उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बड़े तरबूज उत्पादक राज्यों में से एक है। चूंकि मेरठ गंगा और यमुना के मैदानी इलाकों के बीच स्थित है, इसलिए यहाँ कृषि कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है। तरबूज की खेती मेरठ के तटवर्तीय भागों में बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत में शीर्ष तरबूज उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना, महाराष्ट्र शामिल हैं। तरबूज, जिसे सिट्रलस लेंटस (Citrullus lanatus) नाम दिया गया है, कुकुरबिटेसी (Cucurbitaceae) परिवार का सदस्य है। यह मुख्य रूप से अफ्रीका (Africa) में उगाया गया था, लेकिन अब इसे दुनिया भर में उगाया जाता है। पूरे विश्व में इसकी 1,000 से भी अधिक किस्में मौजूद हैं। भारत में इसकी कई लोकप्रिय किस्में उगायी जाती हैं, जिनमें अर्का ज्योति (Arka Jyoti), अर्का माणिक (Arka Manik), असाही यामातो (Asahi Yamato), दुर्गापुरा केसर (Durgapura Kesar), दुर्गापुरा मीठा (Durgapura Meetha), सुगर बेबी (Suger Baby), पूसा बेदाना (Pusa Bedana) आदि शामिल हैं। अर्का ज्योति उत्तर और दक्षिण भारत दोनों के लिए उपयुक्त है, इस किस्म के पौधे में 6-8 किलोग्राम वजन वाले फल लगते हैं। फलों में लाल और मीठा गूदा (Flesh) होता है। अर्का माणिक किस्म अंडाकार होती है, तथा इसमें हल्की हरी धारियां पायी जाती हैं।
प्रत्येक फल का वजन लगभग 6 किलोग्राम होता है। असाही यामातो किस्म को जापान से यहां पेश किया गया था। इसका मांसल भाग गहरे गुलाबी रंग का तथा मीठा होता है। इसमें गहरे हरे रंग की धारियां मौजूद होती हैं। दुर्गापुरा केसर किस्म के फलों का वजन लगभग 4-5 किलोग्राम होता है। अन्य फलों के विपरीत, इन फलों का गूदा पीला होता है, जो बहुत मीठा नहीं होता है। दुर्गापुरा मीठा किस्म के फल मीठे-लाल गूदे के साथ हल्के हरे रंग के होते हैं। प्रत्येक फल का वजन लगभग 6-8 किलोग्राम होता है। सुगर बेबी किस्म को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (America) से यहां लाया गया है। इसके फल गोल होते हैं, जो लगभग 4-6 किलोग्राम वजन के हो सकते हैं। पूसा बेदाना किस्म एक संकर किस्म है, जो कि, मोटी और गहरे हरे रंग के गूदे के साथ बीज-रहित होती है। तरबूज की खेती करने के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधों की वृद्धि के लिए 25-30°C के बीच का तापमान उपयुक्त होता है। इसके अलावा, 10°C से कम तापमान में इनकी खेती नहीं की जा सकती है। तरबूज बलुआ, बलुई-चिकनी, मध्यम काली या जलोढ़ मिट्टी में वृद्धि कर सकता है। इसके लिए मिट्टी का pH 6.0-7,5 के बीच होना चाहिए तथा मिट्टी सूखी और कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध होनी चाहिए। इन्हें सूरज की पर्याप्त रोशनी तथा हर हफ्ते पानी की भरपूर मात्रा आवश्यक होती है। पानी केवल इसकी जड़ों को ही देना चाहिए, क्यों कि, अन्य भागों के भीगने पर इसका पौधा मुरझा सकता है। उपयुक्त वृद्धि के लिए पौधे को उर्वरकों की आवश्यकता भी होती है, किंतु उर्वरक की मात्रा मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम और जलवायु पर निर्भर करता है। गाय के गोबर से बनी खाद इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है। यूं, तो तरबूज का आकार गोल होता है, किंतु क्या आपने कभी वर्गाकार तरबूज देखें हैं? जापानी (Japanese) किसानों द्वारा वर्ग के आकार के तरबूज भी उगाये जाते हैं। इन्हें उगाने के लिए बेलों पर वृद्धि करते तरबूज के चारों ओर एक चौकोर, टेम्पर्ड ग्लास बॉक्स (Tempered glass box) रखा जाता है। जब तरबूज बड़ा हो जाता है, तब यह बॉक्स का आकार ले लेता है। इसे मुख्य रूप से छोटे जापानी रेफ्रिजरेटर (Refrigerator) के अंदर पूरी तरह से फिट (Fit) होने के लिए डिज़ाइन (Design) किया गया है। इसके अलावा इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाने में भी आसानी होती है, इसलिए जापान में वर्गाकार तरबूज उगाये जाते हैं। तरबूज में 90% पानी और कई महत्वपूर्ण इलेक्ट्रोलाइट्स (Electrolytes) होते हैं, इसलिए, यह एक हाइड्रेटिंग एजेंट (Hydrating agent) के रूप में काम करता है। इसके अलावा, यह फाइबर (Fibers) से भरपूर होता है, जो पाचन में सहायता कर सकता है। इस फल में विभिन्न कैरोटीनॉयड (Carotenoids) मौजूद होते हैं, जिनमें लाइकोपीन (Lycopene) भी शामिल है। इस कैरोटीनॉयड में एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-inflammatory) गुण होते हैं। इसमें विटामिन C (vitamin C) भी भरपूर मात्रा में होता है, जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। इसमें विटामिन B6 भी होता है, जो एंटीबॉडी (Antibodies) और आरबीसी (RBCs) के उत्पादन में प्रतिरक्षा प्रणाली की सहायता करता है। तरबूज में विटामिन A की मात्रा संक्रमण को रोकने में मदद करती है। विटामिन A और C नई त्वचा कोशिकाओं की मरम्मत और निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इसके अलावा यह फल वजन घटाने में भी महत्वपूर्ण है। इसमें मौजूद पानी की उच्च मात्रा शरीर की चयापचय प्रक्रिया को बढ़ाने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद कर सकता है। इस फल से ऊर्जा प्रदान करने वाले अनेकों पेय बनाए जा सकते हैं।
वर्तमान समय में चल रही कोरोना महामारी का प्रभाव तरबूज की बिक्री में भी दिखायी दिया है। महामारी के कारण तरबूज बाजार को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। इस स्थिति को देखते हुए तरबूज की खेती करने वाले किसान अपनी उपज को सीधा ग्राहकों के घर में पहुंचा रहे हैं। इसके अलावा तरबूजों के लिए मिलने वाले मूल्य में भी कमी आयी है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3wqj27b
https://bit.ly/3uyAo03
https://bit.ly/3mju21w
https://bit.ly/2PpnkLx
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र तरबूज की बिक्री को दर्शाता है। (स्नेपोगोट)
दूसरा चित्र बाजार में तरबूज दिखाता है। (विकिमेडिया)
तीसरा चित्र बाजार में तरबूज दिखाता है। (विकिमेडिया)