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अम्बिका देवी, जिन्हे अम्बा माता भी कहा जाता है, मुख्य रूप से 22वे तीर्थंकर प्रभु श्री नेमिनाथजी की अधिष्ठात्री अर्थात भगवान नेमिनाथजी की अधिष्ठायिका देवी हैI साथ ही अनेको जैन बंधुओं की कुल देवी भी हैI
अम्बिका देवीजी के सम्बन्ध में जैन शास्त्रों में एक कथा प्रचलित है I गिरनार पर्वत के निकट एक छोटा सा गाँव था ,गाँव में एक देवभट्ट नाम कI ब्राह्मण एवं उसकी पत्नी देवीला रहते थेI उनका एक पुत्र था जिसका नाम सोमशर्मान था I देवभट्ट ब्राह्मण की मृत्यु के कुछ समय बाद सोमशर्मान का विवाह अम्बिका नामक जैन कन्या से हो गया। प्रारम्भ से ही अम्बिका के जैन संस्कार होने से उसे धार्मिक कार्यो में बहुत रूचि थी I साथ ही, जैन साधु भगवन्तो के प्रति भी बहुत आस्था उनके मन में थी I
अम्बिका अपने पति सोमशर्मान को छोड़कर किसी भी पुरुष को कभी भी राद के दृष्टि से नहीं देखी थी I सोमशर्मान और अम्बिका के दो पुत्र थे, एक का नाम शुभानकर था और दूसरे का नाम प्रभाकर था I सोमशर्मान ब्राह्मण था, इसी कारण उसे पितृपक्ष में आने वाले श्राद्ध के समय पर भारी श्रद्धा थी I एक समय की बात है, पितृ पक्ष श्राद्ध का समय चल रहा था और अम्बिका घर पर अकेली थी I तभी एक महान तपस्वी मुनिराज भिक्षा हेतु अम्बिका के घर पर पहुंच जाते है I वह मुनि भगवंत एक माह के उपवास के पश्चात्पारणा हेतु भिक्षा लेने पधारे थे I उसी दिन संयोग से सोमशर्मान के पिता देवभट्ट का श्राद्ध भी था I इसी कारण से घर में लड्डू और भोजन बनाया गया था I अम्बिका ने मुनिभगवंत को देखकर आनंदित एवं हर्षित होते हुए साधुभगवंत को भली प्रकार से भिक्षा दी। किन्तु पास में रहने वाली पड़ोसन यह सब देख रही थी I
उसने अम्बिका से कहा: अरे, यह तूने क्या किया? श्राद्ध के दिन प्रथम दान तूने मलिन कपडे वाले साधु को दे दिया I अब श्राद्ध का अन्न और घर दोनों अपवित्र हो गए है| और जब अम्बिका की सास देवीला घर पर आयी तो पड़ोसन ने सारा वृतांत कह सुनाया जिसे सुनकर देवीला बहुत क्रोधित हुई और अम्बिका को बुरा भला कहा और जब सोमशर्मान घर आया तो देवीला ने सारी बात उसे बताई और कहा : इसने पाप किया है, इसे घर से निकाल दो ! सोमशर्मान ने उसे घर से निकाल दिया और अम्बिका अपने दोनों पुत्रो को लेकर वहा से चली गयी|
उसके पश्चात्ही सोमशर्मान के घर पर एक दैवीय चमत्कार हुआ I जिस बर्तन से अम्बिका ने भिक्षा दी थी , वह सोने के हो गए थे और भोजन में भी वृद्धि हो गयी थी I यह सब देखकर सोमशर्मान और देवीला को आत्मग्लानि होती है और सोमशर्मान एक लकड़ी लेकर अम्बिका को ढूढ़ने जंगल में चल देता है I जब अम्बिका अपने पति के हाथ में लकड़ी देखती है, वो डर कर अपने बच्चो को लेकर कुए में कूद जाती है और तीनो मरण गति को प्राप्त होते है I इतने मे , सोमशर्मान वहा पहुँचता है और तीनो को मरणासन्न अवस्था में देखकर रोने लगता है I और वह भी पश्चाताप करते हुए कुए में कूद जाता है और उसकी भी मृत्यु हो जाती है I अम्बिका मर कर देवलोक में देवाधि देव भगवान श्रीनेमिनाथजी की अधिष्ठात्री देवी बनती है और अम्बिका का पति सोमशर्मान भी पश्चाताप के कारण देव बनगया और सिंह का रूप धारण कर अम्बिका माता का वाहन बन जाता है I
अम्बिका देवी की पूजा बहुत पहले से ही की जाती रही है I अम्बिका देवी के बहुत से चित्र और मंदिर भारत में देखने को मिलते है | पद्मावती, चक्रेश्वरी के साथ देवी अंबिका को सम्मानित देवियो के रूप में रखा जाता है और जैन समुदायक लोग अपने तीर्थंकरो के साथ अम्बिका देवी की भी पूजा करते है I
परंपरा के अनुसार,अम्बिका देवी का रंग सुनहरा है ,और उसका वाहन सिंह है। उसकी चार भुजाएँ हैं। अपने दो दाहिने हाथों में से एक हाथ में आम का फल और दूसरी हाथ में आम के पेड़ की एकशाखा है और उनको दोनों बाये हाथो में से एक हाथ से लगाम लगाती है और दूसरे में उसके दो बेटे है I ,दक्षिण भारत में अंबिका देवी को गहरे नीले रंग की दिखाया गया है।
अंबिका एक स्वतंत्र देवी के रूप में भी लोकप्रिय रही हैं। यह अनुमान लगाया जाता है कि, अंबिका की उत्पत्ति के लिए तीन अलग-अलग दैवीय शक्तियों को जिम्मेदार बताया गया है–पहला देवी दुर्गा, दूसराआम औरआम के पेड़ों से जुड़ी कुछ देवी, तीसराकूष्मांडा।
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