भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। यहाँ लगभग 22 प्रमुख भाषाएं बोली जाती है। तथा कुल मिलाकर छोटी बड़ी लगभग 19,500 उपभाषाएँ बोली जाती है। रोचक बात यह है, की यहाँ महज कुछ किलोमीटर के दायरे में ही भाषा अथवा बोली में अंतर दिखाई पड़ता है। पारंपरिक लोक संगीत का निर्माण भी उपभाषाओं में ही किया जाता है।
प्राचीन काल से ही लोक संगीत बेहद प्रचलन में थे। किसी भी त्योहार अथवा शादी विवाह आदि अवसरों पर वातावरण लोक संगीत की मनोरम धुनों से गूंज उठता था। उत्तर प्रदेश के हर जिले में आज भी लोक-गीतो के खजाने मौजूद हैं। जो की कई पीढ़ियों से नयी पीढ़ियों को उपहार स्वरूप भेंट किये गए हैं। जिनमे से कुछ प्रमुख लोक गीत निम्नवत हैं:-
1. सोहर (Sohar)
यह लोक संगीत का ऐसा रूप है। जिसमें जीवन काल के चक्र को बताया गया है यह संगीत बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाता है।
2. कहारवा (Kaharwa)
यह शादी-विवाह के अवसरों पर गाया जाता है।
3. चनैनी (Chanayni)
किसी समारोह आदि में नृत्य के समय गाया जाता है।
4. नौका झक्कड़ (Nauka Jhakkad)
यह नाई (Barber) समुदाय में बहुत लोकप्रिय है। और इसे नाई गीत के रूप में गाया जाता है।
5. बंजारा और नजवा (Banjara and Njava)
यह संगीत तेली समुदाय के लोगों द्वारा रात के समय में गाया जाता है।
6. कजली या कजरी (Kajli or Kajri)
इसे महिलाओं द्वारा सावन माह में गया जाता है। इसकी गायन शैली बनारस के घरानो से जुड़ी है।
7. जरेवा और सदवाजरा सारंगा (Jarewa and Sadavajra Saranga)
यह संगीत लोक-पत्थरों के (Folk-Stones) लिए गाया जाता है।
इन लोक गीतों के अलावा, ग़ज़ल, थुमारिस, कव्वालियां, मार्सियस आदि ने भी उत्तर प्रदेश में अपार लोकप्रियता पाई। यहाँ पर सालों से लोक-गीतों को जश्न और खुशी के अवसर पर गाया गया है। परन्तु आज नए संचार उपकरणों, संगीत उपकरणों और त्वरित तकनीक की दुनिया उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत के लोक संगीत पर हावी हो चुकी है। न जाने कितनी ही ऐसी महान कृतियां भुला दी गई हैं। और कइयों को हम हमेशा के लिए खोने की कगार पर हैं।
ग्रेटर नोएडा के शिव नादर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग, स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज के तीन विशेषज्ञों ने सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने के लिए एक अनूठा मिशन शुरू किया है। वे लोग गौतम बुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील में चितहरा ग्राम पंचायत के लोक गीतों के डिजिटल रिकॉर्ड का संग्रह कर रहे हैं।
उनके अनुसार हालिया वर्षों में में संगीत जगत में आये क्रांतिकारी बदलाव के बीच, आज भी गांव के लोग पारंपरिक लोक गीतों को जीवंत रखने में सफल हुए हैं। इन क्षेत्रों के लोग दशहरा, कथा, कृष्ण जन्माष्टमी, कीर्तन, होली, विवाह, जन्म आदि जैसे अवसरों पर सक्रिय रूप से भागीदारी करते हैं। और जमकर लोक संगीत गाते हैं। जिससे वे परंपरा को कायम रखने में सफल हो पा रहे हैं। सांस्कृतिक लोक संगीत को सुरक्षित रखने के कई अन्य उपाय भी हैं।
1. इसे आगे बढ़ाएं। माता-पिता अपने बच्चों को इसके महत्व और खूबसूरती से अवगत करा सकते हैं।
2. समय-समय पर स्थानीय संस्थाओं और सामाजिक केंद्रों पर लोक-संगीत पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किये जा सकते हैं।
3. विद्यालयों में इनसे जुड़े पाठ्यक्रम जारी किये जा सकते हैं।
4. स्थानीय मीडिया अपने स्तर पर लोक संगीतज्ञों को आमंत्रित करके उन्हें प्रोत्साहित कर सकती है।
5. संगीत का डिजिटल संग्रहण किया जा सकता है।
लोक संगीत किसी भी संस्कृति की पहचान कायम रखने के लिए बेहद ज़रूरी साधन है। क्यों की संगीत किसी भी संस्कृति के इतिहास और विशेषताओं तथा अन्य दुर्लभ कलाओं को संगीत के माध्यम से अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करता है। चूँकि यह संगीतमय होता है। इसलिए हमारे मस्तिष्क को समझने में भी आसानी होती है। जो की किसी भी संस्कृति और परंपरा को बनाए रखने का एक रोचक तरीका है।
संदर्भ:
https://bit.ly/31mRa5q
https://bit.ly/3rk0e5T
https://bit.ly/3tWNXGc
https://bit.ly/31kGowB
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में उत्तर प्रदेश के लोक संगीत को दिखाया गया है। (My GK)
दूसरी तस्वीर लोक संगीत दिखाती है। (सांस्कृतिक भारत)
तीसरी तस्वीर लोक संगीत और वाद्ययंत्र दिखाती है। (कच्छ जिला)