प्लाश फिश-ईगल (हैलियेटस ल्यूकोरियोफस) (Pallas Fish-Eagle (Haliaeetus leucoryphus)) उत्तरी गोलार्ध की कुछ अन्य प्रजाति की तरह एक प्रवासी पक्षी है। जो कि आज विलुप्ति के कगार पर खड़ा है। प्लाश फिश गरुड़ को समुद्री गरुड़ या बैंड टेल्ड फिश (band-tailed fish) गरुड़ के रूप में भी जाना जाता है। यह एक बड़े आकार का भूरे रंग वाला समुद्री गरुड़ है। यह गरुड़ उत्तरी भारत (Northern India), बांग्लादेश (Bangladesh), म्यांमार (Myanmar), और भूटान (Bhutan) आदि स्थानों में प्रजनन के लिए आता है। गर्मियों के लिए मंगोलिया और उसके आस पास के क्षेत्रों में पलायन करता है! इस पक्षी को रेड लिस्ट (Red list) में विलुप्तप्राय पक्षियों की श्रृंखला में रखा गया है, आज यह संपूर्ण विश्व में मात्र 2500 ही बचे हैं। यह एक आंशिक प्रवासी पक्षी है, जो की समय के साथ अलग-अलग स्थानों पर प्रवासित होता रहता है। इसके बाह्य स्वरूप की बात करें तो इसका चेहरा सफ़ेद और उस पर हल्के भूरे रंग की टोपी बनी हुई होती है, यह शरीर या पंख पर ज्यादा गहरे रंग का हो जाता है तथा पूँछ पर सफ़ेद और भूरे रंग की पट्टियाँ बनी हुई होती हैं।
यह पंखो सहित 71-85 इंच तक लम्बा हो सकता है। इन पक्षियों में मादा का वजन करीब 2 से 3 किलोग्राम का होता है और नर का 4 से 7 किलो तक का। इसका मुख्य आहार जलीय जीव जैसे ताजे पानी की मछली आदि हैं। यह पक्षी बहुत ज्यादा वजन का शिकार कर के भी उड़ सकता है। इस पक्षी के विलुप्त होने का कारण है, जल संग्राहक स्थानों का क्षरण और तीव्र शहरीकरण। जलकुम्भी नामक फसल भी इस पक्षी के पतन का कारण है क्यूंकि यह पूरे तालाब में फ़ैल जाती है और पक्षियों को शिकार के लिए स्थान नहीं मिल पाता है। एक और कथन यह भी है की यह पक्षी बड़े क्षेत्र में प्रजनन नहीं कर सकते हैं और इनके प्रजनन के लिए निर्धारित स्थान ही हैं, तो यह भी इनके विलुप्त होने का एक कारण है। यह पक्षी मेरठ के आस-पास के क्षेत्रों में भी पाया जाता है। अपनी शिकार की दुर्लभता तथा असमान्य जीवन शैली के कारण अलग-अलग स्थानों में इसका निवास स्थान होता है। इसकी इसी जीवनशैली की वजह से ही यह एक रहस्यमयी प्रजाति के रूप में जाना जाता है। यह सर्दियों के महीने में प्रजनन करते हैं और गर्मियों में उत्तर की ओर पलायन कर जाते हैं। इस पक्षी के शिकार को पूर्ण रूप से रोक दिया गया है तथा इसके संरक्षण के लिए कई योजनाओं को भी क्रिन्यावित किया जा रहा है।
2020 में इनके विषय में कुछ अद्भुत जानकारी प्राप्त हुई जब मंगोलिया में जीपीएस टैग (Gps Tag) पक्षी ने बांग्लादेश, और सर्दियों के दौरान कुछ और पश्चिम क्षेत्र में अपना रास्ता बनाया! इनमें से एक पक्षी बांग्लादेश में प्रजनन भी कर रहा था।
पलायन करने वाले पशु-पक्षियों की जीवन शैली को गहनता से जानने के लिए तकनीकी ने विशेष योगदान दिया। हाल ही में, रेडियो-टेलीमेट्री (radio-telemetry) का उपयोग उन पशुओं पर किया गया जिनके विषय में जानने के लिए एक पर्यवेक्षक को शारीरिक रूप से उनका पीछा करने की आवश्यकता हाती थी। 1980 के दशक के बाद से जानवरों की ट्रैकिंग में बड़े पैमाने पर सैटेलाइट टेलीमेट्री (Satellite telemetry) का उपयोग किया गया। इसमें एक पशु या पक्षी को पकड़कर उस पर एक ट्रैकिंग डिवाइस (tracking device) को संलग्न किया जाता है, और शोधकर्ताओं ने उस जीव की गतिविधियों की निगरानी करते हैं, वे जानवर को पुन: पकड़े बिना लंबे समय तक उसकी निगरानी कर सकते हैं। सैटेलाइट टेलीमेट्री प्लेटफ़ॉर्म ट्रांसमीटर ट्रांसमीटर (Platform Transmitter Terminals (PTT)) का उपयोग करता है जो पशु-पक्षियों में या तो बाह्य रूप से लगाए जाते हैं या फिर सर्जिकल (Surgical) के माध्यम से उनके शरीर के अंदर प्रत्यारोपित किए जाते हैं। तब पीटीटी, उपग्रह के माध्यम से रेडियो-सिग्नल (Radio Signal) के माध्यम से संचार करते हैं, जो सिग्नल को स्थानीय बनाते हैं और पीटीटी पर स्थितीय सुधार (अक्षांश और देशांतर) देते हैं। GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (Global Positioning System)) सैटेलाइट सिस्टम उस अर्गोस (Argos)- आधारित सिस्टम (system) के समान है जिसमें दोनों उपग्रह का उपयोग करते हैं और एक ही प्रकार के डेटा (data) (यानी, भौगोलिक स्थिति निर्धारण) प्रदान करते हैं।
पशु प्रवासन (नेबेल 2010) के बारे में बहुत सी उपयोगी जानकारी उपग्रह सैटेलाइट टेलीमेट्री से प्राप्त की जा सकती है। मिलर (Miller) आदि (2005) ने वयस्क मादा उत्तरी पिंटेल (अनास अकुटा) (Northern pintails (Anas acuta)) के कालक्रम, प्रवास मार्गों और सबसे महत्वपूर्ण निवास स्थलों को स्पष्ट करने के लिए आर्गोस उपग्रह टेलीमेट्री का उपयोग किया। जिससे इन्होंने इन पक्षियों से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी जुटा ली। इस प्रकार के विभिन्न पक्षियों की निगरानी की जा रही है।
सैटेलाइट टेलीमेट्री इस सवाल का जवाब देने में भी मदद कर सकती है कि पक्षी उड़ान के दौरान सोते हैं या नहीं। यह सर्वविदित है कि वस्तुतः प्रत्येक जीव को किसी न किसी बिंदु पर न्यून पर्यावरणीय जागरूकता, या नींद की गतिहीन स्थिति में प्रवेश करना होता है (रटनबॉर्ग 2005)। लेकिन क्या ये वास्तव में प्रवास के दौरान सोते हैं? एक वर्तमान सिद्धांत यह है कि पक्षी एक समय में मस्तिष्क के केवल एक गोलार्ध में धीमी-तरंग से गुजरते हैं, जो उचित मांसपेशियों के कामकाज और नेविगेशन (navigation) के लिए अनुमति दे सकते हैं।
सैटेलाइट टेलीमेट्री से प्राप्त डेटा का उपयोग करके, शोधकर्ता प्रवास के मार्ग, महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल और मानवजनित अवरोधों को निर्धारित कर सकते हैं। मिलर आदि द्वारा अध्ययन में उत्तरी पिंटेल के लिए महत्वपूर्ण स्टॉपओवर साइटों (stopover sites) को उजागर किया गया, और इनके भोजन प्राप्त करने की सबसे महत्वपूर्ण साइटों (Sites) की पहचान की। शोधकर्ता इन सूचनाओं का उपयोग करके, इन साइटों की सुरक्षा के लिए आग्रह करते हैं ताकि पिंटेल प्रवास की निरंतरता सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, भूमि स्तनधारियों के प्रवास का अध्ययन करते समय सैटेलाइट टेलीमेट्री का उपयोग बहुत काम आता है। सैटेलाइट टेलीमेट्री का उपयोग करके पशु प्रवासन का अध्ययन प्रवास में बाधाओं को उजागर करने में मदद कर सकता है, और किसी विशेष प्रजाति के प्रवास के संरक्षण में मदद करने के लिए समाधान भी प्रदान कर सकता है। इसके अलावा, गैर-प्रवासी जानवरों पर सैटेलाइट टेलीमेट्री का उपयोग करके संरक्षण अध्ययनों से महत्वपूर्ण अवधारणाओं और / या रणनीतियों को प्रवासी प्रजातियों पर भी लागू किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://cutt.ly/Sx1MScF
https://cutt.ly/8x1MJPU
https://cutt.ly/cx1MZPs
https://ebird.org/species/pafeag1
http://rrrcn.ru/en/archives/31210
https://cutt.ly/Xx1MBuN
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में प्लाश फिश-ईगल को उड़ते हुए दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
दूसरा चित्र में प्लाश फिश-ईगल को दिखाया गया है। (विकिमेडिया)
तीसरे चित्र में प्लाश फिश-ईगल को लड़ते हुए दिखाया गया है। (फ़्लिकर)