टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करते मेरठ के खिलाडियों को हमारी शुभकामनायें

मेरठ

 24-07-2021 10:18 AM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

ओलंपिक खेल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली एक बहु-खेल प्रतियोगिता है, जिसमें बहुत सारी खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष का ओलंपिक, टोक्यो (Tokyo) में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें हर वर्ष की तरह अनेकों खेलों को शामिल किया गया है। इस वर्ष टोक्यो ओलंपिक में स्केट-बोर्डिंग (Skate-boarding) सहित कुछ ऐसे खेलों को भी शामिल किया गया है, जिन्हें पहले कभी शामिल नहीं किया गया था। स्केट-बोर्डिंग के अलावा टोक्यो ओलंपिक में शामिल कुछ अन्य खेल सर्फिंग (Surfing), स्पोर्ट क्लाइम्बिंग (Sport climbing), बेसबॉल (Baseball) और कराटे (Karate) हैं।<>br ओलंपिक में कुछ खेलों को शामिल नहीं किया गया है, जिनमें बास्क पेलोटा (Basque pelota), लैक्रोस (Lacrosse), रस्साकशी (Tug of war), क्रिकेट (Cricket) आदि शामिल हैं। किसी खेल के ओलंपिक में शामिल होने के लिए यह आवश्यक होता है, कि चार महाद्वीपों पर कम से कम 75 देशों में इसका एक पुरुष संघ होना चाहिए तथा तीन महाद्वीपों पर 40 देशों में एक महिला संघ होना चाहिए। इसके अलावा, खेलों का आयोजन करने वाला देश यह प्रस्ताव दे सकता है कि खेलों में उनकी ताकत के आधार पर या जलवायु या आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर खेलों को शामिल किया जाए या हटाया जाए। अंत में, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति यह तय करती है, कि उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं।
फ्री-रनिंग खेल पार्कौर (Parkour) को भी अगले ओलंपिक में शामिल किए जाने पर विचार किया जा रहा है। अगला ओलंपिक पेरिस (Paris) में होगा, जहां से पार्कौर की उत्पत्ति और विकास हुआ है।हालाँकि, जबकि ओलंपिक समिति पार्कौर को ओलंपिक में शामिल करने के लिए तैयार लगती है, वहीं पार्कौर की खेल संस्था और अधिकांश आयोजक यह नहीं चाहते कि यह खेल ओलंपिक का हिस्सा बने। असामान्य होते हुए भी, यह पार्कौर की उत्पत्ति/विकास से जुड़ा हुआ है। पार्कौर एक ऐसा प्रशिक्षण या खेल या गतिविधि है, जो शारीरिक गति पर आधारित है। इस खेल का विकास सैन्य अवरोध कोर्स प्रशिक्षण से हुआ है। इस खेल के अंतर्गत अभ्यासकर्ता जिसे ट्रेसर (Tracers) कहा जाता है, को एक जटिल वातावरण में बिना किसी सहायता या उपकरण के एक स्थान से दूसरे स्थान में जाना होता है। यह दूरी तय करने के लिए उसे उस रास्ते को अपनाना होता है, जो बहुत कम समय में उसे निर्धारित स्थान या बिंदु पर पहुंचा दें, किंतु यह दूरी तय करते समय उसकी गति अधिकतम होनी चाहिए। पार्कौर शब्द की उत्पत्ति ‘पारकोर्स डू कॉम्बैटेंट’ (Parcours du combatant – अवरोध प्रशिक्षण) से हुई है। इसका प्रयोग सैन्य प्रशिक्षण के लिए किया जाता था, जिसमें सैनिकों को विभिन्न बाधाएं पार करते हुए आगे बढ़ना होता है। इसकी वास्तविक शुरूआत को देंखे तो इसके लिए 1900 के फ्रांसीसी नौसेना अधिकारी जॉर्जेस हेबर्ट (Georges Hébert) को उत्तरदायी माना जाता है, जिन्होंने समाज के मजबूत, साहसी और परोपकारी सदस्य बनने के लिए प्रशिक्षण की एक प्राकृतिक पद्धति को तैयार किया और उसे बढ़ावा दिया। इस प्राकृतिक पद्धति को उन्होंने मेथोड नेचरल (Méthode naturelle) नाम दिया। इसे लागू करने के लिए, उन्होंने 'पारकोर्स' (Parcours) नामक एक बाधा कोर्स का प्रस्ताव रखा, जिसका उपयोग अभी भी सेना और अन्य संगठनों द्वारा किया जाता है। 1940 और 1950 के दशक में, रेमंड बेले (Raymond Belle) ने इसे सीखा और वह इसमें बहुत कुशल बने। उन्होंने इस बाधा कोर्स को 1973 में पैदा हुए अपने बेटे डेविड बेले (David Belle) को भी सिखाया। 1980 के दशक के अंत में, डेविड बेले ने इसे अपने अन्य साथियों को सिखाया और इसमें होने वाली गतिविधियों को संगठित और संरचित रूप देकर अनजाने में इसे “पार्कौर” नाम दिया।
1990 के दशक के मध्य से, पार्कौर फ्रांस (France)और यूरोप (Europe)के अन्य स्थानों के आसपास लोकप्रिय होने लगा।भारत में पार्कौर का खेल सीधे हमारे रामपुर शहर से जुड़ा हुआ है, जहां 8 से 10 साल पहले, युवा लड़कों के एक समूह ने इंटरनेट पर पार्कौर देखा और लियोनिन (Leonine) नामक टीम बनाने के लिए एक साथ इसका अभ्यास किया। गो प्रो (Go pro) और ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म जैसे माउंटेड कैमरों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण पार्कौर एक ऐसे अनुभव में बदल गया है, जिसे देखकर लगता है, कि हम स्वयं इस गतिविधि या खेल का हिस्सा हैं अर्थात ऐसा प्रतीत होता है, कि हम स्वयं इस गतिविधि को कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्यों कि माउंटेड कैमरे की मदद से दर्शक,कलाकारों की दृष्टि से इस गतिविधि का अनुभव कर पाते हैं। इस अनुभव के कारण ही पार्कौर की लोकप्रियता में अत्यधिक वृद्धि हो रही है। भारत में पहले तक पार्कौर केवल महानगरों जैसे मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद में केंद्रित था, क्यों कि इन शहरों में लोगों की पहुंच खेल के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले प्रशिक्षकों और अन्य सुविधाओं तक होती है। लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य विशेषकर रामपुर अब इस उभरते खेल का मुख्य केंद्र बन गया है। यहां के अनेकों युवा इस खेल की ओर अपना रूझान दिखा रहे हैं, तथा इसमें बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रामपुर का नाम रौशन कर रहे हैं। अन्य खेलों के विपरीत, पार्कौर के प्रशिक्षण के लिए किसी खुले मैदान या अन्य सुविधाओं की आवश्यकता नहीं होती। किसी स्थान का लेआउट या संरचना जितनी जटिल होगी, उतना ही खिलाड़ियों का प्रशिक्षण अच्छा होता जाएगा। अभ्यास स्थान की जटिल संरचना खिलाड़ियों के सामने अधिक चुनौतियां प्रस्तुत करती हैं, जो उनकी रचनात्मकता का परीक्षण करता है। इस प्रकार यह खेल रोमांच, साहस और अनुशासन से भरा हुआ है।

संदर्भ:

https://nyti.ms/3rvCBZJ
https://bit.ly/36U6Tf5
https://bit.ly/3zsXfMI
https://bit.ly/2TuBGMt
https://bit.ly/3ryehpZ
https://bit.ly/2WgN5kh
https://bit.ly/3ryeoSr

चित्र संदर्भ
1. पार्कोर खेल का अभ्यास करते खिलाडी का एक चित्रण (flickr)
2. पार्कोर खेल के अंतर्गत अभ्यासकर्ता जिसे ट्रेसर (Tracers) एक चित्रण (wikimedia)
3. डेविड बेले को पार्कौर का संस्थापक माना जाता है जिनका एक चित्रण (wikimedia)

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