बुद्ध पूर्णिमा विशेष बुद्धत्व क्या है तथा बौद्ध धर्म के कुछ मूल कर्तव्य

मेरठ

 26-05-2021 07:50 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

नित-प्रतिदिन हमारे सामने विभिन्न प्रकार की अच्छी-बुरी परिस्थितियां आती रहती है, जाहिर है एक भावुक प्राणी होने के नाते यह हमें निश्चित ही प्रभावित करेंगी। परन्तु बुद्धत्व प्राप्त करे हुए व्यक्ति को उसकी इच्छा के बिना न कोई परिस्थिति दुखी कर सकती है, और न ही हर्षित। लेख में आगे हम बुद्धत्व के कुछ ऐसी ही अन्य विशेषताओं को समझेंगे।

बुद्धत्व क्या है ?
बुद्ध शब्द का अर्थ होता है (जागृत व्यक्ति) "पूर्ण रूप से जगा हुआ व्यक्ति"। बौद्ध धर्म के अनुसार बुद्धत्व किसी मनुष्य की ऐसी स्थिति को कहा जाता है, जिसमें उस मनुष्य के सारे प्रश्न समाप्त हो गए हों, तथा जानने के लिए अब कुछ भी शेष न रह गया हो, उसे परम ज्ञान की प्राप्ति हो गयी हो। तथा पूरा ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात वह निर्वाण (निर्वाण का मतलब सभी दुःख-चिंताओं से मुक्ति पा लेना होता है) की ओर निकल चुका हो। बुद्धत्व केवल किसी चुने हुए अथवा विशेष धर्म, क्षमता वाले व्यक्ति के लिए आरक्षित नहीं है।
कोई भी बुद्ध बन सकता है। हालांकि, बुद्धत्व प्राप्त करना इस दुनिया में किये जाने वाले सबसे कठिन कार्यों में एक है, जहाँ समस्त सांसारिक सुखों का त्याग करने के लिए भारी आत्मबल की आवश्यकता होती है। परम ज्ञान को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपने मन को सभी बुरे विचारों से मुक्त और शुद्ध करना होगा। किसी कमजोर आत्मबल व्यक्ति के लिए यह कई जन्मों में सम्पन्न किया जाने वाला काम है, परंतु स्व-प्रशिक्षण की उच्च योग्यता और लंबी अवधि तक अपनी सर्वोच्च क्षमता से प्रयास करने पर इसे हासिल किया जा सकता है। इस आत्म-प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में आत्म-अनुशासन, आत्म-संयम, अथाह प्रयास, दृढ़ संकल्प, और किसी भी तरह के कष्ट से गुजरने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
प्रत्येक बुद्ध की कुछ विशेष चारित्रिक विशेषताएं होती हैं, और कई बौद्ध मठों में दैनिक रूप से जपा जाता है। इन विशेषताओं को अक्सर पाली कैनन के साथ-साथ अन्य शिक्षा विधाओं में दोहराया जाता है,जैसे की-
● इस प्रकार चला गया, इस प्रकार आओ (Sanskrit: तथागत)
● योग्य (Sanskrit: arhat)
● स्वयं में पूरी तरह से जगा हुआ (Sanskrit: सम्यक-संबुद्ध)
● ज्ञान और आचरण में निपूर्ण (Sanskrit: विद्या-चरन-सपन्ना)
● वह जो अच्छी तरह से चला गया (Sanskrit: सुगाता)
● विश्व के ज्ञाता (Sanskrit: लोकविदा)
● नायाब (Sanskrit: अनुत्तारा)
● वश में किए जाने वाले व्यक्तियों का नेता (Sanskrit: पुरुष-दम्य-सारथी)
● देवताओं और मनुष्यों के शिक्षक (Sanskrit: शास्ता देव-मनुष्य:)
● धन्य या भाग्यशाली (Sanskrit: भगवत)

इसी प्रकार बौद्ध धर्म के कुछ मूल कर्तव्य भी होते जिनका उन्हें पालन करना पड़ता है।
● एक बुद्ध को यह भविष्यवाणी करनी चाहिए कि कोई अन्य व्यक्ति भी भविष्य में बुद्धत्व प्राप्त करेगा।
● बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त करने के प्रयास करने के लिए किसी और को भी प्रेरित करना चाहिए।
● एक बुद्ध को उन सभी को परिवर्तित करना चाहिए जिसको परिवर्तित होना चाहिए।
● एक बुद्ध को अपने संभावित जीवन काल का कम से कम तीन चौथाई जीवन व्यतीत करना चाहिए।
● एक बुद्ध को स्पष्ट रूप से ज्ञात होगा कि अच्छे कर्म क्या हैं और बुरे कर्म क्या हैं।
● एक बुद्ध को अपने दो शिष्यों को अपने प्रमुख शिष्यों के रूप में नियुक्त करना चाहिए।

बौद्ध धर्म में अरहत और बोधिसत्व प्रमुख शब्द है। बौद्ध धर्म के भीतर विभिन्न संप्रदाय मौजूद हैं, जिसमें थेरवाद प्रमुख हैं, जिन्हें हीनयान भी कहा जाता है। और दूसरा संप्रदाय महायान है। अरहत एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग थेरवाद संप्रदाय द्वारा किया जाता है। जबकि बोधिसत्व का प्रयोग महायान द्वारा किया जाता है। और बौद्धों के बीच इन शब्दों और उनके अर्थ पर छोटी-मोटी बहस होती रहती है। महायान बौद्ध अरहत पर स्वार्थी होने का आरोप लगाते हैं, उनके अनुसार अरहत दूसरों की मदद करने के बजाय, अपने स्वयं के उद्धार की चेष्टा करते हैं। थेरवाद परम्परा में भिक्षु आम समाज से दूर जंगलों में चले जाते हैं, और भीख मांगकर अपने भोजन की आपूर्ति करते हैं। तथा शेष समय में अरहत बनने के लिए अपना समय ध्यान में बिताते हैं। महायानवादियों का दावा है कि जब तक किसी को बोधिसत्व प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक आप बुद्ध नहीं बन सकते। बोधिसत्व आदर्श का स्रोत बुद्ध की जातक कथाओं में बताया गया है। इनमें से प्रत्येक कहानी में, बुद्ध बताते हैं कि कैसे उन्होंने बुद्ध बनने के लिए इंसान या जानवर के रूप में लाखों पिछले जन्मों में अनेक प्रकार से लोगों की मदद की।
आमतौर पर प्रचलित कहानियों में बताया जाता है की बुद्ध सात सप्ताह तक बोधि वृक्ष के नीचे बैठे रहे। वह आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद ध्यान लगा रहे थे। जिस दौरान निश्चित रूप से, उपवास भी कर रहे थे। ध्यान में बैठे हुए बुद्ध के चित्रण को लगभग हमेशा उन्हें एक स्वस्थ शरीर के साथ चित्रित करते हैं। किन्तु कई दुर्लभ मूर्तियां उन वास्तविकताओं को भी चित्रित करती हैं, जहाँ भूख से उनका शरीर पूरी तरह क्षीण हो चुका है। गांधार के प्राचीन क्षेत्र से एक धूसर विद्वान मूर्ति प्राप्त हुई है , जिसे "क्षीण बुद्ध" के रूप में जाना जाता है। यह मूर्ति उन कुछ गिनी चुनी मूर्तियों में से एक हैं जिनमे चौथी शताब्दी के बीच की उपवास परंपरा तथा बुद्ध क्षीण और भूखे रूप में दिखाए गए हैं। यह मूर्ती आत्म-सशक्तिकरण और मानव आत्मा द्वारा पीड़ा पर विजय पाने का प्रतीक है। यह बुद्ध की अविश्वसनीय इच्छा और समर्पण का प्रकट रूप है और यही कारण है की बुद्ध पथ पर चल रहे बौद्ध उपासकों और अनुयायियों के लिए यह मूर्ती एक प्रतिष्ठित छवि है।

संदर्भ
https://bit.ly/3uZkQmo
https://bit.ly/3u1owTx
https://bit.ly/2QxzB0U
https://bit.ly/3bzQRtO
https://bit.ly/3fxkVqS

चित्र संदर्भ

1.वाट महत बुद्ध सिर एक प्रसिद्ध मूर्ति है जो दशकों से बरगद के पेड़ की जड़ों के बीच में है का एक चित्रण (Unsplash)
2. बुद्ध भिक्षुओं से जुड़ने के लिए वस्त्र का अनुरोध करने का एक चित्रण (wikimedia)
3. बुद्ध और भिक्षुओं की एक सभा 551 सीई उत्तरी क्यूई राजवंश हेनान प्रांत चीन को दर्शाती मन्नत स्टेला का एक चित्रण (wikimedia)

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