना, शिकार करना और बिजली
की तारों से टक्कर शामिल हैं।हाल ही में,एक काले गर्दन वाले सारस जिसकी चोंच में एक प्लास्टिक का छल्ला
फंस गया था, तो उसे वन विभाग के साथ दिल्ली के पक्षीप्रेमियों ने बचाया और सफलतापूर्वक वापस छोड़ा।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3x21E7R
https://bit.ly/3rwFfOQ
https://bit.ly/2TD4J0A
https://bit.ly/3701GCs
चित्र संदर्भ
1. काली गर्दन वाले सारस, का एक चित्रण (wikimedia)
2. काली गर्दन वाले सारस, द्वारा कॉर्बेट, भारत में उड़ान) का एक चित्रण (wikimedia)
3. अपने बच्चों को घोंसले में ले जाते काली गर्दन वाले सारसों का एक जोड़ा (flickr)