ईसाई धर्म के अनुयायिओं की सबसे पवित्र धर्मग्रंथ बाइबिल(Bible) में एक वृतांत है, की “मनुष्यों में शांति और मानवता का सन्देश फैलाने वाले परमपिता परमेश्वर के पुत्र को अनेकों शारीरिक यातनाएं दी गयी, और बड़ी ही निर्ममता के साथ सूली पर चढ़ा दिया गया”। यह घटना लगभग AD33 पूर्व ईस्टर सन्डे से दो दिन पहले पड़ने वाले शुक्रवार के दिन हुई। तब से प्रतिवर्ष यह दिन गुड फ्राइडे (Good Friday) (पवित्र शुक्रवार) एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। चूँकि इस दिन यीशु को प्रताड़ित करने के बाद शूली पर चढ़ा दिया गया। इस कारण इसे होली फ्राइडे (Holy friday) , ब्लैक फ्राइडे(Black Friday) और ग्रेट फ्राइडे(Great Friday) के रूप में भी मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार यीशु को सूली पर चढ़ाने का सबसे प्रमुख कारण यह है, कि उन्होंने शांति, और अहिंसा का प्रचार करते हुवे समाज में व्याप्त अनेक प्रकार के अंधविश्वासों का खंडन किया था। जिससे चारों तरफ उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी, और ढोंगी धर्मगुरुओं की राह में अड़चने पैदा होने लगी। जिस कारण उनके खिलाफ षड़यंत्र रचे जाने लगे और किसी तरह उन पर झूठे देशद्रोही, और धर्म के दुष्प्रचार के आरोप लगाकर जीवित अवस्था में ही उन्हें 2 अन्य अपराधियों साथ सूली पर लटका दिया गया। और करीब 6 घंटे भयंकर यातनाएं सहने के बाद एक ज़ोरदार चीख के साथ यीशु ने अपने प्राण त्याग दिए। इसके पश्चात वह पर मौजूद एक सिपाही ने उनकी मौत की पुष्टि करने के लिए उनके शरीर पर भाले से घाव किया, शरीर के इस घाव के पानी और खून का रिसाव होने लगा। जिसके बाद उन्हें सूली से उतारकर पास में चट्टान खोदकर बनाई गई कब्र में दफना दिया गया। साथ ही उस कब्र को मज़बूत पत्थर से ढक दिया गया। तीसरे दिन रविवार था, और कब्र के अंदर यीशु पुनर्जीवित हो उठे। उसी दिन से उस रविवार को ईस्टर रविवार के रूप में मनाया जाता है।
अक्सर हम सभी के मन में इस बात को लेकर प्रश्न उठता हैं, की चूँकि उस शुक्रवार को यीशु की मृत्यु हुई थी परन्तु फिर भी क्यों उसे गुड फ्राइडे कहा जाता है? यहाँ पर अलग-अलग देशों का दृष्टिकोण समझना ज़रूरी है। जर्मन में इस दिन को उदास शुक्रवार (Sorrowful Friday) कहा जाता है। कई बार "गुड" शब्द की उत्पत्ति पर भी प्रश्न उठा है, जहां इस दिन को “ईश्वर का शुक्रवार” (जो कि इसका पुराना नाम है) से भी सम्बोधित किया जाता है। गुड फ्राइडे को अच्छा इसलिए भी समझा जाता है क्यों की इसके तीसरे दिन ईस्टर रविवार(Easter Sunday) पड़ता है, जिस दिन ईशू पुनर्जीवित होते हैं। जिसकी ख़ुशी प्राप्त करने के लिए ऐसा करना आवश्यक था। उन्होंने एक सन्देश भी दिया कि अधिकांशतः हम ख़ुशी को तभी जी पाते हैं, जब हमने दुख को करीब से देखा हो।
भारत में मौजूद ईसाई समुदाय भी इस दिन को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ शहर में इस दिन विभिन्न चर्चों (ईसाई समुदाय के पूजा घर) में भारी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं। 2011 जनगणना आंकड़ों के अनुसार मेरठ शहर में 5,367 ईसाई रहते हैं हैं। यहाँ के कई चर्च यूरोपीय (European), गोथिक(Gothik) पुनरुद्धार और शास्त्रीय शैली में हैं। सरधना (Sardhana) को बेजोड़ ऐतिहासिक वास्तुकला के कारण पुरातत्व सर्वेक्षण (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) की राष्ट्रीय धरोहरों में शामिल किया गया है। उत्तर भारत का सबसे प्राचीन चर्च सेंट जॉन द बैपटिस्ट या जॉन चर्च (St. John the Baptist or John's Church) भी मेरठ में स्थित है। यह चर्च अपने खूबसूरत वास्तुकला के आधार पर बेहद लोकप्रिय है। जिसे 1819 में ब्रिटिश सैनिकों और उनके परिवारों के लिए ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बनाया गया था। इसके अलावा अन्य कई शानदार चर्च भी मेरठ में मौजूद हैं। मेरठ में 1868 निर्मित सेंट थॉमस चर्च(St. Thomas Church) वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना है। जिसका निर्माण 19 वीं शताब्दी के दौरान रेव होर्नेल और उनकी पत्नी एमिली होर्नेल, द्वारा किया गया। गुड फ्राइडे सभी चर्चों के लिए बेहद खास मौका होता है। जिस दिन पादरी (चर्च के पुजारी) तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति ईसाई समुदाय के अनुयायियों को संबोधित करते हैं। और उन्हें यीशु के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। यहाँ यीशु के द्वारा जन कल्याण हेतु द्वारा किये गए बलिदानों को याद किया जाता है। यह दृश्य बेहद विहंगम और भावुक करने वाला होता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3rRZsgN
https://bit.ly/3ukuz6d
https://bit.ly/3mgydv8
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र सरधना में रोमन कैथोलिक चर्च को दर्शाता है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर सरधना में रोमन कैथोलिक चर्च में यीशु की मूर्ति को दिखाती है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर सरधना में रोमन कैथोलिक चर्च के बाहर मूर्तियों को दिखाती है। (प्रारंग)