भारत में हवेली वास्तुकला की उत्पत्ति और विकास का इतिहास

मेरठ

 11-06-2021 09:48 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन


भारतीय उपमहाद्वीप में पारंपरिक मकानों, महलों, जागीर घर या किले को हवेली कहा जाता है, जो आमतौर पर ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व को बनाए रखती है। हवेली शब्द अरबी ‘हवाली’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है "विभाजन" या "निजी स्थान", जो मुगल साम्राज्य के तहत लोकप्रिय था, और किसी भी वास्तुशिल्प संबद्धता से रहित था। भारत में मौजूद हवेलियां यहाँ की वास्तु-संबंधी विरासत का एक अभिन्न अंग हैं, जो कई सदियों से अस्तित्व में हैं और अपने ज्वलंत पहलुओं के लिए प्रसिद्ध हैं। दरसल हवेली वास्तुकला एक अद्वितीय स्थानीय वास्तुकला का रूप है जो 18 वीं और 19 वीं शताब्दी में पूर्व-विभाजन पश्चिमी भारत में, विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में विकसित हुई थी। मध्य एशिया, इस्लामी फ़ारसी (Persian) और राजपूत वास्तुकला से अंतर-सांस्कृतिक प्रवाहों से प्रभावित, हवेली वास्तुकला स्थानीय कला और परिदृश्य का दर्पण होने के साथ-साथ क्षेत्रीय जलवायु के अनुकूलित प्रतिक्रिया थी। हवेलियों को विशिष्ट लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया और उन्हें जटिल प्रतिरूप के साथ उकेरा गया है।
अधिकांश हवेलियों में बड़ी बालकनी, कई मंजिलें और भव्य कमरे मौजूद होते हैं। गर्मी से बचने के लिए इन्हें एक केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर बनाया जाता है। शक्ति और प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में खड़े, हवेली के गृहस्वामी कुलीन, जमींदार या सफल व्यापारी हुए करते थे।हवेली के गृहस्वामी परिवार, नौकरों, कहानीकारों, महिला साथियों और कभी-कभी दासों से बने एक जटिल सामाजिक संगठन में रहते थे और हवेली में जीवन गृहस्वामी की पत्नी के निर्देशों के इर्द-गिर्द घूमते रहते थे, ये रसोई की गतिविधियों की देखरेख करती थी, वित्त का प्रबंधन करती थी, और त्योहारों और समारोहों का आयोजन करती थी। इन हवेलियों का अंतरंग आंगन को माना जाता था, यहाँ पर हवेली के लोग पड़ोसियों के साथ समय बिताया करते थे। महिलाएं और घर की सेवा करने वाली महिलाएं आंगन और बरामदे में अपने दैनिक कार्य किया करती थीं, जबकि गर्मियों की रातों में वे ठंडे आकाश के नीचे सोने के लिए आंगन में बिस्तरों को बिछाकर बैठा या विश्राम किया करते थे। वहीं हिंदू हवेलियों में अक्सर परिवार के देवता को समर्पित एक कोना होता था जिसमें पवित्र तुलसी का पौधा सुशोभित होता था। आंगन की बनावट परिवार की सामाजिक स्थिति, जीवन शैली, धन, कला और सांस्कृतिक झुकाव का प्रतीक हुआ करती थी।घर के लोग अक्सर प्रतिष्ठित कलाकारों को आंगन की दीवारों पर धार्मिक ग्रंथों, रोजमर्रा की जिंदगी या उनके सामाजिक विश्वासों के दृश्यों को चित्रित करने के लिए आमंत्रित करते थे, इसका एक उदाहरण राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियाँ हैं। राजस्थान के जैसलमेर में पीले बलुआ पत्थर से उकेरी गई सबसे अलंकृत और उत्तम हवेलियों में से एक देखी जा सकती हैं। जैसलमेर की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी हवेलियों में से एक, 1805 में गुमान चंद पटवा द्वारा निर्मित पटवों जी की हवेली पांच हवेलियों का एक समूह है।पांच हवेलियों के इस समूह में सबसे पहली हवेली सबसे लोकप्रिय है, इसे कोठारी की पटवा हवेली के रूप में भी जाना जाता है। इनमें से सबसे पहली हवेली के निर्माण के लिए वर्ष 1805 में गुमान चंद पटवा को साधिकार किया गया था। पटवा एक धनी व्यक्ति थे और अपने समय के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे, इसलिए उन्होंने अपने 5 बेटों के लिए पाँच मंजिल की हवेली के निर्माण का आदेश दिया था। हालांकि यह लगभग 50 साल की अवधि में पूरा हुआ था। सभी पांच हवेलियों का निर्माण 19वीं सदी के पहले 60 वर्षों में किया गया था। पटवों जी की हवेली अपनी अलंकृत दीवार चित्रों, जटिल पीले बलुआ पत्थर-नक्काशीदार झरोखा, प्रवेश द्वार और मेहराब के लिए प्रसिद्ध है।एक और उल्लेखनीय हवेली सेठ जी री हवेली है, जिसे अब श्री जगदीश महल के नाम से जाना जाता है, यह 250 साल पुरानी हवेली है और आज उदयपुर शहर में उल्लेखनीय विरासत स्थलों में से एक है। वहीं भारत के उत्तरी भाग में, भगवान कृष्ण की महल जैसी विशाल हवेली काफी प्रचलित हैं।
इन हवेलियों को उनके भित्तिचित्रों के लिए जाना जाता है, जिसमें देवी-देवताओं, जानवरों, ब्रिटिश उपनिवेश के दृश्यों और भगवान राम और कृष्ण की जीवन कहानियों को दर्शाया गया है। यहां के संगीत को हवेली संगीत के नाम से जाना जाता था।बाद में इन मंदिर वास्तुकलाओं और भित्तिचित्रों का अनुकरण विशाल व्यक्तिगत हवेली के निर्माण के दौरान किया गया था और अब यह शब्द स्वयं हवेली के साथ लोकप्रिय है।आजादी के बाद, शाही दरबार की संस्कृति और जमींदारी व्यवस्था के अंत के साथ, हवेलियों को या तो दूसरों को बेच दिया गया या उन्हें छोड़ दिया गया क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हवेली के गृहस्वामी और उनके परिवार नौकरी की तलाश में बाहर चले गए या उनके स्वामित्व वाले संयुक्त परिवार बिखर गए। चूँकि ये हवेलियाँ ज्यादातर बाज़ारों में थीं या तंग गलियों में खुलती थीं, कुछ को गोदामों और दुकानों में बदल दिया गया, और अंततः वे सभी जीर्ण- शीर्ण हो गई। जबकि बेहतर क्षेत्रों में मौजूद कुछ हवेलियों का नवीकरण कराया गया। लेकिन संरक्षण के ये अलग-अलग उदाहरण हवेली वास्तुकला की उत्पत्ति और विकास को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3z9Aj5U
https://bit.ly/3zdvSqH
https://bit.ly/2TTULaP

चित्र संदर्भ
1. फलोदी में एक राजपूताना हवेली का एक चित्रण (wikimedia)
2. बादल महल शाहपुरा में राजपुताना हवेली का एक चित्रण (wikimedia)
3.राजस्थान में पटवाओं की पारंपरिक भारतीय हवेली एक चित्रण (wikimedia)
4. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य के दौरान बहुमंजिला संरचनाएं और बालकनी का एक चित्रण (wikimedia)

RECENT POST

  • विश्वभर के संकटग्रस्त प्राकृतिक व् सांस्कृतिक विरासत स्थल, तथा इनके संरक्षण का महत्त्व
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     18-04-2024 09:46 AM


  • राम नवमी विशेष: कई समानताओं के बावजूद चैत्र और शारदीय नवरात्रि में होते हैं, बड़े अंतर
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     17-04-2024 09:37 AM


  • भारत में वस्त्र और हथकरघा क्षेत्र कैसे बना रोज़गार सृजन की आधारशिला
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     16-04-2024 09:37 AM


  • विश्व कला दिवस पर जानें क्या विज्ञान ने कला के क्षेत्र को चमकाया या किया इसका रंग फीका
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     15-04-2024 09:36 AM


  • ये हैं दुनिया के सबसे खूबसूरत जानवर, जो देते है प्रकृति की बेमिसाल ख़ूबसूरती का सुबूत
    शारीरिक

     14-04-2024 09:36 AM


  • अंबेडकर जयंती विशेष: जब डॉ. अंबेडकर ने संत कबीर के इतिहास को दोहरा दिया!
    सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

     13-04-2024 08:59 AM


  • देशभर में विविध मान्यताओं किंतु समान भावना के साथ मनाया जाता है, बैसाखी का पर्व
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-04-2024 09:35 AM


  • शाही ईदगाह से लेकर विशिष्ट व्यंजनों तक, ऐसे ख़ास बनती है मेरठ की ईद
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     11-04-2024 09:35 AM


  • किन बीमारियों के लिए कारगर है होम्योपैथी? व जानें एलोपैथी से कैसे है यह अलग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     10-04-2024 09:46 AM


  • चलिए तय करते हैं, पहली श्यामश्वेत फिल्मों से आधुनिक 4डी फिल्मों तक का सफ़र!
    द्रिश्य 1 लेंस/तस्वीर उतारना

     09-04-2024 09:44 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id