भगवान कृष्ण और भगवान जगन्नाथ और उनके संबंधों के बारे में कथा

मेरठ

 12-07-2021 08:47 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

प्रत्येक वर्ष आज के दिन, रामपुर में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा ठाकुर द्वार मंदिर से शुरू होकर शहर के विभिन्न स्थानों तक जाती है। इस रथयात्रा के दौरान रथों को विभिन्न श्रद्धालु खींचने का कार्य करते हैं।जैसे कि हम सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश और श्री कृष्ण भगवान का एक अत्यंत ही दुर्लभ रिश्ता है, यहीं के मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, यहीं के नंद गाँव में भगवान का लालन पालन किया गया और यहीं कृष्ण अपनी गायों के साथ यमुना जी के किनारे विचरण किया करते थे। उत्तर भारत के मथुरा, हस्तिनापुर आदि स्थलों पर कृष्ण भगवान से जुड़ी कई कहानियां और घटनाएं मौजूद हैं जिन्हें हम महाभारत से लेकर अन्य धर्मग्रंथों के माध्यम से पढ़ते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि उत्तर भारत के श्री कृष्ण को दक्षिण भारत में जगन्नाथ भगवान के रूप में पूजा जाता है?
दरसल ऐसा माना जाता है कि जब द्वारका में श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार किया गया, तब अपने प्रिय भाई कृष्ण के दुःख से उबरने के लिए, बलराम श्रीकृष्ण के आंशिक रूप सेदाह हुए शरीर को लेकर समुद्र में डूब गए। सुभद्रा भी दोनों भाइयों के पीछे चलकर समुद्र में डूब गई। उसी समय भारत के पूर्वी तट पर पुरी के राजा इंद्रद्युम्न को एक स्वप्न आया। जिसमें राजा इंद्रद्युम्न ने नीला माधव नामक एक सुंदर नीले देवता का सपना देखा।यह नाम देवता के नीलम रंग का वर्णन करता है: नीला का अर्थ है नीला, और माधव कृष्ण के नामों में से एक है।राजा इंद्रद्युम्न ने सपना देखने के बाद नीला माधव को खोजने के लिए सभी दिशाओं में दूत भेजे और विद्यापति नाम के एक ब्राह्मण सफल होकर लौटे। उन्होंने पाया कि विश्ववासु, एक सुदूर आदिवासी गाँव में एक सुअर किसान (सावर) गुप्त रूप से नीला माधव की पूजा कर रहा था। जब विद्यापति बाद में इंद्रद्युम्न के साथ उस स्थान पर लौटे तो तब तक वहां से नीला माधव चले गए थे। राजा इंद्रद्युम्न ने अपने सैनिकों के साथ गांव को घेर लिया और विश्ववासु को गिरफ्तार कर लिया। तभी आकाश से एक आवाज आई, "सावर को छोड़ दो और नीला पहाड़ी की चोटी पर मेरे लिए एक बड़ा मंदिर बनाओ। वहाँ तुम मुझे नीला माधव के रूप में नहीं, बल्कि नीम की लकड़ी के रूप में देखोगे।” नीला माधव ने लकड़ी (दारू) के रूप में प्रकट होने का वादा किया, और इस प्रकार उन्हें दारू-ब्रह्म ("लकड़ी- आत्मा") कहा जाता है।
इंद्रद्युम्न समुद्र के किनारे प्रतीक्षा कर रहे थे, जहां भगवान एक विशाल लकड़ी के कुन्दा के रूप में समुद्र तट की ओर तैरते हुए पहुंचे। देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा, एक बूढ़े व्यक्ति के भेष में, देवताओं को तराशने के लिए पहुंचे, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि उन्हें इक्कीस दिनों तक कोई परेशान नहीं करेगा।राजा इंद्रद्युम्न ने सहमति व्यक्त की, और शिल्पकार ने बंद दरवाजों के पीछे काम किया। समय अवधि समाप्त होने से पहले, शोर बंद हो गया, और राजा इंद्रद्युम्न की तीव्र जिज्ञासा ने उन्हें दरवाजे खोलने के लिए विवश कर दिया।विश्वकर्मा गायब हो गए थे। कमरे में, जगन्नाथ, बलदेव, और सुभद्रा के रूप में बनाए गए तीन देवता अधूरे से लग रहे थे, वेबिना हाथ और पैर के थे, जिसे देख इंद्रद्युम्न बहुत परेशान हो गए और यह सोचने लगे कि उन्होंने भगवान को नाराज कर दिया है। उस रात, जगन्नाथ ने एक सपने में राजा से बात की और उन्हें यह समझाते हुए आश्वस्त कियाकि वह अपनी खुद की अकल्पनीय इच्छा से खुद को उस रूप में प्रकट कर रहे थे, ताकि वे दुनिया को यह दिखा सके कि वे बिना हाथों के प्रसाद स्वीकार कर सकते हैं, और बिना पैरों के घूम सकते हैं।भगवान जगन्नाथ ने राजा से कहा, "निश्चित रूप से जान लो कि मेरे हाथ और पैर सभी आभूषणों का आभूषण हैं, लेकिन अपनी संतुष्टि के लिए, आप समय-समय पर मुझे सोने और चांदी के हाथ और पैर दे सकते हैं।" आज भी माना जाता है कि भगवान् जगन्नाथ की मूर्ती में कृष्ण भगवान् का दिल स्थित है, इसे तत्वा के नाम से जाना जाता है। हर 12 वर्षों में भगवान् जगन्नाथ की मूर्ती को बदलने का कार्य किया जाता है तथा इसे नाबाकलेरब के रूप में जाना जाता है।
इस कहानी के अलावा कई अन्य कहानियां भी पुरी की रथयात्रा से जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए कई कानून भी व्याप्त हैं, इस मंदिर में सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही जा सकते हैं, कई महान लोगों को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया था जिसमें संत कबीर और गुरु नानक देव जी भी शामिल हैं। हांलाकि रथयात्रा में सभी को शामिल होने की अनुमति है।रथ यात्रा का महत्व प्रत्येक मनुष्य के लिए अपार है जो कि आध्यात्मिक योग्यता और अंतिम मुक्ति को चाहता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में रस्से को खींचता है या छूता मात्र है तो उसे कई तपस्याओं का गुण प्राप्त होता है। इसके अलावा गुंडीचा मंदिर में भगवान् जगन्नाथ और अन्य देवों का दर्शन करता है उसे 100 घोड़ों के बलिदान के जितना वरदान प्राप्त होता है।
स्कंद पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ-पूर्णिमा, मई-जून के महीने की पूर्णिमा में भगवान जगन्नाथ का जन्मदिन होता है। जगन्नाथ भगवान श्री कृष्ण भगवान हैं, लेकिन श्री कृष्ण भगवान का जन्मदिन भाद्र (अगस्त-सितंबर) के महीने में जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।यह स्पष्ट विरोधाभास हल हो जाता है यदि हम समझते हैं कि ज्येष्ठ-पूर्णिमा वह समय है जब श्री कृष्ण भगवान जगन्नाथ भगवान के रूप में बड़ी, फैली हुई आँखों और सिकुड़े हुए अंगों के साथ प्रकट हुए थे।इसे महाभाव-प्रकाश, कृष्ण के परमानंद रूप के रूप में जाना जाता है।हालांकि जगन्नाथ की पहचान अक्सर समृद्धि के भाव में द्वारका के कृष्ण से होती है, लेकिन उनकी वास्तविक गोपनीय पहचान राधारानी के प्रेमी वृंदावन के कृष्ण के रूप में कि जाती है।जगन्नाथ कोई और नहीं बल्कि कृष्ण की परमानंदमयी अभिव्यक्ति हैं, जो हमें वापस भगवान के पास जाने में मदद करने के लिए अपने सबसे दयालु रूप में प्रकट होते हैं।
इसलिए, श्रीलप्रभुपाद ने माया (भ्रम) के जादू से बद्ध आत्माओं के उत्थान के लिए दुनिया भर के कई शहरों में जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत की है।भगवान् जगन्नाथ की रथ यात्रा संपूर्ण विश्व भर में प्रसिद्ध है, यह रथ यात्रा भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण से शुरू होकर श्री गुंडिचा मंदिर तक जाती है। भगवान जगन्नाथ यात्रा के तर्ज पर ही सम्पूर्ण भारत में अलग-अलग स्थानों पर इस तरह के यात्राओं का आयोजन किया जाता है तथा हमारे रामपुर में भी यह रथयात्रा विगत कई वर्षों से संपन्न की जाती है। इस रथ यात्रा को देखने के लिए दुनिया भर से लोग इकट्ठे होते हैं। इस रथ यात्रा के हिस्से के रूप में, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रथ में आरूढ़ किया जाता है।

संदर्भ :-

https://bit.ly/2Vkdqgz
https://bit.ly/3kjxAlB
https://bit.ly/3k6PLuE
https://bit.ly/3e4RNaP
https://bit.ly/3wzEnd0
https://bit.ly/3r6tiPB

चित्र संदर्भ
1. श्री जगन्नाथ का श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ का एक चित्रण (wikimedia)
2 . श्री जगन्नाथ के ह्रदय में श्री कृष्णा का एक चित्रण (Prarang)
3. रथों के उत्सव में कृष्ण (नीला) और राधा का एक चित्रण (wikimedia)

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