प्रभावी पुन:स्थापन के लिए एक स्पष्ट लक्ष्य या नीति की है आवश्यकता

जलवायु और मौसम
07-06-2021 09:39 AM
प्रभावी पुन:स्थापन के लिए एक स्पष्ट लक्ष्य या नीति की है आवश्यकता

दुर्भाग्य से, भारत महासागरों में प्लास्टिक (Plastic) के कचरे के सबसे बड़े वैश्विक प्रदूषकों में से एक है, प्रत्येक वर्ष गंगा नदी से अनुमानित 535 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा निकाला जाता है।जिस पर्यावरण में हम रहते हैं वह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए इसकी रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य की जिम्मेदारी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत प्रति वर्ष 33 लाख मीट्रिक टन (Metric tons) प्लास्टिक उत्पन्न करता है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून 2021 का विषय "पारिस्थितिकी तंत्र कापुनःस्थापन (Ecosystem Restoration)" है। भारत में 91,000 पशुओं की प्रजातियां पायी जाती हैं, जो विश्व के कुल आबादी का लगभग 6.5% है। इनमें 60,000 कीट प्रजातियां, 2,456 मछली प्रजातियां, 1,230 पक्षी प्रजातियां, 372 स्तनपायी, 440 सरीसृप और 200 उभयचर, जिनमें पश्चिमी घाटों में सबसे अधिक एकाग्रता और 500 मोलस्क शामिल हैं।ऐसा पाया गया है कि बड़े पैमाने पर मानवीय गतिविधियों के कारण दस लाख पौधों और जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
पारिस्थिति की पुनःस्थापन सक्रिय मानव हस्तक्षेप और कार्रवाई द्वारा पर्यावरण में अवक्रमित, क्षतिग्रस्त, या नष्ट पारिस्थितिकी तंत्र और आवासों को नवीनीकृत और पुनर्स्थापित करने का अभ्यास है।प्रभावी पुनःस्थापन के लिए एक स्पष्ट लक्ष्य या नीति की आवश्यकता होती है, विशेषतः जो स्पष्ट, स्वीकृत और संहिताबद्ध है। पुनःस्थापन के लक्ष्य प्रतिस्पर्धी नीतिगत प्राथमिकताओं में से सामाजिक विकल्पों को दर्शाते हैं, लेकिन ऐसे लक्ष्यों को निकालना आम तौर पर विवादास्पद और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर से दुनिया नज़र नहीं हटा सकती, यहां तक कि जब हम कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी और चल रहे जलवायु संकट से निपट रहे हैं।जैव विविधता से समृद्ध स्वस्थ पारिस्थिति की मानव अस्तित्व के लिए मूलभूत हैं। पारिस्थितिक तंत्र मानव जीवन को असंख्य तरीकों से बनाए रखते हैं, हमारी हवा को साफ करते हैं, हमारे पानी को शुद्ध करते हैं, पौष्टिक खाद्य पदार्थों, प्रकृति-आधारित दवाओं और कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं और आपदाओं की घटना को कम करते हैं। लेकिन हम मनुष्य प्रकृति का ध्यान रखने में असफल रहे हैं।
यही कारण है कि हम अद्वितीय झाड़ियों की आग, टिड्डियों के आक्रमण और प्रवाल भित्तियों की मृत्यु और अब यहाँ तक कि चक्रवात भी देख रहे हैं। साथ ही चल रही कोविड-19 (Covid-19) महामारी जहां जूनोटिक रोग (Zoonotic) के प्रकोप की एक नवीनतम कड़ी को दर्शाती है और हमें बताती है कि हमारा स्वास्थ्य ग्रह के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।समृद्ध जैव विविधता के साथ स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र, अधिक उपजाऊ मिट्टी, लकड़ी और मछली की बड़ी पैदावार, और ग्रीनहाउस (Greenhouse) गैसों के बड़े भंडार जैसे अधिक लाभ प्रदान करते हैं।अब और 2030 के बीच, 350 मिलियन हेक्टेयर (Hectare) के अवक्रमित स्थलीय और जलीय पारिस्थितिक तंत्र के पुनःस्थापना से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में 9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का उत्पादन हो सकता है। वातावरण के पुनःस्थापना से 13 से 26 गीगाटन ग्रीनहाउस गैसों को भी हटा सकती है।इस तरह के हस्तक्षेपों का आर्थिक लाभ निवेश की लागत से नौ गुना अधिक है, जबकि निष्क्रियता पारिस्थितिकी तंत्र की पुनःस्थापना की तुलना में कम से कम तीन गुना अधिक महंगा है।जंगलों, खेतों, शहरों, आर्द्रभूमि और महासागरों सहित सभी प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र को बहाल किया जा सकता है। सरकारों और विकास एजेंसियों (Agencies) से लेकर व्यवसायों, समुदायों और व्यक्तियों तक, लगभग किसी के द्वारा भी पुनःस्थापना की पहल शुरू की जा सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पतन के कारण कई विभिन्न पैमानों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।बड़े और छोटे पारिस्थितिक तंत्र की पुनःस्थापना करने से इस पर निर्भर लोगों की आजीविका की रक्षा और सुधार करता है। यह बीमारी को नियंत्रित करने और प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने में भी मदद करता है। वास्तव में, पुनःस्थापना हमें सभी सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद कर सकता है।
वहीं स्वदेशी लोगों का पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान दर्शाता है कि कैसे पारिस्थिति की तंत्र की पुनःस्थापना एक ऐतिहासिक विषय है, जो हजारों वर्षों से मनुष्यों द्वारा अपनाया जा रहा है।इसका मतलब है कि बहुत सी चीजें हैं जो स्थानीय रूप से स्वदेशी लोगों से सीखी जा सकती हैं, क्योंकि गहरे संबंध और जगह की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के कारण पारिस्थितिकी तंत्र को पुनःस्थापित किया जा सकता है।हालांकि भारत की प्लास्टिक कचरे की समस्या फिलहाल संपन्न देशों के मुकाबले इतनी नहीं बड़ी है,लेकिन साल दर साल बढ़ती जा रही है। इसे स्वयं से नियंत्रित करना प्रत्येक भारतीय की जिम्मेदारी है। भारत में भी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा भी अनोखे प्रयास किए गए हैं। इसी तरह, कई निजी कंपनियां कचरे का पुनर्चक्रण कर रही हैं और इसे विभिन्न लेकिन सुरुचिपूर्ण उत्पादों में बदल रही हैं।

संदर्भ :-
https://bit.ly/2RoQ9so
https://bit.ly/34M14PR
https://bit.ly/34TDMYd
https://bit.ly/2THQ83B

चित्र संदर्भ
1. प्रकर्ति पुनः स्थापन के चक्र का एक चित्रण (youtube)
2. दक्षिण अफ्रीका में बफ़ेल्सड्राई लैंडफिल साइट सामुदायिक वनीकरण परियोजना में कार्रवाई में वन बहाली का एक चित्रण (wikimedia)
3. यूजीन, ओरेगन में वेस्ट यूजीन वेटलैंड्स में पुनः स्थापित किए गए प्रैरी का एक चित्रण (wikimedia)