"वफादारी" पहली बार यह शब्द सुनने अथवा पढ़ने पर अधिकांशतः हमारे मन में जो पहला चित्र उभरता है, वह एक कुत्ते का होता है। इंसानो के मन में, अपने प्रति इतनी श्रेष्ट छवि बनाने में कुत्तों को शायद कई युग लगे हों। हर हाल में अपने मालिक के प्रति वफादार रहने का गुण इन्हे अन्य सभी जानवरों से श्रेष्ट बनाता है , और यही कारण है की इंसानो द्वारा इन्हे हमारे घरों समेत विश्व के अनेक देशों में सुरक्षा की अहम् जिम्मेदारी भी दी गई है। देश की सेना में अपनी अहम् भूमिका देते हुए यह इस ज़िम्मेदारी का निर्वहन भी बखूबी करते हैं।
भारतीय सेना भी बड़े स्तर पर सैनिक कुत्तों की भर्ती करती हैं। सेना में शामिल हो जाने के बाद इन्हें प्रशिक्षित करने के लिए पारंगत कुशल सैनिकों द्वारा कड़ी ट्रेनिग दी जाती है। इन्हें अपने मालिक की आज्ञा मानने, संदिग्धों को पहचानने, विस्फोटकों का पता लगाने और विभिन्न कलाबाजियां करने जैसी, ढेरों कलाओं में निपुर्ण बनाया जाता है। इन्हें इस स्तर तक प्रक्षिशित कर दिया जाता है, कि देश की सुरक्षा मामंलों में भी इन पर आँख बंद कर भरोसा किया जा सकें।
देश के कई जांबाज़ कुत्तों की वास्तविक प्रेरक कहानियां सैनिकों को मुँह जुबानी याद रहती हैं, कुछ रोचक किस्से इस प्रकार हैं।
1. 11 साल के चीनी (Chinee) ने 2013 में असम के जोरहाट में एक बस में 7 किलो विस्फोटक पता लगाकर कई लोगों की जानें बचाई।
2. 10 साल के बियर (Bear) ने सियाचिन में -40 डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान पर सेना के साथ सात साल काम किया।
3. 10 वर्ष की एंजेल (Angel) को एक भारतीय सेना प्रमुख के घर पर 9 वर्षों से ड्यूटी कर रही हैं ।
और ऐसी ही हजारों कहानिया प्रचलित हैं।
सेना के पास अब सैकड़ों प्रशिक्षित कुत्ते हैं, जिनमें अधिकतर लैब्राडोर, जर्मन शेफर्ड और बेल्जियम मालिंस हैं, जिन्हें देश भर में विभिन्न इकाइयों और विभिन्न कर्तव्यों के लिए तैनात किया गया है। भारतीय सेना में कुत्ते प्रायः 8 या 9 साल की उम्र तक अपनी सेवा देते हैं, जिसके बाद इन्हे भारतीय सेना द्वारा सम्मानजनक सेवानिवृत्ति दी जाती है। और अपना शेष बचा जीवन यह सेवानिवृत्ति गृहों में व्यतीत करते हैं, अथवा कुछ निर्देशित कागजी कार्यवाही करने के पश्चात् देश के नागरिक भी इन्हे गोद ले सकते हैं।
हमारे शहर मेरठ में भी सैन्य कर्तव्यों से सेवानिवृत्त कुत्तों के लिए रिमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प्स (RVC) नामक पशु चिकित्सा तथा सेवानिवृत्ति गृह हैं, जो भारतीय सेना में गौरवपूर्ण भूमिका अदा करने वाले कई बहादुर सैनिकों का घर है। यह पूरे देश में अपनी तरह का इकलौता गृह है।साल 2015 से पूर्व तक कुत्तों को केवल वीरता पुरस्कार मिलने पर ही पुनर्वासित किया जाता था, परंतु 2015 में कोर्ट के एक आदेश के बाद भारतीय रक्षा मंत्रालय ने देश की सुरक्षा में भागीदारी दे चुके इन सभी वफादार सैनिकों (कुत्तों) के लिए पुनर्वास का आदेश दिया। जिसके तहत दो प्रमुख केंद्र मेरठ और दूसरा उत्तराखंड के हेमपुर शहर में बनाया गए। मेरठ के RVC में इन सेवा निवृत्त सैनिकों की निश्चित दिनचर्या होती है, यहाँ वे ड्यूटी के दौरान किये जाने वाले विभिन्न दायित्वों से परे होते हैं।
लेकिन वे सुबह जल्दी उठते हैं, उन्हें खुले में टहलने के लिए ले जाया जाता है, “ऐसा दिन में तीन बार किया जाता है”। सुबह टहलने के बाद आधे घंटे उनकी मालिश की जाती है, भोजन में उन्हें रोटी, मांस, सब्जियां और दही खिलाया जाता है। सबके लिए विशेष स्थान ('बेडरूम' ) निर्धारित किये गए हैं, खेलने के लिए बॉल तथा सबका अपना व्यक्तिगत कटोरा है।
साथ ही समय-समय पर इनकी चिकित्सा जांच तथा नियमित टीकाकरण भी किया जाता है। मेरठ स्थित RVC केंद्र में, 2015 से शुरू होने के बाद से, लगभग 140 सेवानिवृत्त सेना कुत्तों को लाया गया है। इन मूक सैनिकों की सेवा में लगे लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं वें कहते हैं कि “ये हमारे देश के बहादुर, मूक सैनिक हैं। उनके बुढ़ापे में उनकी देखभाल करते हुए हमें गर्व महसूस होता है”।
भारतीय सेना से रिटायर्ड इन बहादुर सैनिकों को गोद भी लिया जा सकता है, जिससे इनकी व्यक्तिगत देखभाल हो सके। हमने इन सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्यांए जानी, इन्हे गोद लेना सभी के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण होना चाहिए। गौर से देखा जाए तो यह बड़े सौभाग्य की बात होगी, कि देश सेवा में अपने आठ-नौ साल दे चुके मासूम जानवरों की आगे की देखरेख हम कर सकें, और शारीरिक और मानसिक स्तर पर सहानभूति दे सकें। सोशल मीडिया पर भी इस उपलक्ष्य में एक पोस्ट बेहद वायरल हुआ, जहाँ एक फेसबुक यूजर अनीता देशपांडे ने सभी से सेवानिवृत्त भारतीय सेना के कुत्तों को अपनाने का आग्रह किया। उनका यह वायरल पोस्ट 3000 से अधिक बार शेयर किया गया। हालांकि यह अब बूढ़े (8+) हो चुके होते हैं, परंतु वह उच्च प्रशिक्षित होते हैं, जिनमे से अधिकांश (कम से कम 10 से कम उम्र के) बेहद फिट और फुर्तीले होते हैं। इन्हें व्यक्तियों और इकाइयों द्वारा गार्ड कुत्तों के रूप में अपनाया जा सकता है। इनमें से कुछ कुत्तों को सीओएएस प्रशस्ति से भी नवाजा गया है। इनके बचे हुए शेष वर्षों में यदि हम इनके कुछ काम आ सकें, तो यह हमारे लिए देश के गौरव का हिस्सा बनने के सामान होगा।
संदर्भ
https://bit.ly/2spSkiO
https://bit.ly/2Trfkcu
https://bit.ly/3zB5DLa
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