बुद्ध के उपदेशों ने समय-समय पर मानवता को कठिन परिस्थितियों में राह दिखाई है, तथा विश्व भर में अनेक स्थानों पर प्रतिमाएं भी देखने को मिल जाती हैं। आश्चर्यजनक रूप से इन प्रतिमाओं की मुद्राओं में कोई न कोई गहरा सन्देश छुपा रहता है। भगवान् बुद्ध के बारे में थोड़ी जानकारी होने पर आप मूर्ति / मुद्रा और साथ में हाथ के इशारों को देखकर बुद्ध की मूर्ति में छुपा संदेश समझ सकते हैं। बुद्ध की प्रत्येक मुद्रा का संबंध उनके ऐतिहासिक जीवन या पिछले जन्मों की किसी महत्वपूर्ण घटना से होता है। इन मुद्राओं को आसन या मनोवृत्ति के रूप में भी जाना जाता है।
बुद्ध के जीवन के विभिन्न परिस्थितियों को दर्शाने वाली 100 से अधिक मुद्राएं हैं। बुद्ध की अनेकों मूर्तियां दुनिया भर के प्रमुख मंदिरों में स्थित हैं, अथवा किन्हीं संग्रहालयों में संभाली गई हैं। बुद्ध की प्रत्येक मुद्रा से हमें किसी न किसी प्रकार का संदेश अथवा आश्वासन मिलता है। कुछ उदाहरणों को देखते हैं:
सुरक्षात्मक बुद्ध / भय पर काबू पाना
इस मुद्रा में बुद्ध अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर और बाहर की ओर मुख किए हुए बैठे हैं। इस मुद्रा के दो सामान्य अर्थ हैं। दाहिना हाथ प्रतीकात्मक रूप से एक ढाल का प्रतिनिधित्व कर रहा है, अतः यह संरक्षण बुद्ध का है, दूसरा अर्थ अपने भय पर विजय प्राप्त कर लेने से स्पष्ट है कि जो सुरक्षा प्राप्त कर रहा है वह निश्चित ही भय मुक्त होगा।
ध्यानी बुद्ध / शांत बुद्ध
आमतौर पर यह बुद्ध की सबसे सामान्य मुद्राओं में से एक ध्यान में लीन बुद्ध की है। यह प्रतिमा विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो लोग अपने जीवन में शांति की तलाश में हैं, अथवा जो स्वयं के ध्यान कौशल को अधिक दृढ़ करना चाहते हैं। आमतौर पर लोग अपने घरों, शांति कक्षों आदि में ध्यान बुद्ध ही रखते हैं। क्यों की वे इस मुद्रा से संदेश लेकर शांत और आराम से बैठ सकते हैं। इस मुद्रा में, बुद्ध के दोनों हाथ गोद में रखे होते हैं, और हथेली ऊपर की ओर होती है, तथा एक पैर दूसरे पैर के ऊपर टिका होता है। कभी-कभी गोद में भिक्षा का कटोरा भी रखा हुआ दिख जाता है। इस प्रतिमा में बुद्ध की आँखे या तो आधा बंद या लगभग पूर्ण रूप से बंद होती है। मूर्ति आकार एक त्रिभुज की तरह होता है जो प्रायः स्थिरता का प्रतिनिधित्व करता है।
पृथ्वी को साक्षी के रूप में बुलाना/ भूमिस्पर्श बुद्ध
बुद्ध की यह मुद्रा थाई मंदिरों में सबसे आम है, जिसमें पैरों को एक के ऊपर एक रखा गया है। बायां हाथ गोद में है, और दाहिना हाथ जमीन की तरफ इशारा कर रहा है। जिसकी हथेली बुद्ध की तरफ अंदर की ओर है। इस मुद्रा को पृथ्वी को साक्ष्य के बुलाने हेतु जाना जाता है। यह बुद्ध के लिए आत्मज्ञानी होने के क्षण को परिभाषित करती है।
निर्वाण बुद्ध / झुके हुए बुद्ध
यह प्रतिमा पृथ्वी पर, बुद्ध के निर्वाण में प्रवेश करने से पूर्व जीवन के ऐतिहासिक अंतिम क्षणों को दिखाती है। इस मुद्रा में, बुद्ध को हमेशा एक विश्राम पट्टिका के शीर्ष पर दाहिनी ओर लेटे हुए दिखाया जाता है।
चिकित्सक बुद्ध
चिकित्सा बुद्ध को नीली त्वचा के साथ चित्रित किया जाता है। इस मुद्रा में दाहिने हाथ को नीचे की ओर रखा गया है, जिसकी उंगलियों को जमीन की ओर बढ़ाया गया है तथा हाथ बाहर की ओर है। बाएं हाथ में जड़ी-बूटियों का कटोरा रखा गया है - तिब्बतियों द्वारा यह माना जाता है कि बुद्ध दुनिया को दवा का ज्ञान देते थे।
बौद्ध धर्म में शाक्यमुनि बुद्ध को ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत देवताओं ने सौभाग्य के आठ प्रतीक प्रसाद के रूप में भेंट किये। इन प्रतीकों को बौद्ध धर्म में अष्टमंगल के नाम से जाना जाता है। इन आठ प्रतीकों को शुभ माना जाता है। प्राचीन काल में यह प्रतीक भारत में राजाओं के राज्याभिषेक जैसे समारोहों में विभिन्न चरणों में प्रयोग किये जाते थे।
यह आठ शुभ माने जाने वाले प्रतीक क्रमशः सिंहासन, स्वस्तिक, हाथ की छाप, झुकी हुई गाँठ, गहनों का फूलदान, जल मुक्ति कुप्पी, मछलियों की जोड़ी, ढक्कन वाला कटोरा हैं।
विभिन्न परम्पराओं में इन आठ शुभ प्रतीकों को अलग-अलग क्रमों में रखा जाता है, साथ ही इनसे जुड़े सन्देश और मान्यताएं भी बदल जाती हैं।
तिब्बती बौद्ध घरेलू और सार्वजनिक संगोष्ठियों में अन्य विशेष प्रकार के आठ शुभ प्रतीकों (अष्टमंगला) का प्रयोग करते हैं।
1.शुभ प्रतीक -
शंख
मान्यता है की शंख गहरी, मधुर, और व्यापक रूप से विस्तृत ध्वनि का उद्घोष करता है। यह बौद्ध शिष्यों को अज्ञानता की नींद से जागकर उन्हें दूसरों के कल्याण के माध्यम से स्वयं का कल्याण करने का आग्रह करता है।
2.
अंतहीन गाँठ: यह गाँठ परम एकता का प्रतीक है, इसके अलावा यह गांठ बौद्ध धर्म के अंदर प्रवेश की शिक्षा देती है।
3.
दो सुनहरी मछलियां: यह मछलियां सांसारिकता में संलिप्त हुए बिना, निर्भयता से सभी ज़रूरतमंद प्राणियों की सेवा करने का प्रतीक हैं। साथ ही दो मछलियां मूल रूप से भारत की दो मुख्य पवित्र नदियों - गंगा और यमुना का प्रतिनिधित्व भी करती हैं। बौद्ध धर्म में, मछली खुशी का प्रतीक है क्योंकि वे पानी के अंदर पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती हैं।
4.
कमल का फूल या पद्म: आसक्ति तथा इच्छा के गंदे पानी के ऊपर तैरते हुए , कमल शरीर, वाणी और मन की शुद्धता का प्रतिनिधित्व करता है। कमल पवित्रता और त्याग का भी प्रतीक है।
5.
जड़ा हुआ छत्र: जड़ा हुआ छत्र नुकसानदेह शक्तियों और बीमारी से जीवों की सुरक्षा का दूतत्व करता है। यह अंतरिक्ष के विस्तार को दर्शाते हुए सुरक्षात्मकता का भाव देता है।
6.
फूलदान: यह स्वास्थ्य, दीर्घायु, धन, समृद्धि तथा ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है।
7.
धर्मचक्र: धर्मचक्र या "कानून का पहिया" गौतम बुद्ध और धर्म शिक्षण का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रतीक का उपयोग प्रायः तिब्बती बौद्धों के द्वारा किया जाता है। नेपाली बौद्ध आठ शुभ प्रतीकों में कानून के पहिये का उपयोग नहीं करते हैं।
8.
विजय ध्वज: ध्वज" प्राचीन भारत में युद्ध के दौरान सेना का प्रतिनिधित्व करता था। यह ध्वज चार प्रमुख बाधाओं अभिमान, इच्छा, अशांत मन और मृत्यु का भय पर बुद्ध की विजय को दर्शाता है। मठ की छतों पर रखे बेलनाकार ध्वज आमतौर पर तांबे से निर्मित होते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3u89o6X
https://bit.ly/3woFZGZ
https://bit.ly/2REkbZ7
https://bit.ly/2Sea8Ki
चित्र संदर्भ
1. सारनाथ (गांधार) में बुद्ध के पहले उपदेश का एक चित्रण (wikimedia)
2. अजंता में बुद्ध की मुद्रा का एक चित्र (wikimedia)
3. तिब्बती शैली के अष्टमगला प्रतीक का एक चित्रण (wikimedia)