भारत में लोक रंगमचों का रोमांचक इतिहास

मेरठ

 23-07-2021 10:14 AM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

आज के इस डिजिटल युग में कलाकारों के प्रदर्शन को सीधे तौर पर लाइव (live) देखना, एक अद्भुद अनुभव होता है। विशेष तौर पर लोक रंगमंचो ने प्राचीन समय से ही दुनिया भर की आबादी को रोमांचित किया है, और मनोरंजन दिया है। हालांकि यह अनुभव 19वीं सदी में बेहद आम थे, परंतु आज यह प्रदर्शन दुर्लभ हो रहे हैं।
ऑस्कर वाइल्ड (Oscar Wilde) ने रंगमंच को कला के विभिन्न रूपों में सबसे महान बताया “मैं रंगमंच को सभी कला रूपों में सबसे महान मानता हूँ, यह सबसे तात्कालिक तरीक़ा है जिससे एक इंसान दूसरे के साथ साझा कर सकता है कि एक इंसान होने का क्या मतलब है।” लोक रंगमंच संगीत, नृत्य, नाटक, शैलीबद्ध भाषण और तमाशे को स्थानीय पहचान और देशी संस्कृति रूप में समग्र कला के रूप में प्रदर्शित करता है। पारस्परिक संचार का यह रूप अपने समय की सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं को दर्शाता है। भारत में लोक रंगमंच का एक लंबा, समृद्ध और शानदार इतिहास रहा है। प्राचीन काल में, संस्कृत नाटकों का मंचन मौसमी त्योहारों या विशेष आयोजनों को मनाने के लिए किया जाता था, और 15वीं और19वीं शताब्दी के मध्य, कई भारतीय राजाओं के दरबार में अभिनेताओं और नर्तकियों को विशिष्ट स्थान भी दिए गए। उदहारण के तौर पर त्रावणकोर और मैसूर के महाराजाओं ने भी अपने नाटक मंडलों की श्रेष्ठ प्रतिभा को साबित करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा भी की। रंगमंचों ने स्थानीय मिथकों, वेशभूषा और मुखौटों को नाटक के प्राचीन रूप में प्रदर्शित किया, जिसके परिणामस्वरूप लोक रंगमंच की विविध क्षेत्रीय शैलियों का विकास हुआ। यह परंपरा ब्रिटिश शासन के तहत भी भारत की रियासतों में जारी रही। भारत में रंगमंच उतना ही पुराना है जितना उसका संगीत और नृत्य। जहाँ शास्त्रीय रंगमंच केवल कुछ स्थानों पर ही जीवित रहता है, वहीँ लोक रंगमंच अपने क्षेत्रीय रूपों में व्यावहारिक रूप से हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। लोक रंगमंच ने सदियों से ग्रामीण दर्शकों का मनोरंजन किया है। इसने विभिन्न भाषाओं में आधुनिक थिएटरों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 19वीं सदी के नाटक लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी रंगमंच के जनक के रूप में भी जाना जाता है, उन्होंने लोक सम्मेलनों को पश्चिमी नाट्य रूपों के साथ जोड़ा जो उस समय बेहद लोकप्रिय हुए। रवींद्रनाथ टैगोर के नाटक भी बाउल (Baul) गायकों और लोक रंगमंच के प्रभाव को दर्शाते हैं।
आज, लोक रंगमंच कला का ही एक रूप माना जाता है, जो नाटक के मूल तत्वों को दर्शाता है। यही पहलू लोक रंगमंच को भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का एक जीवंत और महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में नाटकों के मंचन में कई अर्ध-पेशेवर और शौकिया रंगमंच समूह शामिल हैं।
रामपुर में नुक्कड़ नाटकों, रंगमंच और यहाँ तक ​​कि कठपुतली शो के रूप में रामायण और महाभारत के विभिन्न चित्रण देखे जा सकते हैं। लोक रंगमंच भारत में संगीत, नृत्य, पैंटोमाइम, छंद, महाकाव्य और गाथागीत पाठ के तत्वों के संयोजन के साथ एक समग्र कला रूप है। रंगमंच में मुख्य रूप से रासलीला, नौटंकी और रामलीला जैसे कुछ लोक नाट्य रूपों को पूरे देश में मान्यता प्राप्त है, परंतु भारत भर में सुंदर लेकिन कम ज्ञात लोक नाट्य रूपों की भी अपनी एक लंबी सूची है।
1 कूडियाट्टम (Koodiyattam)
भारत के सबसे पुराने पारंपरिक थिएटरों में से एक, कूडियाट्टम (Koodiyattam) संस्कृत थिएटर के प्राचीन परंपरागत सिद्धांतों का पालन करता है। 2001 में, कूडियाट्टम को आधिकारिक तौर पर यूनेस्को द्वारा मानवता की मौखिक और अमूर्त विरासत की उत्कृष्ट कृति के रूप में मान्यता दी गई थी।
2. यक्षगान:
लगभग चार सौ वर्षों के लंबे इतिहास के साथ यक्षगान कर्नाटक का एक लोकप्रिय लोक नाट्य रूप है। यह संगीत परंपरा, आकर्षक वेशभूषा और नृत्य की प्रामाणिक शैलियों, कामचलाऊ हावभाव और अभिनय का एक अनूठा सामंजस्य है, पारंपरिक रूप से शाम से भोर तक प्रस्तुत किया जाने वाला यह लोक रंगमंच मुख्य रूप से कर्नाटक के तटीय जिलों में देखा जाता है।
3. स्वांगो
हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में एक लोकप्रिय लोक नाट्य रूप, स्वांग संगीत के आसपास केंद्रित है। इस लोक रंगमंच में, धार्मिक कहानियों और लोक कथाओं को एक दर्जन या उससे अधिक कलाकारों के समूह द्वारा अभिनयित किया और गाया जाता है। स्वांग की दो महत्त्वपूर्ण शैलियाँ हैं-एक जो रोहतक (बंगरू भाषा में प्रदर्शित) से सम्बंधित है और दूसरी जो हाथरस (ब्रजभाषा भाषा) से सम्बंधित है।
4. भांड पाथेर
कश्मीर का सदियों पुराना पारंपरिक रंगमंच, भांड पाथेर नृत्य, संगीत और अभिनय का एक अनूठा संयोजन है। इस लोक नाटक में आमतौर पर व्यंग्य, बुद्धि और पैरोडी का उपयोग किया जाता है, जिसमें स्थानीय पौराणिक कथाओं और समकालीन सामाजिक टिप्पणियों को शामिल किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से पारंपरिक-लोक रूपों के माध्यम से संपर्क किया जाना चाहिए। जनता के बीच विकास कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार के लिए लोक रंगमंच बेहद उपयोगी साबित हुए,महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए अभियान इत्यादि के बल पर आजादी से पहले लोक रंगमंच लोगों की अंतरात्मा को जगाने में भी यह बेहद कारगर साबित हुए।
2020 से शुरू हुई COVID-19 महामारी ने कला के सभी रूपों प्रभावित किया है, रंगमच भी इससे अछूते नहीं रहे। महामारी के कारण अधिकांश थिएटर प्रदर्शन रद्द कर दिए गए हैं, अथवा उन्हें लंबे समय के लिए टाल दिया गया है। न्यूयॉर्क में सभी ब्रॉडवे थिएटर (Broadway Theater) बंद कर दिए गए थे। साथ ही लंदन में वेस्ट एंड थिएटर (West End Theater) भी बंद कर दिए गए थे। अधिकांश ऑर्केस्ट्रा (Orchestra) प्रदर्शन रद्द या स्थगित कर दिए गए हैं। कनाडाई ओपेरा कंपनी (Canadian Opera Company) , मेट्रोपॉलिटन ओपेरा और द रॉयल ओपेरा (the Metropolitan Opera and The Royal Opera) जैसी कंपनियों द्वारा अधिकांश ओपेरा प्रस्तुतियों को रद्द या स्थगित कर दिया गया है। अधिकांश नृत्य कंपनियों ने 2019- 2020 सीज़न के अपने शेष को रद्द कर दिया।

संदर्भ
https://bit.ly/3xUz2P4
https://bit.ly/3ByGjGo
https://bit.ly/3izueIE

चित्र संदर्भ
1. भारतीय नृत्य महोत्सव मामल्लापुरम का एक चित्रण (flickr)
2. इंडियन रंगमंच ग्रुप, मुंबई (1870) का एक चित्रण (flickr)
3. भारत के सबसे पुराने पारंपरिक थिएटरों में से एक, कूडियाट्टम का एक चित्रण (flickr)
4. यक्षगान कर्नाटक का एक लोकप्रिय लोक नाट्य रूप का एक चित्रण (Wikimedia)
5. कश्मीर का सदियों पुराना पारंपरिक रंगमंच, भांड पाथेर नृत्य, का एक चित्रण (youtube)

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