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हर मनुष्य एक दूसरे से एकदम भिन्न दिखाई देता है, और हर व्यक्ति के व्यवहार, क्षमता, और रुचि भी एक दूसरे से एकदम भिन्न होती है। DNA हर मनुष्य को एक दूसरे से अलग दिखIता है। चूँकि सभी का डीएनए अलग होता है, इसलिए कोई भी हूबहू किसी के जैसा नहीं होता। यहाँ तक की कई जुड़वां बच्चों में भी कई समानताओं के बावजूद अनगिनत भिन्नताएँ होती है। डीएनए के अनुवांशिक गुणों को विस्तार से और सरलता से समझते हैं।
धरती पर पाए जाने वाले हर प्रकार के जीवन में ढेरों छोटी-छोटी कोशिकाएँ पायी जाती है। तथा प्रत्येक कोशिका के भीतर निश्चित संख्या में गुणसूत्र पाये जाते हैं, जो कि जीव की आनुवंशिकता का निर्धारण करते हैं। अर्थात कोई जीव कैसा दिखेगा?, उसकी आंखों का रंग क्या होगा?, उसकी त्वचा का रंग क्या होगा?, और उसके शरीर के आकार निर्धारण जैसे कई ज़रूरी विशेषताएं गुणसूत्रों द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं। जिस पदार्थ से गुणसूत्रों का निर्माण होता है उसे DNA डीएनए अर्थात डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल कहा जाता है। कोई भी जीव अथवा मनुष्य कभी भी पूर्ण रूप से अथवा शत प्रतिशत सामान नहीं हो सकते, यहाँ तक की दो एक समान दिखने वाले मानव बच्चे भी कई मायनो में एक दूसरे से भिन्न होते हैं उनमें यह अंतर उनकी अँगुलियों के छाप से पहचाना जा सकता है। हालाँकि हमें ज्ञात है कि प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे से भिन्न दिखाई देता है, परन्तु आनुवंशिक रूप से हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से सम्बन्ध रखता है, अर्थात हर किसी के अंदर उसके पूर्वजों से मिलती जुलती कई समानताएं पाई जाती है। और इन समानताओं को भी डीएनए के आधार पर खोजा जाता है। सभी मनुष्यों के डीएनए में 99.9% समानता पाई जाती है, और हमारा डीएनए एक चिंपांज़ी (Chimpanzee) के 98% तक समान है। यानी वैज्ञानिक डीएनए की मदद से आपके अंदर किसी ऐसे गुण का पता लगा सकते हैं जो गुण कई वर्षों पूर्व आपके पूर्वजों में था।
मानवता के कई दशकों के विकास के मद्देनजर कई शोध किये गए जिनमें दो मुख्य तथ्य सामने आये। पहला यह कि मनुष्य और चिम्पांजी में कई समानताएं हैं। भले ही आज हम उनसे अलग दिखते हो और उससे अधिक बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्य कर सकते हों, परन्तु शोध से यह ज्ञात हुआ है की हम चिम्पांजी प्रजाति के ही वंशज हैं,जो बुद्धिमत्ता के स्तर पर उससे अधिक परिपक्व हो चुके हैं। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह सामने आता है, “की आज सभी जीवित मनुष्यों के पूर्वज अफ़्रीकी मूल के निवासी हैं”। मनुष्य की प्रजातियां, होमो सेपियन्स, (Homo Sapiens) अफ्रीका में विकसित हुईं। हालाँकि इसके धरती पर विस्तार की कोई पुख्ता जानकारी अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है, परंतु हाल में ही मिले एक जीवाश्म अवशेष से यह ज्ञात हुआ है, की मानवता का विकास आज से 300,000 वर्ष पूर्व से ही शुरू हो गया था। और विकास के २००,००० वर्षों तक हम अफ्रीका में ही रहे। धीरे-धीरे धरती के दूसरे भु-भागों में पलायन करना शुरू किया। जैसे-जैसे मनुष्य दुनिया में फैलने लगा, अलग-अलग जगहों पर तापमान, दबाव और रोशनी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देने लगा। भौगोलिक परिस्थियों की वजह से इंसानों की चमड़ी के रंग, उनकी लम्बाई इत्यादि में अन्तर दिखाई देने लगा। परन्तु डीएनए के आधार पर चिमपाजी और मनुष्य आज भी 99 प्रतिशत समान ही हैं।
आनुवंशिकता बीमारियों से लड़ने में कितने सहायक हो सकती है, इस बात पर भी अनेक प्रकार के शोध हो रहे हैं। कोरोना वाइरस किसी को किस हद तक बीमार कर सकता है, यह उनके जीन (Gene) पर भी निर्भर करता है। इस बीमारी से जो लोग संक्रमित हो रहे हैं, उनमें लगभर हर वर्ग और आयु के लोग सम्मिलित हैं। सामान्यतः वे लोग अधिक बीमार पड़ रहे हैं जो बुजुर्ग हैं, किसी अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित है। और कुछ ऐसे लोग भी हैं जो युवा है, और स्वस्थ भी, उन लोगों को भी यह बीमारी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। जिसके लिए डीएनए के जिम्मेदार पहलू की खोज की जा रही है। यह संभव है कि यदि किसी के पूर्वजों में बीमारियों से मुकाबला करने की प्रबल क्षमता थी, तो उनके वंशज भी इस बीमारी से अधिक निपुणता के साथ मुकाबला कर सकें।
सन्दर्भ:
● https://bit.ly/2QYewMI
● https://bit.ly/3gIEqim
● https://bit.ly/3nmoVxZ
● https://bit.ly/3tQuuqS
● https://bit.ly/3aDtuil
● https://bit.ly/3xptcFM
चित्र सन्दर्भ:
1.आनुवंशिक भिन्नता का एक चित्रण*