मेरठ से लगभग 23 किमी दूर एक परीक्षितगढ़ किला है। यह किला मेरठ के कुछ अज्ञात स्थठलों में शामिल है।परीक्षितगढ़ (शाब्दिक रूप से, "परीक्षित का किला") पौराणिक राजा दुष्यंत द्वारा बनाया गया था। यहां की खुदाई में सिक्के और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले हैं, जो इस जगह की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं। अट्ठारहवीं सदी में परीक्षित के किले में गुर्जरों का शासन रहा गुर्जर नरेश नैन सिंह द्वारा इसकी मरम्मतत करवायी गयी थी। इस किले की सीढि़यों से मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के दौरान के चांदी के सिक्केी मिले हैं, जो स्पीष्टढ इंगित करते हैं कि मुगल काल के दौरान इस स्थाचन पर लोगों की आवाजाही रही होगी। आज यह किला मेरठ के अज्ञाात स्थ लों में से एक है। हालांकि पर्यटक इसमें भ्रमण के लिए आते हैं।महान औषधि-पुरुष और राजा दशरथ के पुत्रों के जन्म के सूत्रधार ऋषि श्रृंगी का आश्रम भी इसके पास में ही स्थित है, जो परिक्षितगढ़ शहर की पौराणिकता की पुष्टि करता है।एक पौराणिक कथा के अनुसार, परीक्षितगढ़ का किला, राजा परीक्षित द्वारा बनाया गया था। राजा परिक्षित पाण्ड वों के वंशज अर्थात उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र थे। परीक्षितगढ़ किले से एक किमी की दूरी पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम स्थित है। वृक्षों से आच्छादित इस स्थल का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। इनमें एक संबल का प्राचीन वृक्ष भी है, जिसके बारे में लोग कहते हैं कि इसके नीचे शमीक ऋषि तपस्या में लीन थे।
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कहा जाता है कि इस क्षेत्र में सांपों का एक बड़ा झूण्डग रहता है किंतु यह सांप किसी को काटते नहीं हैं। और
राजा परीक्षित के पुत्र जान्मेजय का नाम लेने भर से कई मीटर पीछे लौट जाते हैं। इस किस्से के पीछे भी एक पौराणिक कथा छिपी हुयी है। माना जाता है कि एक बार राजा परीक्षित जंगल का भ्रमण करते हुए ऋषि शमीक की कुटिया में पहुंचे, प्याैस से व्याहकुल परीक्षित ने ध्यान लगाये हुए ऋषि शमीक को कई बार बड़े आदरभाव से जगाने का प्रयास किया किंतु ध्याेनमग्नु ऋषि का ध्याबन न टूटा, अंतत: परेशान होकर परीक्षित ने मरे हुए सांप को ऋषि के गले में डाल दिया। इस घटना को सुनकर ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने परीक्षित को श्राप दे दिया कि सात दिनों के बाद राजा परिक्षित सांप द्वारा दंश किये जायेंगे और इससे उनकी मृत्यु हो जायेगी।इस श्राप को सुनकर राजा परीक्षित ने अपने पुत्र को राजा बना दिया और अगले सात दिन तक ऋषि शुक देव जो कि ऋषि वेद व्यास के पुत्र थे से भागवत पुराण सुनी। भागवत कथा सुनने के बाद परीक्षित के भीतर से सर्प के दंश का भय समाप्तप हो गया क्योंतकि उन्होंदने आत्मन और ब्रम्ह को जान लिया था। ठीक सातवें दिन तक्षक सांप ऋषि का वेश बना कर राजा से मिलने आया और उनको दंश लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी।
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एक अन्य कथा के अनुसार जब राजा परीक्षित को श्राप मिला तो उन्होंशने एक ऐसे कांच का महल बनवाया जिसमें कोई आ जा न सके किंतु तक्षक सांप ने एक छोटे से जीव का रूप धारण करके महल में प्रवेश कर लिया और अपना वास्तेविक स्वसरूप धारण कर राजा को दंश लिया। इस घटना के बाद राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंयने सर्प सत्र या सर्प समूल नाश यज्ञ करवाने का निर्णय लिया। इस यज्ञ को करने के लिए ऋषियों को बुलाया गया। जन्मेजय ने यह ठाना कि मात्र तक्षक ही नहीं अपितु संसार के समस्त सांपों की बलि दे देंगे।यज्ञ के शुरू होते ही बड़ी संख्याप में सर्प हवन कुंड में आने लगे। इतने में एक आस्तिक नाम के ऋषि आये और उन्होंने महाभारत में घटी घटनाओं को जन्मेजय को सुनाया जिसके बाद जन्मेजय ने इस यज्ञ को रोकने का निर्णय लिया। लेकिन इस घटना के बाद इस स्थान पर सांपों में जान्मेजय का ऐसा ख़ौफ हुआ कि वो आज भी जन्मेजय का नाम सुनते ही कई मीटर पीछे लौट जाते हैं। श्रंगी ऋषि आश्रम के पुजारी का कहना है कि और तो और आश्रम में तो सांप की पूंछ पर भी अगर पैर रख दिया जाए तो वो नहीं काटता। यही नहीं वो ये भी दावा करते हैं कि इस स्थान पर अमावस्या और पूर्णिमा में पांच फनों वाला सांप भी आता है।
संदर्भ:-
https://bit.ly/2RyNxI3
https://bit.ly/2QVLRso
https://bit.ly/3h88unR
https://bit.ly/3f4QqZm
चित्र संदर्भ:-
1.भगवान् शिव तथा राजा परीक्षित का एक चित्रण (Prarang ,Wikimedia)
2.शिव तथा सांपो का एक चित्रण (Prarang, Youtube)
2.राजा परीक्षित का एक चित्रण (Wikimedia)