कांस्य युग के अंतिम चरण को चिह्नित करने वाली गेरू रंग की मिट्टी के बर्तनों की संस्कृति

मेरठ

 25-06-2021 09:16 AM
म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

मिट्टी के बर्तन संस्कृति के अध्ययन और अतीत के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट संस्कृति के साथ मिट्टी के बर्तनों की शैली में भी कई बदलाव आए हैं। यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों को दर्शाता है जिसमें एक संस्कृति पनपी हो, जो पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को हमारे अतीत को समझने में मदद करती है।लोगों के लिए, मिट्टी के बर्तनों ने भंडारण, खाना पकाने, परिवहन, व्यापार का अवसर प्रदान किया और अनिवार्य रूप से कलात्मक रचनात्मकता की अभिव्यक्ति बन गई। मिट्टी के बर्तन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: हस्तनिर्मित और पहिया के द्वारा निर्मित। हस्तनिर्मित मिट्टी के बर्तन एक आदिम शैली के मिट्टी के बर्तन हैं जिन्हें शुरुआती युगों में विकसित किया गया था और समय के साथ इन्हें पहिये की मदद से बनाया जाना शुरू कर दिया गया। मिट्टी के बर्तनों का पहला संदर्भ नवपाषाण युग में मिला था। स्वाभाविक रूप से यह हाथ से बने मिट्टी के बर्तन हैं लेकिन बाद के काल में पहिये का भी उपयोग किया गया है।
ताम्रपाषाण युग, पहला धातु युग, हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग संस्कृतियों की घटना के रूप में चिह्नित है - दक्षिण पूर्वी राजस्थान में अहर संस्कृति, पश्चिमी मध्य प्रदेश में मालवा संस्कृति, पश्चिमी महाराष्ट्र में जोरवे संस्कृति, आदि।इस युग के लोग विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करते थे।ऐसा पाया गया है कि काले और लाल रंग के बर्तनों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। अहर-बना जैसी संस्कृतियों में सफेद रैखिक बनावट के साथ काले और लाल रंग के बर्तनों की उपस्थिति पाई गई। वहीं गेरू रंगीन मिट्टी के बर्तनों की संस्कृति भारत-गंगा के मैदान की कांस्य युग की संस्कृति है, जो आमतौर पर 2000-1500 ईसा पूर्व की है और पूर्वी पंजाब से पूर्वोत्तर राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली हुई है।इस संस्कृति की कलाकृतियाँ हड़प्पा संस्कृति और वैदिक संस्कृति दोनों के साथ समानता दर्शाती हैं।पुरातत्वविद् अकिनोरी उसुगी (Akinori Uesugi ) इसे पिछली हड़प्पा बारा शैली की पुरातात्विक निरंतरता के रूप में मानते हैं, जबकि परपोला (Parpola ) के अनुसार, इस संस्कृति में गाड़ियों की खोज स्वर्गीय हड़प्पा के संपर्क में भारत उपमहाद्वीप में भारत-ईरानी प्रवासन को दर्शा सकती है। गेरू रंग के बर्तनों ने उत्तर भारतीय कांस्य युग के अंतिम चरण को चिह्नित किया और लौह युग के काले और लाल बर्तन संस्कृति और चित्रित ग्रेवेयर (Painted Grey Ware) संस्कृति ने इसका स्थान ले लिया।चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के कांस्य युग में पाए जाने वाले गेरू रंग के बर्तनों का भारत में काफी चलन था।ब्रज बासी लाल (बी.बी. लाल एक भारतीय पुरातत्वविद् हैं, वह 1968 से 1972 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक थे और इन्होंने शिमला के भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान के निदेशक के रूप में कार्य किया है। लाल विभिन्न यूनेस्को समितियों में भी कार्य कर चुके हैं।) की परिकल्पना (जिसमें उन्होंने 'पेंटेड ग्रे वेयर संस्कृति' को महाभारत से जोड़ा और इसे 1100 ईसा पूर्व की समय सीमा में वर्गीकृत किया) से भिन्न, उत्तर प्रदेश के सनौली और चंदायण में उत्खनन से वर्तमान पुरातत्वविदों ने एक नई संस्कृति को पाया है।नई परिकल्पना अब महाभारत संस्कृति के साथ गेरू रंग के बर्तनों के बीच के संबंध पर ज़ोर दे रही है।
इन बर्तनों का चलन उस समय पूर्वी पंजाब से उत्तर-पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था। इन मिट्टी के बर्तनों में एक लाल रंग दिखाई देता है, लेकिन ये खुदाई करने वाले पुरातत्वविदों की उंगलियों पर एक गेरू रंग छोड़ते थे। इसी वजह से इनका नाम गेरू रंग के बर्तन पड़ा था। इसके साथ ही इन्हें कभी-कभी काले रंग की चित्रित पट्टी और उकेरी गई आकृति से सजाया जाता था।दूसरी ओर, पुरातत्वविदों का कहना है कि गेरू रंग के बर्तनों को उन्नत हथियारों और उपकरणों, भाला और कवच, तांबे के धातु और अग्रिम रथ के साथ चिह्नित किया गया है। इसके साथ ही, इनकी वैदिक अनुष्ठानों के साथ भी समानता को देखा गया है।ये अक्सर तांबे के ढेर, तांबे के हथियार और अन्य कलाकृतियों जैसे कि मानवाकृतीय मूर्ति के साथ पाए जाते हैं। इस मिट्टी के बर्तन के सबसे बड़े संग्रह का साक्ष्य राजस्थान के जोधपुरा (यह जोधपुरा जयपुर जिले में स्थित है और इसे जोधपुर शहर से भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए) के पास से मिला था। वहीं गंगा जमुना दोआब के सनौली को गेरू रंग के बर्तनों की संस्कृति/तांबे के ढेर वाला स्थल माना जाता है। इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि गेरू रंग के बर्तन वाली संस्कृति हड़प्पा सभ्यता की समकालीन थी। क्योंकि 2500 ईसा पूर्व और 2000 ईसा पूर्व के बीच, ऊपरी गंगा घाटी के लोग सिंधु लिपि का उपयोग कर रहे थे। जबकि पूर्वी गेरू रंग के बर्तनों वाली संस्कृति द्वारा सिंधु लिपि का उपयोग नहीं किया गया था, पूरे गेरू रंग के बर्तनों वाली संस्कृति की लगभग एक ही भौतिक संस्कृति थी और संभवतः इसके विस्तार के दौरान एक ही भाषा बोली जाती थी।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3qqZqx1
https://bit.ly/3wSjjiV
https://bit.ly/3b3e71c

चित्र संदर्भ
1.एचएमबी भोजन और खाना पकाने के बर्तन नियोलिथिक का एक चित्रण (wikimedia)
2.2600-1200 कैल ई.पू. गेरू रंग के बर्तनों (OCP) स्थलों का मानचित्र (wikimedia)
3.सिनौली रथ, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तस्वीर (wikimedia)


RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id