समय के साथ बदलते भारतीय मानचित्रकारी के स्वरूप

मेरठ

 25-05-2021 10:02 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

पृथ्वी की सतह के किसी भाग, देश, नगर,पर्वत, नदी आदि की स्थिति को पैमाने की सहायता से कागज पर लघु रूप में दर्शाना मानचित्रण कहलाता है। मानचित्र दो शब्दों मान और चित्र से मिल कर बना है जिसका अर्थ किसी माप या मूल्य को चित्र द्वारा प्रदर्शित करना है। जिस प्रकार एक सूक्ष्मदर्शी किसी छोटी वस्तु को बड़ा करके दिखाता है, उसके विपरीत मानचित्र किसी बड़े भूभाग को छोटे रूप में प्रस्तुत करते हैं जिससे एक नजर में भौगोलिक जानकारी और उनके अन्तर्सम्बन्धों की जानकारी मिल सके। मानचित्र को नक्शा भी कहा जाता है।भारत में मानचित्रकारी का प्रारम्भ, नौपरिवहन और इमारतों की निर्माण योजनाओं के लिए बनाये गए प्रारम्भिक मानचित्रों से हुआ। भारतीय परंपराओं ने तिब्बती (Tibetan) और इस्लामी (Islamic) परंपराओं को प्रभावित किया, और ये स्वयं ब्रिटिश (British) मानचित्रकारों, जिन्होंने भारत के मानचित्र निर्माण में आधुनिक अवधारणाओं को मजबूत किया, से प्रभावित हुई।
भारत में मानचित्रकारी की गतिविधियों का प्रारंभ हड़प्पा सभ्याता से ही हो गया था, जिसके साक्ष्य हमें तत्काालीन पुरातात्वियक खोजों में मिलते हैं। हजारों पाषाण युगीन भारतीय गुफा चित्रों में कई मानचित्र-जैसे भित्तिचित्र दिखाई देते हैं। पौराणिक भारतीय ग्रन्थोंष में कुछ भारतीय क्षेत्रों का भौगोलिक वर्णन तो किया गया है किंतु इसमें पैमाने पर विशेष ध्यायन नहीं दिया गया है। भूमि पर विभिन्न आकृतियों और योजना लेखों के खींचने की परिपाटी बौधायन से पहले ही प्रारंभ हो चुकी थी।ग्रीक मानचित्रकला (Greek Cartography) में, 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व (मिलेटस के हेकेटियस ((Hecataeus of Miletus)) में भारत को एशिया (Asia) के पूर्वी किनारे पर एक दूरस्थ भूमि के रूप में दर्शाया गया। सिकंदर महान की विजय के बाद अधिक विस्तृत ज्ञान उपलब्ध हुआ, और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के एक भूगोलवेत्ता एराटोस्थनीज (Eratosthenes) ने भारत के आकार और स्थान का एक स्पष्ट खाका प्रस्तुरत करने का विचार रखा।पहली शताब्दी तक, हेलेनिस्टिक (Hellenistic / Greek) भूगोल में भारत का पश्चिमी तट स्पबष्ट, रूप से दर्शाया गया, जिसमें इरिथ्रियन सागर (Erythraean Sea) के पेरिप्लस (Periplus) जैसे यात्रा कार्यक्रम शामिल हैं। 8वीं शताब्दी के कवि और नाटककार भवभूति ने उत्तररामचरित के भाग 1 में उन चित्रों का वर्णन किया है जो भौगोलिक क्षेत्रों को दर्शाते हैं। मध्य युग के दौरान चीनी (Chinese) और मुस्लिम भूगोलवेत्ताओं के द्वारा भारत में कुछ नए अन्वेषण किये गए, जबकि 16वीं शताब्दीभ से पूर्व भारत के यूरोपीय मानचित्र (European map) बहुत अधूरे से प्रतीत होते हैं।एक प्रमुख मध्ययुगीन मानचित्रकार फारसी भूगोलवेत्ता अल बेरुनि (973-1048) थे, जिन्होंने भारत का दौरा किया और यहां के भूगोल का व्यापक अध्ययन किया, इन्होंने भारत के भूविज्ञान पर भी विस्तारपूर्वक लिखा। 16वीं शताब्दी से अर्थात अन्वेषण के युग और पुर्तगाली भारत के साथ यूरोपीय मानचित्र और अधिक सटीक हो गए। 20वीं शताब्दी में, मानचित्रकला के इतिहास के संकलन में 200 से अधिक मध्ययुगीन भारतीय मानचित्रों का अध्ययन किया गया था। अध्ययन में तांबे की तख्तीक और शिलालेखों पर भी विचार किया गया था, जिस पर भारत के ब्राह्मण पुजारियों को उनके संरक्षकों द्वारा दी गई भूमि की सीमाओं का विस्तार से वर्णन किया गया था। विवरण अच्छे भौगोलिक ज्ञान का संकेत देते हैं। तांग राजवंश के चीनी अभिलेखों से पता चलता है कि पड़ोसी भारतीय क्षेत्र का एक नक्शा वंग ह्वेन-त्से (Wang Hiuen-tse) को उसके राजा द्वारा उपहार में दिया गया था।1154 में, अरब भूगोलवेत्ता मुहम्मद अल-इदरीसी (Muhammad al-Idrisi) ने अपने विश्व एटलस (world atlas), तबुला रोजरियाना (Tabula Rogeriana) में भारत और उसके पड़ोसी देशों की मानचित्रकला और भूगोल पर एक खंड शामिल किया।
1596 में जेन ह्यूगेन वैन लिन्चोशों टेन ((Jan Huyghen Van Linschoten)) द्वारा भारत और मध्य पूर्व का चित्र तैयार किया गया। लिन्चोड़ोसटेन एक डच व्यापारी (Dutch Merchant) था, जो गोवा में आर्कबिशप के सहायक के रूप में काम करते हुए पुर्तगाली प्रशासन के गुप्त दस्तावेजों और नक्शों पर नजर डालने में कामयाब हुआ। इस दौरान भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोपीय व्यापार में पुर्तगालियों का वर्चस्व था, लिन्चोवीप टेन के नक्शे ने डच और अंग्रेजों को सिखाया कि भारत की ओर आने वाले लम्बेर रास्ते को कैसे पार किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वेरूप पुर्तगाली आधिपत्य के अंत की शुरुआत हुई। 1625 में विलियम बफिन(William Baffin) द्वारा उत्तेरी भारत का पहला ऐसा नक्शाओ बनाया,जो इस क्षेत्र के भूगोल और मुगल साम्राज्य, जो उत्तर में अफगानिस्तान और कश्मीर से लेकर दक्षिण में दक्कतन तक फैला हुआ था,के प्रसार को लगभग सटीक रूप से दर्शाता है। यह नक्शा सम्राट जहांगीर के अंग्रेजी राजदूत (Thomas Roe) द्वारा प्राप्त खुफिया जानकारी पर आधारित था।
1732 में इस्तांबुल (Istanbul ) में तुर्की (Turkish) के भूगोलवेत्ता कातिब सेलेबी द्वारा प्रकाशित, नक्शा अरबी टाइपोग्राफी (Arabic typography) के साथ मुगल साम्राज्य की पहुंच को दर्शाता है और जिसे एक विशिष्ट तुर्की रंग के रूप में वर्णित किया गया है।यह इस्लामिक दुनिया में छपने वाला भारत का पहला नक्शा था। 1761 में अंग्रेजों ने पांडिचेरी (अब पुदुचेरी) पर कब्जा कर लिया और इसे लगभग पूरी तरह से नष्ट कर दिया, यह फ्रांसीसी भारत (French India) की राजधानी थी और यह बेहतरीन यूरोपीय-नियोजित शहरों में से एक था। 1741 में बनाई गई गुलाबी रंग की योजना (pink-hued plan) में पांडिचेरी की वृक्षों की पंक्तियों के बीच बनी चौड़ी सड़कों और उस समय के प्रमुख स्थलों की पहचान की गई है।
पहला आधुनिक मानचित्र सर्वे ऑफ इंडिया (Survey of India), जिसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा 1767 में स्थापित किया गया था, के द्वारा तैयार किया गया। जो कि भारत गणराज्य के आधिकारिक मानचित्रण प्राधिकरण के रूप में आज भी अस्तित्व में है। 1776 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के एक कर्मचारी जेम्स रेनेल (James Rennell) द्वारा निर्मित नक्शाr, बंगाल (Bengal) और बिहार का सबसे पुराना सटीक नक्शा कहा जाता है और यह एक विस्तृ त नक्शाा है जिसमें नदियों, पर्वत श्रृंखलाओं और दलदलों के अतिरिक्त लगभग प्रत्येरक गांव को दर्शाया गया है। 1911 में, ब्रिटिश राज ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया, और वास्तुकार एडविन लैंडसीर लुटियंस (Edwin Landseer Lutyens) को नए शहर की योजना बनाने का महत्वाकांक्षी कार्य सौंपा। एक समय की मुगल राजधानी के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी बाहरी इलाके में "नई दिल्ली" का निर्माण किया जाना था, और यह नक्शा लुटियंस के मास्टर प्लान (master plan) को दर्शाता है, जिस पर अगले 18 वर्षों तक का निर्माण कार्य आधारित था। इसके अंतर्गत कुछ मुगल स्मारकों, जैसे हुमायूं का मकबरा, को नए शहर में संरक्षित किया गया।
इस नक्शेर में पहली बार जम्मू और कश्मीर के ऊबड़-खाबड़ इलाकों को सही ढंग से दर्ज किया गया था। भारत के विशाल त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में, थॉमस जॉर्ज मोंटगोमेरी (Thomas George Montgomery) को इस क्षेत्र का सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया था। 1856 और 1860 के बीच, अविश्वसनीय रूप से कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए, मोंटगोमेरी और उनकी टीम ने पहाड़ों पर चढ़ाई की और हिमालय की चोटियों की ऊंचाइयों पर व्यापक शोध किया। आधुनिक नक्शाो बनाने हेतु भारत में भी दुनिया के अन्यप हिस्सोंा की ही तरह डिजिटलीकरण (Digitization), फोटोग्राफिक सर्वेक्षण (Photographic Surveys) और छपाई (Printing) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। सैटेलाइट इमेजरी (Satellite Imageries), हवाई तस्वीरें (Aerial Photographs) और वीडियो सर्वेक्षण (video surveying) तकनीकों का भी उपयोग किया जाता है। भारतीय आईआरएस-पी5 (कार्टोसैट-1) (IRS-P5 (CARTOSAT-1)) को मानचित्रकारी के उद्देश्यक की पूर्ति के लिए इसे उच्च रिज़ॉल्यूशन (high resolution) वाले पैंक्रोमेटिक उपकरणों (panchromatic equipment) से लैस किया गया था। आईआरएस-पी5के बाद आईआरएस-पी6 (IRS-P6) नामक एक अधिक उन्नत मॉडल (model ) को कृषि अनुप्रयोगों के लिए विकसित किया गया। कार्टोसैट-2 (CARTOSAT-2) परियोजना, एकल पैंक्रोमेटिक कैमरे से सुसज्जित है, जो दृश्य विशिष्ट तत्काaल छवियों का समर्थन करता है, कार्टोसैट-1 परियोजना को सफल बनाता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3hDddyk
https://bit.ly/2QxgfsP
https://bit.ly/3fnrkos

चित्र संदर्भ
1. 1970 के दौरान के भारतीय नक़्शे का एक चित्रण (flickr)
2. सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है को दर्शाते मानचित्र का एक चित्रण (wikimedia)
3. 1870 में निर्मित महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण (1802-1852) में उपयोग किए गए त्रिभुजों और हिस्सों को दर्शाने वाले नक़्शे का एक चित्रण (wikimedia)

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