सिंधु लिपि (Indus Script) एक अज्ञात लेखन प्रणाली है, और इसके खोजे गए शिलालेख बहुत कम हैं, जिनमें
औसतन पांच से अधिक संकेत नहीं हैं। इसलिये इसे समझने के किये कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1920
में, हड़प्पा में खुदाई से एक बड़े ईंट से बने शहर के खंडहर सामने आए, और जल्द ही सिंधु घाटी और उसके
आसपास एक पूरी अज्ञात सभ्यता का पता चला। यहां से मिले साक्ष्यों में सिंधु राजाओं या आम लोगों के नाम,
उनके द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं के नाम या यहां तक कि वे कौन सी भाषा बोलते थे, यह बताने के लिए
कोई स्पष्ट जानकारी संरक्षित नहीं की गई थी। सिन्धु (या हड़प्पा) के लोग चित्रात्मक लिपि का प्रयोग करते थे।
चित्रात्मक संकेतों के अलावा, मुहरों और ताबीजों (amulets) में अक्सर प्रतीकात्मक रूपांकन होते हैं, ज्यादातर
जानवरों के यथार्थवादी चित्र जिन्हें पवित्र माना जाता है, और कुछ सांस्कृतिक दृश्य, जिनमें मानवरूपी देवता और
उपासक शामिल हैं। सिंधु लिपि को समझने में आने वाली समस्याओं को दूर करने के कई प्रयास किए गए हैं।
हालाँकि, अधिकांश प्रयास इतने प्रभावी सिद्ध नहीं हुये।
सिंधु लिपि, हड़प्पा लिपि के रूप में भी जानी जाती है। बहुत कोशिशों के बाद भी अभी तक इस 'लिपि' को पढ़ा
नहीं जासका है, लेकिन प्रयास जारी हैं। अभी तक लिपि को समझने में मदद करने के लिए कोई ज्ञात द्विभाषी
शिलालेख नहीं है, और लिपि समय के साथ कोई महत्वपूर्ण बदलाव भी नहीं दिखा रही है।हालाँकि, कुछ वाक्य
रचना स्थान के आधार पर भिन्न पाये गये हैं। हड़प्पा प्रतीकों के साथ एक मुहर का पहला प्रकाशन अलेक्जेंडर
कनिंघम (Alexander Cunningham) द्वारा 1875 में हुआ। तब से, 4,000 से अधिक अंकित वस्तुओं की खोज
की जा चुकी है।
1970 के दशक की शुरुआत में, इरावाथम महादेवन प्रकाशित एक कोष तथा सहमति प्रकाशित की,
जिसमें सिंधु के शिलालेखों में 3,700 मुहरें और विशिष्ट पैटर्न (specific pattern) में 417 अलग-अलग संकेत हैं।
उन्होंने यह भी पाया कि औसत शिलालेख में पांच प्रतीक थे और सबसे लंबे शिलालेख में केवल 26 प्रतीक थे। अब
तक पाए गए सभी शिलालेख अपेक्षाकृत कम हैं, जिसमें 30 से कम संकेत हैं। जिस कारण इसे अभी तक समझा
नहीं जा सका। इसके अलावा लिपि को समझने में मदद करने के लिए कोई द्विभाषी शिलालेख भी नहीं मिला।
सिन्धु लिपि के अस्पष्ट रहने का अंतिम महत्वपूर्ण कारण यह है कि लिपि किस भाषा (या भाषाओं) का
प्रतिनिधित्व करती है ? कुछ विद्वानों का कहना है कि इसका संबंध ब्राह्मी लिपि से है तो कुछ विद्वानों का तर्क
है कि इस लिपि का रिश्ता द्रविड़ भाषा से है।
हाल ही में एक नेचर ग्रुप जर्नल (Nature group journal), पालग्रेव कम्युनिकेशंस (Palgrave
Communications) में प्रकाशित एक शोध पत्र ने दावा किया है कि सिंधु घाटी के अधिकांश शिलालेखों को तार्किक
रूप से (शब्द चिह्नों का उपयोग करके) लिखा गया था, न कि फोनोग्राम (phonogram) (वाक् ध्वनियों की
इकाइयों (speech sounds units)) का उपयोग करके। इंटरगेटिंग सिंधु शिलालेख (Interrogating Indus
inscription) के शीर्षक वाले इस पत्र ने अपने अर्थ संवहन के तंत्र को उजागर करने के लिए बताया कि शिलालेखों
की तुलना आधुनिक समय के टिकटों (stamp), कूपनों (coupon), टोकनों (token) और सिक्कों पर पाए जाने वाले
संरचित संदेशों से की जा सकती है।इसने मुख्य रूप से यह समझने पर ध्यान केंद्रित किया कि सिंधु शिलालेखों ने
किस अर्थ को व्यक्त किया, बजाय इसके कि उन्होंने क्या संदेश दिया।
सिंधु शिलालेख को सील, हाथी दांत की छड़ें, गोलियां, मिट्टी के बर्तन आदि सहित लगभग 4,000 प्राचीन खुदी हुई
वस्तुओं से खोजा गया था। वे सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे गूढ़ विरासतों में से एक हैं, जो द्विभाषी ग्रंथों के
अभाव, शिलालेखों की चरम संक्षिप्तता और सिंधु लिपि द्वारा एन्कोडेड (encoded) भाषा के बारे में अज्ञानता के
कारण समझा नहीं गया है।परंतु वर्तमान में इस लिपि को समझने की कोशिश में विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं।
अध्ययन के लिए, सुश्री मुखोपाध्याय ने सुप्रसिद्ध एपिग्राफिस्ट (epigraphist) और सिंधु विद्वान (Indus scholar)
इरावाथम महादेवन (Iravatham Mahadevan) द्वारा संकलित सिंधु शिलालेख के डिजीटल कॉर्पस (digitized
corpus) का उपयोग किया है।
उन्होंने कम्प्यूटेशनल विश्लेषण (computational analyses) और विभिन्न
अंतःविषय उपायों का उपयोग करके इसका अध्ययन किया।शिलालेखों की संक्षिप्तता का विश्लेषण करते हुए,
शिलालेखों के संकेतों द्वारा बनाए गए कठोर स्थितिगत प्राथमिकताएं, और सिंधु संकेतों के कुछ वर्गों द्वारा प्रदर्शित
प्रतिबंध पैटर्न की सह-घटना से उन्होंने अनुमान लगाया कि इस तरह के पैटर्न कभी भी ध्वन्यात्मक सह-घटना
प्रतिबंध (phonological co-occurrence restrictions) नहीं हो सकते हैं। ध्वन्यात्मक सह-घटना प्रतिबंध दो या
अधिक ध्वनि इकाइयों को संदर्भित करता है जिन्हें एक साथ उच्चारण नहीं किया जा सकता है। पत्र में कहा गया
है कि सिंधु शिलालेखों की तार्किक प्रकृति (logographic nature) का एक बहुत ही सम्मोहक, अप्राप्य प्रमाण उनके
भीतर बनाए गए सह-घटना प्रतिबंध पैटर्न से आता है।सुश्री मुखोपाध्याय संकेतों को नौ कार्यात्मक वर्गों में वर्गीकृत
करती हैं।
विभिन्न पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर, वह आगे दावा करती है कि कुछ प्रशासनिक कार्यों में मुहरों और
गोलियों का उपयोग किया गया था, जो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की व्यापार-समझदार बस्तियों में प्रचलित
वाणिज्यिक लेनदेन को नियंत्रित करती थीं। इन शिलालेखों की तुलना आधुनिक समय के टिकटों, कूपन, टोकन और
मुद्रा सिक्कों पर पाए जाने वाले संदेशों से की जा सकती है, जहाँ हम ऐसे सूत्रीय ग्रंथों की अपेक्षा करते हैं जो
स्वतंत्र रूप से रचित कथा के बजाय कुछ पूर्व-परिभाषित तरीकों से कुछ प्रकार की जानकारी को कूटबद्ध करते
हैं।कुछ विद्वानों के बीच एक आम धारणा यह है कि सिंधु लिपि लोगो-सिलेबिक (logo-syllabic) है, जहां एक
प्रतीक को एक समय में शब्द संकेत के रूप में और दूसरे में शब्दांश-संकेत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता
है। परंतु सुश्री मुखोपाध्याय के अनुसार,हालांकि कई प्राचीन लिपियाँ नए शब्दों को उत्पन्न करने के लिए रीबस
(rebus) विधियों का उपयोग किया गया है, लेकिन सिंधु मुहरों और गोलियों पर पाए गए शिलालेखों ने अर्थ को
व्यक्त करने के लिए तंत्र के रूप में रीबस का उपयोग नहीं किया है।
शोधकर्ता ने कहा कि लोकप्रिय परिकल्पना है
कि मुहरों को प्रोटो-द्रविड़ियन (Proto-Dravidian ) या प्रोटो-इंडो-यूरोपीय (Proto-Indo-European) नामों के साथ
मुहर मालिकों के नाम से अंकित किया गया था। सुश्री मुखोपाध्याय ने कहा कि उनका वर्तमान कार्य भविष्य में इस
लिपि को समझने का आधार बन सकता है।
1400 से अधिक सिंधु घाटी सभ्यता साइटों की खोज की गई है, जिनमें से 925 साइटें हैं भारत और 475 साइटों
में पाकिस्तान, जबकि कुछ साइटों में अफ़ग़ानिस्तान में पाई जाती हैं। सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर केवल
40 साइटें स्थित हैं और लगभग 1,100 साइटें (80%) गंगा और सिंधु नदियों के बीच के मैदानों पर स्थित हैं।
मेरठ जिले के आलमगीरपुर में खुदाई के माध्यम से सिंधु घाटी की कई कलाकृतियां मिली हैं, इसके अलावा क्षेत्र में
ब्राह्मी लिपि के कई शिलालेख और अध्यादेश भी मिले हैं।सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पुराना स्थल, भिराना
(Bhirrana) और सबसे बड़ी साइट, राखीगढ़ी हरियाणा में स्थित हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3pRtz8s
https://bit.ly/3wsrjaq
https://bit.ly/3cGicLh
https://bit.ly/3woAOHw
https://bit.ly/3vkFGfn
चित्र संदर्भ
1. सिन्धु घाटी से प्राप्त मुहरों का एक चित्रण (wikimedia)
2. मुहर-12, हड़प्पा सभ्यता, सी- 2700-2000 ई.पू का एक चित्रण (flickr)
3. सिंधु घाटी मुहरों का एक चित्रण (wikimedia)
4. इंडो-यूरोपीय भाषाओं के वर्गीकरण का एक चित्रण (wikimedia)
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