सूंघने की क्षमता है हमारी सबसे मौलिक संवेदना शहरीकरण औद्योगीकरण प्रदूषण और कोविड 19 का इस पर प्रभाव

मेरठ

 27-05-2021 09:24 AM
गंध- ख़ुशबू व इत्र

कोरोना वायरस (Corona Virus) का कहर रूकने का नाम नहीं ले रहा है। भारत में इस वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं। कोरोना वायरस महामारी के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग नजर आ रहे हैं। किसी में हल्के लक्षण नजर आ रहे है तो कोई गंभीर हालत में नजर आ रहा है। इतना हीं नहीं कई मामले ऐसे है जिनमें कोई लक्षण न होने के बावजूद वह कोरोना वायरस से संक्रमित निकल रहे हैं। कई लोगों कि सूंघने की क्षमता खत्म हो गई है तो कई लोगों में ऐसा कोई लक्षण नहीं देखाई दे रहा है। हम आपको बता दें कि कोरोना में सूंघने की क्षमता का कम होने का बंद नाक से कोई लेना-देना नहीं है, इसकी असली वजह कोरोना वायरस का हमारे तंत्रिका तंत्र पर हमला करना है। कई रोगी इस स्थिति से उभर जाते है परन्तु कई लोग ऐसे भी है इस दुनिया में जिन्हें पहले की तुलना में अब कम गंध आती है और इसे हाइपोस्मिया (Hyposmia) कहते है। हाइपोस्मिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को उसकी सूंघने की क्षमता में कमी का अनुभव होता है। कई लोग तो ऐसे भी है जिन्हें चीजों की मूल गंध से अलग कुछ और ही गंध आती है जैसे कार्डबोर्ड (Cardboard) में से शराब की गंध आना, कॉफी में से सीवेज (Sewage) की गंध आना आदि। ऐसे स्थिति को पैरोस्मिया (Parosmia) कहा जाता है। और कुछ लोगों को कोई भी गंध नहीं आती है और इसे एनोस्मिया (Anosmia) कहा जाता है।एनोस्मिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की सूंघने की क्षमता पूरी तरह खत्म हो जाती है। हाल ही में इसे कोविड-19 से भी जोड़ा गया है।
देखा गया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित पांच में से चार लोगों में सूंघने की क्षमता पहले के मुकाबले में कम हो गई है या पूरी तरह से खत्म हो गई है। न्यूरोलॉजिकल (Neurologically) रूप से यह हमारी सबसे मौलिक संवेदना है। गंध हमारी नाक के रिसेप्टर्स (Receptors) के माध्यम से दिमाग को ट्रिगर (Trigger) करती है जिससे तुरंत हमारी स्मृति या भावना सक्रिय हो जाती है और हमारा शरीर प्रतिक्रिया करता है। सूंघने की शक्ति कम होने से व्यक्ति के जीवन पर असर पड़ता है। सूंघने की शक्ति कम होने से पीड़ित व्यक्ति खाने की सुगंध नहीं ले पाते और धीरे-धीरे उनकी खाने की तरफ दिलचस्पी कम होती चली जाती है। इससे उनका वजन कम हो सकता है या वे कुपोषण के शिकार हो सकते हैं, जो कि कोविड के दौरान हानिकारक है।महामारी के दौरान इस समस्या को गंभीरता से लिया गया है। हम सभी ने अब यह महसूस किया है कि एक स्वस्थ गंध हमारे स्वभाव में निहित है और हमारी भलाई के लिए आवश्यक है।
कोविड-19 की दूसरी लहर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है क्योंकि अस्पतालों में बेड (Bed) और महत्वपूर्ण जीवन रक्षक दवाओं की कमी देखी जा रही है। स्थिति यह है कि विभिन्न शहरों में अंतिम संस्कार के लिये श्मशान पर्याप्त नहीं हो पा रहे है, जिस कारण पार्कों, पार्किंग स्थलों को श्मशान में तब्दील किया जा रहा है। मेरठ के 100 साल पुराने सूरजकुंड मैदान (Surajkund Ground) को भी मौतों की संख्या में वृद्धि के कारण श्मशान में तब्दील कर दिया गया है। परंतु इससे स्थानीय लोगों को काफी परेशानी हो रही है। खुले में दाह संस्कार के कारण लोग अपनी खिड़कियां नहीं खोल सकते हैं क्योंकि वे चौबीसों घंटे दुर्गंध आती है। श्मशान से निकलने वाली राख भी उनके घरों के अंदर फैल जाती है। यहां के निवासियों का कहना है कि खुले दाह संस्कार से दुर्गंध फैल रही है जिससे सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। हालांकि स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि नए प्लेटफॉर्म का निर्माण अस्थायी रूप से किया जायेगा जिससे दुर्गंध की समस्या खत्म हो सके। परंतु मेरठ की दुर्गंध की समस्या यहीं खत्म नहीं होती। यहां पहले से ही लोग कचरे से आने वाली दुर्गंध के साथ जीने को विवश हैं। कचरे को शहर की सीमा के बाहर की जगहों पर ढेर किया जाता है, जिससे आस-पास के ग्रामीणों के लिए जीवन मुश्किल हो जाता है।इतना ही नहीं मेरठ गाजियाबाद को प्रतिदिन 200 मीट्रिक टन कचरा डंप करने की अनुमति देता है। गाजियाबाद में कूड़ा डंपिंग के लिए वैकल्पिक इंतजाम नहीं हैं, इसलिये 200 मीट्रिक टन कचरा मेरठ नगर निगम के डंपिंग ग्राउंड में भेजा जाता है और 300 मीट्रिक टन से ज्यादा कचरा प्रतिदिन पिलखुवा भेजा जाताहै। वर्तमान में मेरठ में डंपिंग ग्राउंड सिंगल-यूज प्लास्टिक और अन्य खतरनाक कचरे से भरे हुए हैं।यहां तक कि नालियों में भी कचरा भरा रहता है, इससे गुजरने वाले सभी लोगों को दुर्गंध आती है, और ये बीमारियों के लिए प्रजनन स्थल बनते जा रहे हैं।यहां के लोग इस दुर्गंध के साथ रहने को मजबूर हो चुके हैं।
इस शहरीकरण ने हमारी सूंघने की क्षमता को भी हानि पहुंचाई है। गंध लेना हमारी एक संवेदना हैं। हजारों वर्षों में क्रमिक विकास ने शायद ही इस संवेदना पर कोई प्रभाव डाला हो, परंतु बढ़ते शहरीकरण, प्रदूषण और औद्योगीकरण ने हमारी सूंघने की क्षमता को प्रभावित किया है। सूंघने की क्षमता से ही हमारे शरीर में कई क्रियाएं है जो गंध से ही सक्रिय होती है जैसे कि स्वादिष्ट खाने की खुशबू से ही भूख लग जाना, धूम्रपान या कोई दुर्गंध आते ही उस स्थान से हट जाना आदि। लेकिन जब हमें कुछ भी सूंघाई नहीं देता हैं, तो हमें कुछ भी महसूस नहीं होता और हमारा शरीर गंध के प्रति प्रतिक्रिया करने में विफल हो जाता हैं।यही कारण है कि शहरीकरण की वजह से लोगों की घटती सूंघने की क्षमता एक चिंताजनक विषय बन गया है। अलास्का विश्वविद्यालय (University of Alaska) के जैव मानवविज्ञानी (Bioanthropologist) कारा हूवर (Kara Hoover) कहते हैं कि शहरों में फैला प्रदूषण हमारी सूंघने की क्षमता को कम कर देता है, आपका वातावरण जितना अधिक शहरी होगा, आपकी गंध की संवेदना उतनी ही कम होगी। हमारी दुनिया तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण से प्रदूषित होती जा रही है। वर्तमान में शहरों में रहने वाले बच्चों की सूंघने की क्षमता उनके दादा-दादी की तुलना में कम होती है। हूवर का मानना ​​​​है कि पर्यावरणीय कारकों के कारण गंध की हमारी इंद्रियां एक स्पेक्ट्रम (Spectrum) पर समाप्त हो सकती हैं, और उनका यह शोध घनी आबादी वाले क्षेत्रों में महक के अनुभव की विविधता पर केंद्रित है।
हूवर कहते हैं कि जो लोग पारंपरिक जीवन शैली का अनुसरण करते हैं, वे वास्तव में शहर में रहने वालो की तुलना में गंधों का पता आसानी से लगा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से भी कही ना कही हमारी सूंघने की क्षमता प्रभावित होती है। गर्म जलवायु में गंध के कणों का फैलाव तेजी से होता है इसलिये ठंडे स्थानों की तुलना में गर्म स्थानों पर हमारी सूंघने की क्षमता भी बढ़ जाती है। हूवर का तर्क है कि जीवन की ये गुणवत्ता वाले कारक गंध से प्रभावित होते हैं और बदले में, किसी क्षेत्र की गंध को प्रभावित कर सकते हैं, आप एक बुरी गंध के जितने करीब होंगे, आपकी जीवन की गुणवत्ता उतनी ही खराब होगी।इसलिये आज हमें जरूरत है कि हम बढ़ते कचरे की समस्या से निपटने के लिये उचित प्रबंधन नीति को अपनाये। कचरे का पुनर्चक्रण करें, अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन कर घर और व्यवसाय में प्रयोग करें।

संदर्भ:
https://bit.ly/2Sk6ZbU
https://bit.ly/3fdEYfb
https://bit.ly/3bPUBY3
https://bit.ly/3vdjo00
https://bit.ly/3bNJ9wh
https://bit.ly/2Sl5cDm

चित्र संदर्भ

1. नेनुफ़र-ई 10971 को सूंघती महिला का एक चित्रण (wikimedia)
2. मास्क पहने डॉक्टर का एक चित्रण (unsplash)
3. पुष्प सूंघती महिला का चित्रण (unsplash)

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