मानव मस्तिष्क अनके जटिल संरचनाओं से युक्त हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। जन्म के समय से ही अन्य अंगों की तुलना में यह अधिक परिपक्व हो जाता है। परंतु आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य समस्या बन चुका है, जिसका सीधा प्रभाव हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। मनोविकार (Mental disorder) किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की वह स्थिति है जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करने पर 'सामान्य' नहीं कहा जाता है। स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार असामान्य होता है। वैसे तो मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में कई कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं परंतु अधिकांशत: मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है। लेकिन इन मानसिक रोगों में परिवार वालों की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। मरीज की मनोस्थिति को समझना, उसको सुनना, समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श करवाना, सही समय पर दवा देना तथा रोगी के मनोबल को बढ़ाए रखना आदि परिवार वालों की जिम्मेदारी होती है जो कि इलाज में काफी लाभदायक सिद्ध होती है।
ऐसा ही एक मानसिक विकार है “अल्ज़ाइमर रोग (Alzheimer's disease)”, यह रोग एक तेजी से फैलने वाला प्रगतिशील न्यूरोलॉजिक विकार (neurologic disorder) है, जो याददाश्त और अन्य महत्वपूर्ण मानसिक कार्यों को हानि पहुंचाता है। यह मनोभ्रंश का सबसे आम कारण होता है जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता बेहद कम हो जाती है। ये परिवर्तन हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन के लिए खराब साबित हो सकता है। अल्ज़ाइमर रोग में मस्तिष्क की कोशिकाएं खुद खत्म होने लगती हैं, जिससे याददाश्त और मानसिक कार्यों में लगातार गिरावट आती है। आमतौर पर यह विकार वृद्धावस्था में पाये जाने वाला विकार है। अल्ज़ाइमर रोग अपरिवर्तनीय और प्रगतिशील मस्तिष्क रोग है, जो कि धीरे-धीरे स्मृति और सोचने के कौशल को नष्ट कर देता है। अंततः यह रोग दैनिक जीवन में होने वाले सरल काम को पूरा करने की क्षमता को भी समाप्त कर देता है। वर्तमान में उपलब्ध अल्ज़ाइमर रोग की दवाएं और इसको नियंत्रित करने के आधुनिक तरीके अस्थायी रूप से इसके लक्षणों में सुधार या धीमा कर सकते हैं। लेकिन अल्ज़ाइमर रोग के लिए कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, इसलिए जरूरी है कि इससे जुड़ी सहायक सेवाओं को अपनाया जाए।
लक्षण
• विस्मृति या स्मृति हानि, शुरुआती संकेतों में हाल की घटनाओं या वार्तालापों को याद रखने में कठिनाई शामिल है।
• बार-बार बयान और सवाल दोहराना
• भाषा में कठिनाई, जिसमें नाम याद रखने में परेशानी शामिल है।
• परिचित लोगों को भूल जाना
• नियमित रूप से संपत्ति का दुरुपयोग करना
• परिवार के सदस्यों और रोजमर्रा की वस्तुओं के नाम भूल जाना
• योजना निर्माण, उचित निर्णय लेने और समस्या के समाधान में परेशानी।
• पूर्व परिचित कार्यों को करने में परेशानी।
• सोचने में कठिनाई, एकाग्रता में कठिनाई।
• स्थानिक रिश्तों जैसे कि सड़कों और गंतव्य के लिए विशेष मार्गों को याद रखने में परेशानी।
• सामाजिक व्यवहार में परेशानी।
• व्यक्तित्व और व्यवहार में परिवर्तन जैसे उदासीनता, समाज से दूरी बनाना, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता, नींद की आदतों में बदलाव, मनोभ्रंश आदि।
कारण और उपचार
वैज्ञानिक, अल्ज़ाइमर रोग से पीड़ित होने वाले सटीक कारणों को अभी तक समझ नहीं पाये हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादातर लोगों में, अल्ज़ाइमर रोग आनुवंशिक, जीवन शैली और पर्यावरणीय कारकों के संयोजन से होता है जो समय के साथ मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक व्यक्ति में अल्ज़ाइमर रोग के विकास के ज़ोखिम को बढ़ाने वाले अन्य जीन्स (genes) की खोज रहे हैं। अल्ज़ाइमर रोग के साथ, हृदय रोग, स्ट्रोक (stroke), उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापा जैसे बीमारियाँ भी जुड़ी हो सकती हैं। परंतु कई वैज्ञानिकों का मानना है कि एक बुनियादी स्तर पर मस्तिष्क प्रोटीन सामान्य रूप से कार्य करने में विफल हो जाता है, जो मस्तिष्क कोशिकाओं (न्यूरॉन्स (neurons)) के काम को बाधित करता है और विषाक्त घटनाओं की एक श्रृंखला को ट्रिगर (trigger) करता है। न्यूरॉन्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, एक दूसरे से संपर्क खो देते हैं और अंत में मर जाते हैं। अल्ज़ाइमर रोग के कारण को समझने की कोशिश कर रहे शोधकर्ता दो प्रोटीनों की भूमिका पर केंद्रित हैं: पहला बीटा-एमाइलॉयड (Beta-amyloid) और दूसरा टैंगल्स टाऊ प्रोटीन (Tangles Tau protein)। बीटा-एमाइलॉयड के टुकड़े एक साथ इकठ्टा होते हैं तो वे न्यूरॉन्स पर विषाक्त प्रभाव डालते हैं और कोशिका से कोशिका संचार को बाधित करते हैं।
शोधकर्ता कई ऐसी रणनीतियों पर काम कर रहे है जो बीटा-एमाइलॉयड को मस्तिष्क से हटाने में मदद कर सके। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज (Monoclonal antibodies) पर भी इस रोग के उपचार के लिये शोध किया गया था परंतु अल्ज़ाइमर रोग वाले व्यक्तियों के लिए इनका कोई लाभ नहीं हुआ। संभावना जताई गई कि सोलनेज़ुमाब (solanezumab) इस रोग पर अधिक प्रभावी हो। हाल के अध्ययनों में दवा सुरक्षित लग रही है, परंतु सोलनेज़ुमाब का मूल्यांकन किया जाना अभी बाकी है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि एक अन्य प्रोटीन फिन (Fyn) बीटा-एमिलॉइड (Beta-amyloid) के साथ संयुक्त होने पर अति-सक्रिय होता है, जो मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संबंध के विनाश को ट्रिगर करता है, इसलिये वर्तमान में फ़िन (Fyn) प्रोटीन को रोकने वाली दवाओं पर भी अध्ययन जारी है। अल्ज़ाइमर से ग्रसित रोगी के मस्तिष्क में टैंगल्स टाऊ प्रोटीन (Tangles Tau Protein) पाया जाता है। इसकी संरचना काफी जटिल होती है। यह सूक्ष्मदर्शी तंतुओं में बदल जाता है और तंत्रिका कोशिकाओं को आपस में जुड़ने एवं उनके बीच होने वाली अंतःक्रियाओं को बाधित करता है, जिस कारण व्यक्ति सही से संतुलन नहीं बना पाता है। वर्तमान में टाऊ एकत्रीकरण अवरोधक और टाऊ वैक्सीन (tau vaccines) में नैदानिक परीक्षणों में अध्ययन किए जा रहे हैं।
अल्ज़ाइमर रोग के लिए कोई उपचार उपलब्ध नहीं है; हालांकि इस रोग के लक्षणों के आधार पर राहत प्रदान की जा सकती है, और अपनी जीवन शैली में निम्न आदतों को शामिल कर इसके जोखिम को कम कर किया जा सकता हैं:
• नियमित रूप से व्यायाम करना
• वसा तथा तेल युक्त खाद्य पदार्थों का कम सेवन करना
• उच्च रक्तचाप, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल के उपचार के दिशानिर्देशों का पालन करना
• धूम्रपान छोड़ना
• अध्ययनों से पता चला है कि अल्ज़ाइमर रोग के जोखिमों को सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने, पढ़ने, नृत्य करने, संगीत वाद्ययंत्र बजाने, प्रौढ़ शिक्षा पाठ्यक्रमों में भाग लेने, और मनोरंजक गतिविधियों में भाग लेने आदि से कम किया जा सकता है।
देखभाल
इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना तथा फिर इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति आदि शामिल हैं। क्योंकि इस रोग से पीड़ित व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ बनता जाता है और एक बोझ बन जाता है। इसमें परिवार के सदस्यों को मुख्य देखभालकर्ता का समर्थन करना चाहिए और मदद की पेशकश करनी चाहिए। इसके लक्षण भावनाओं, विचारों और व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उदास महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी, दोस्तों और अन्य गतिविधियों से अलग होना आदि इसके लक्षणों के अंतर्गत आते हैं। इस लिये सदस्यों को ध्यान देना चाहिए कि ग्रसित व्यक्ति अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सके। अन्य सदस्यों को ग्रसित व्यक्ति के साथ धैर्य और समझदारी से काम देना चाहिए। इस प्रकार अनिवार्य देखभाल ही उपचार है तथा इसके माध्यम से इस रोग की अवधि को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जा सकता है।
अल्ज़ाइमर से ग्रसित लोगों की देखभाल और सहायता के लिए दुनिया भर में कई प्रमुख स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन और अल्ज़ाइमर एसोसिएशन (Alzheimer’s Association) है जो इस रोग से ग्रसित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास करते हैं। ऐसी ही एक भारतीय संस्थान है “‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान” या निम्हांस (NIMHANS-National Institute of Mental Health and Neuro Science), जो मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में देखभाल एवं अकादमिक खोज के लिये एक बहु-विषयक संस्थान है। यह कर्नाटक के बंगलुरु में स्थित एक प्रमुख चिकित्सा संस्थान है। इसके अलावा ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस (brain computer interface) भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस मशीन के द्वारा दिमाग की गतिविधियों की उच्च गुणवत्ता वाली छवि निकाली जाती है। यह एक ऐसी तकनीक है, जिससे दिमाग को कंप्यूटर से जोड़ा जा सकता है। इनके जरिए मस्तिष्क से बाहरी उपकरणों को नियंत्रित किया जा सकेगा और अपना संदेश दिया जा सकेगा। यह तकनीक उन अल्ज़ाइमर रोग से ग्रसित लोगों के लिये वरदान साबित हो सकती हैं जो मौखिक रूप से संवाद करने की क्षमता खो चुके हैं। ये ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस का लाभ उठा सकते हैं जो उन्हें बुनियादी विचारों (जैसे, "हां" और "नहीं") और भावनाओं को व्यक्त करने की अनुमति दे सकता है।
संदर्भ:
https://cutt.ly/IcZYl7C
https://www.alz.org/in/what-we-do.asp
https://cutt.ly/McZYQbo
https://cutt.ly/fcZYY2P
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/22451316
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र अल्जाइमर रोग के कारण स्मृति हानि को दर्शाता है। (पिक्साबे)
दूसरे चित्र में अल्जाइमर रोग के लिए देखभाल केंद्र दिखाया गया है (फ़्लिकर)
तीसरे चित्र में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान को दिखाया गया है। (shiksha.com)