जैन समुदाय अहिंसा और शांतिवादी प्रकर्ति के अनुरूप दुनिया भर में आदर्श माना जाता है। यहाँ अनेक ऐसे
महान तीर्थकर हुए हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान और विद्या के बल पर पूरे विश्व में अपार ख्याति प्राप्त की। ऐसे
ही प्रमुख तीर्थकरों (जैन धर्म में तीर्थंकर उन चौबीस व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप
के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करते है, और जिन्होंने पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर
विजय प्राप्त कर ली हो।) उनमे में से एक हैं, श्री शांतिनाथ अथवा वर्तमान युग के (अवसर्पिणी)।
जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों को प्रमुख रूप से अनुसरित किया जाता है। शांतिनाथ इन्हीं 24 जैन तीर्थकरों में से
अवसर्पिणी काल के सोलहवे तीर्थंकर थे। श्री शांतिनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के हस्तिनापुर में राजा
विश्वसेन और रानी अचिरा के घर में ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था। अपने पिता के बाद 25 वर्ष की
आयु में वे हस्तिनापुर के राजा घोषित किये गये। जैन ग्रंथो में उनके स्वरूप को कामदेव के सामान रूपवान
बताया गया है, साथ ही इन ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि, उनकी 96 हज़ार रानियाँ थीं, उनके पास 84 लाख
हाथी, 360 रसोइए, 84 करोड़ सैनिक, 28 हज़ार वन, 360 राजवैद्य, 32 हज़ार अंगरक्षक, 32 हज़ार
मुकुटबंध राजा, 16 हज़ार खेत, तथा 4 हज़ार मठ सहित अपार संपदा थी।
ऐसी मान्यता है कि वैराग्य भाव आने से पूर्व इन्होने ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को दीक्षा प्राप्त की। अपनी मोक्ष
यात्रा में उनके साथ 100 अन्य साधु भी शामिल हो गए थे। बारह माह की साधना से शांतिनाथ ने पौष शुक्ल
नवमी को 'कैवल्य' प्राप्त किया। और ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी के दिन सम्मेद शिखर पर भगवान शान्तिनाथ
ने पार्थिव शरीर का त्याग किया था।
प्रत्येक तीर्थंकर का एक विशिष्ट प्रतीक होता है, जो उपासकों को तीर्थंकरों की समान दिखने वाली मूर्तियों
में अंतर करने की क्षमता देता है। भगवान् शांतिनाथ की अधिकांश चित्रों और प्रतिमाओं में उन्हें आमतौर
पर बैठे या खड़े ध्यान मुद्रा में चित्रित किया जाता है, जिसके नीचे एक हिरण या मृग का प्रतीक होता है।
जैनधर्म की मान्यता अनुसार हिरण यह संदर्भित करता है कि 'तुम भी संसार में संगीत के समान प्रिय
लगने वाले चापलूसों / चमचों की दिल-लुभाने वाली बातों में न फ़ंसना, अन्यथा बाद में पछताना पडेगा।
यदि तनाव-मुक्ति चाहते हो तो, मेरे समान सरल-सीधा चलो तथा पापों से बचों और हमेशा चौकन्ने रहो।
मेरठ के निकट हस्तिनापुर में स्थित श्री दिगंबर प्राचीन बड़ा मंदिर 16वें जैन तीर्थंकर शांतिनाथ को
समर्पित एक जैन मंदिर परिसर है। यह हस्तिनापुर का सबसे पुराना जैन मंदिर है।
हस्तिनापुर को जैन धर्म
के 16 वें, 17 वें और 18 वें तीर्थकरों अर्थात शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ की जन्म स्थली भी माना जाता
है। साथ ही जैन अनुयाई यह भी मानते हैं कि, यहाँ पहले तीर्थंकर, ऋषभनाथ ने राजा श्रेयन्स से गन्ने का
रस प्राप्त करने के बाद, अपनी 13 महीने की लंबी तपस्या का भी समापन किया था। मुख्य मंदिर का
निर्माण वर्ष 1801 में राजा हरसुख राय के सान्निध्य में किया गया था, जो चारों और से विभिन्न तीर्थंकरों
को समर्पित जैन मंदिरों के एक समूह से घिरा हुआ है, जिनमे से अधिकांश को 20 वीं शताब्दी के अंत में
बनाया गया था। यहाँ के मुख्य मंदिर में 16 वें तीर्थंकर, श्री शांतिनाथ पद्मासन मुद्रा में हैं। साथ ही परिसर
की बायीं वेदी में 12 वीं शताब्दी की श्री शांतिनाथ की मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थापित है।
कायोत्सर्ग मुख्यतः योगिक ध्यान की मुद्रा का नाम है। जैन धर्म के अधिकांश तीर्थंकरों को कायोत्सर्ग या
पद्मासन मुद्रा में ही दर्शाया जाता है। जैन ग्रन्थ, मूलाचार के अध्याय 7, Ga 153 की परिभाषा के अनुसार
कायोत्सर्ग का अर्थ 'शरीर के मातृत्व भाव का त्याग' है। इस मुद्रा में दोनों पैरों के बीच में चार अंगुल का
अंतराल दिया जाता है। दोनों भुजाएँ स्वतंत्र रूप से लटकी रहती हैं, साथ ही शरीर के समस्त अंगो को
निश्चल करके यथानियम श्वास लेने (प्राणायाम) करने का अर्थ कायोत्सर्ग होता है। कायोत्सर्ग ध्यान की
शारीरिक अवस्था (समाधि) का पर्यायवाची होता है। कायोत्सर्ग को शरीर के अस्तित्व को खारिज करने के
रूप में भी जाना जाता है। तीर्थकरों की मूर्तियों की ऐसे देवताओं के रूप में पूजा नहीं की जाती है जो
आशीर्वाद देने या मानवीय घटनाओं में हस्तक्षेप करने में सक्षम होते हैं, इसके बजाय, जैन अनुयाई उन्हें
समस्त प्रकर्ति तथा प्राणियों के प्रतिनिधियों के रूप में श्रद्धांजलि देते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3eoAm5g
https://en.wikipedia.org/wiki/Shantinatha
https://en.wikipedia.org/wiki/Kayotsarga
https://www.britannica.com/topic/kayotsarga
चित्र संदर्भ
1. श्री शांतिनाथ बड़ा मंदिर हस्तिनापुर का एक चित्रण (wikimedia)
2. तीर्थंकर शांतिनाथ की छवि (छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, 12 वीं शताब्दी का एक चित्रण (wikimedia )
3. कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े होकर ध्यान का अभ्यास करते बाहुबली का एक चित्रण (wikimedia)
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