शहरीकरण का शहरी तापमान की प्रवृत्ति और शहर के स्थानीय वातावरण पर इसके प्रभाव का आकलन
आजकल पर्यावरण वैज्ञानिक और योजनाकारों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। शहरी तापमान की
बढ़ोत्तरी और इसके मानव जीवन पर पड़ते प्रतिकूल प्रभाव शहरीकरण की बड़ी चुनौतियों में से एक है।भारत में
ग्रीष्म लहरें काफी आम हैं लेकिन हाल के वर्षों में ये लहरें अधिक बारंबार, तीव्र और लंबी हो गई हैं, जो
आंशिक रूप से शहरी ऊष्मा द्वीपों के प्रभाव के कारण हो रही हैं। जहां भारत में बहुत तेज़ी से शहरीकरण हो
रहा है, इस तेजी से शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूमि के उपयोग में भी काफी परिवर्तन देखा जा सकता है।
शहरी ऊष्मा द्वीप के प्रभाव को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में से मेरठ में भी देखा जा सकता है। दिल्ली में 30
जून 2021 को अधिकतम तापमान 43.73 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जब बारिश होनी चाहिए थी, तब
दिल्ली में लू चल रही थी। यह 1951 के बाद से इस दिन का दूसरा उच्चतम अधिकतम तापमान है। तापमान
की ये बढ़ोत्तरी नगरों के शहरी ऊष्मा द्वीपों के बनने से हो रही है।
ऐसा नगर, जिसकी जनसंख्या का घनत्व अधिक हो, और वह अपने आस-पास के ग्रामीण या उपनगरीय क्षेत्रों
से अधिक गर्म हो, उसे शहरी उष्ण द्वीप (Urban Heat Islands- UHI) कहा जाता है।एक शहरी ऊष्मा द्वीप
एक ऐसा क्षेत्र होता है जो अपने उपनगरीय और ग्रामीण परिवेश की तुलना में काफी गर्म होता है। साथ ही इन
शहरों में दिन के अधिकतम तापमान और रात के अधिकतम तापमान के बीच का अंतर वर्षों से कम होता जा
रहा है। दूसरे शब्दों में, गर्म शहर न केवल दिन में गर्म होते हैं, बल्कि इनमें रात के बाद भी गर्मी बरकरार
रहती हैं। शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव का मुख्य कारण भूमि की सतहों का संशोधन है।
क्योंकि अधिक खुली
जगह, पेड़-पौधों और अधिक घास से परिपूर्ण गांवों की तुलना में शहरों में पत्थर के फर्श, सड़क और छत बनाने
में बजरी, डामर और ईंट जैसी सामग्रियों का उपयोग होता है, जो अपारदर्शी होते हैं और प्रकाश को संचारित
नहीं करते हैं। वहीं शहरी ऊष्मा द्वीप की उत्पत्ति में अन्य योगदान कारक पानी, प्रदूषण और ऊर्जा के गंदे
स्रोतों पर निर्भर आर्थिक गतिविधि है। इस घटना की सबसे पहले जांच और वर्णन ल्यूक हॉवर्ड (Luke
Howard) ने 1810 के दशक में किया था, हालांकि वह इस घटना का नाम रखने वाले व्यक्ति नहीं थे।
तेजी से शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूमि के उपयोग में भी काफी परिवर्तन देखा जा सकता है। शहरीकरण के
परिणामस्वरूप नाटकीय भूमि-उपयोग परिवर्तन हो रहे हैं। पिछले चार दशकों में, दिल्ली में निर्मित क्षेत्र में
30.6% की वृद्धि देखी गई, जबकि खेती वाले क्षेत्रों में 22.8% और घने जंगल में 5.3% की कमी आई है।
इस बढ़ते शहरीकरण का प्रभाव न सिर्फ बढ़ते प्रदूषण की ओर इशारा करता है बल्कि ये ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ के
क्षेत्रों में भी वृद्धि की ओर संकेत करता है। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of
Technology-IIT) खड़गपुर के एक अध्ययन में "एंथ्रोपोजेनिक फोर्सिंग एक्ससेर्बिंग द अर्बन हीट आइलैंड्स इन
इंडिया" (Anthropogenic forcing exacerbating the urban heat islands in India) कहा गया है,
उपनगरों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अपेक्षाकृत गर्म तापमान में प्रदूषण के अलावा गर्मी की लहरों के कारण
संभावित स्वास्थ्य खतरे हो सकते हैं। इस शोध में नगरीय और उपनगरीय भूमि के सतही तापांतर का अध्ययन
किया गया। यह शोध वर्ष 2001-2017 के दौरान 44 प्रमुख शहरों में किये गए अध्ययन पर आधारित है।
पहली बार शहरी ऊष्मा द्वीपों का सतही औसत दैनिक तापमान 2°C से अधिक होने के प्रमाण पाए गए।
दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, हैदराबाद और चेन्नई जैसे सभी नगरों में ऐसे प्रमाण मिले हैं। यह विश्लेषण मानसून
और उत्तर- मानसून काल में उपग्रह आधारित तापमान मापन पर आधारित है। बढ़ती उष्णता का कारण रोड,
फुटपाथ और छतों पर इस्तेमाल होने वाला कांक्रीट, डामर और ईंट जैसे पदार्थ हैं। ये पदार्थ अपारदर्शी होने के
कारण कारणों को अवशोषित कर लेते हैं, और उष्मीय चालक बन जाते हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में खुली जगह, भूमि,
पेड़ों और घास की अधिकता होने के कारण वाष्प-उत्सर्जन अधिक होता है। इससे वातावरण की वायु नम रहती
है। शहरी ऊष्मा द्वीप के कारण नगरीय वायु गुणवत्ता में भी कमी आती है, नगरीय उच्च तापमान के कारण
कुछ प्रजातियां जैसे कि चींटियां, कीड़े, छिपकली आदि का अतिक्रमण भी बढ़ता जा रहा है। ऐसी प्रजातियों को
एक्टोथर्म (Ectotherms) कहा जाता है। इसके अलावा नगरीय क्षेत्र में ऊष्मा का अनुभव किया जाता है जो
मानव और पशु दोनों के स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक हैं, इसके कारण शरीर में ऐंठन, अनिद्रा और मृत्यु दर
में वृद्धि देखी जाती है। शहरी ऊष्मा द्वीप आसपास के जल क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है जहाँ से गर्म जल
शहर की सीवर नालियों से होता हुआ आसपास की झीलों और खाड़ियों में पहुँचता है और इनके जल स्रोतों के
जल की गुणवत्ता खराब करता है।
औद्योगीकरण और आर्थिक विकास जरूरी हैं। परंतु शहरी उष्ण द्वीपों को नियंत्रित रखना भी इतना ही जरूरी
है। इसके लिये निम्न तरीके कारगर हो सकते हैं:
1.हल्के रंग की कांक्रीट चूने का पत्थर और डामर की सहायता से हल्की गुलाबी या सलेटी सड़कें बनाई
जा सकती हैं। काले रंग से ये 50% अधिक ठीक हैं। ये गर्मी को कम अवशोषित करती हैं और
सूर्यताप को अधिक परावर्तित करती हैं। अमेरिका में कुछ स्थानों पर यह प्रयोग किया गया है। छतों
को हरा बनाया जाए, और उस पर सोलर पैनल लगाए जाएं।
2. अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाएं। इससे कई प्रकार के लाभ हो सकते है, जैसे कि ये प्रदूषण-कणों को
अवशोषित करने के साथ ही ये शहरों को ठंडा रखने में मदद कर सकते हैं। वे प्रदूषक गैसों (NXOy,
O3, NH3, SO2 आदि) को अवशोषित करके आसपास की हवा को साफ करते हैं। पेड़-पौधे जलवायु
परिवर्तन का मुकाबला करने में सहायता करते हैं। जल संरक्षण को बढ़ाते हैं और जल प्रदूषण को
रोकते हैं तथा मृदा अपरदन को रोकते है आदि।
3. लॉकडाउन के दौरान यह भी देखने को मिला की प्रदूषण स्तर में भारी गिरावट आई। इस प्रकार, यह
निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वायु प्रदूषण और तापमान को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन
एक वैकल्पिक उपाय हो सकता है।
शहरी उष्ण द्वीप दो प्रकार के होते हैं: सतही और वायुमंडलीय। सतही को भूमि सतह तापमान(Land
Surface Temperature (LST)) के आधार पर मापा जाता है, जबकि वायुमंडलीय को हवा के तापमान के
आधार पर मापा जाता है। लॉकडाउन में देखा गया कि सीमित गतिविधियों से भूमि सतह तापमान में कमी
आई है, अत: इसे देखते हुये कहा जा सकता है कि संगत तापमान और भारत में कोविड-19 के प्रसार की
दर के बीच संबंध स्थापित किया जा सकता है।
बढ़ते जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को देखते हुए शहरों को आग के गोले में परिवर्तित होने से बचाना हमारी
प्राथमिकता होनी चाहिए। इस लिये अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिये परंतु पौधारोपण के साथ-
ज़िम्मेवारी है, साथ ही उनकी निरंतर देखभाल भी की जानी चाहिये। तेज गति से आर्थिक विकास के लिए
शहरीकरण को एक अनिवार्य हिस्सा है। लेकिन हमें चाहिए कि इसे सुरक्षित और रहने योग्य बनाए रखें। तभी
हम विकास की राह में आगे जा सकेंगे।
संदर्भ:
https://bit.ly/3BcWTf6
https://bit.ly/3BfTtYL
https://bit.ly/3z5Jaod
https://bit.ly/3Ba49YZ
https://bit.ly/2UjJbX2
चित्र संदर्भ
1. महालक्ष्मी नगर पालिका, ललितपुर नेपाल में ईंट कारखानों द्वारा वायु प्रदूषण का एक चित्रण (wikimedia)
2. शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव का तंत्र (जापानी में) का एक चित्रण (wikimedia)
3. शिकागो सिटी हॉल की हरी छत का एक चित्रण (wikimedia)
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