बचपन हमारी ज़िन्दगी का सबसे सुनहरा दौर होता है। एक बच्चे का न ही कोई अतीत होता है न ही उसे आने वाले भविष्य की कोई चिंता सताती है। वो पूरा दिन अपनी माँ के पास बैठे-बैठे खेलते हुए गुज़ार सकता है, जैसा करना बढ़ती उम्र के साथ समय की बर्बादी लगने लगती है। हमारे लिए बचपन का हर खिलौना अहम् हो जाता है, जिसकी यादें जीवन पर्यन्त हमारे साथ बनी रहती हैं। आपको भी यकीनन अपने बचपन के कुछ खास क्षण और खिलोने अभी भी उतनी ताज़गी के साथ याद होंगे जैसे की वो तब थे।
जब हम किसी बच्चे को खिलाने के साथ खेलते हुए देखते है, तो.सतही तौर पर हमें केवल इतना दिखाई देता ,की बच्चा खिलौने का आनंद उठा रहा है। वो खेल का मज़ा ले रहा है। परन्तु असल में बच्चा खिलौनों के माध्यम से बहुत कुछ सीख रहा होता है। और साथ ही उसका शारीरिक विकासभी कुछ हद तक खिलौने के प्रकार पर निर्भर करता है। जहा पज़ल और शतरंज जैसे खेल बच्चे के दिमाग को तीक्षण बनाते है। वहीँ क्रिकेट, बास्केट बॉल जैसे आउटडोर गेम.बच्चे के शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं। विभिन्न मोटर संचालित खेल उनकी मोटर सम्बंधित समझ को विकसित करते हैं। आपको खिलोने विभिन्न प्रकार की श्रेणियों में मिल जाते हैं। खिलोनो का डिज़ाइन बच्चे का विभिन्न विषयों जेसे की विज्ञानं, गणित और उसकी समझ विकसित करने में सहायक हो सकता है। बच्चों का दिमाग स्पंज की तरह होता है, वो अपने आस पास की वातावरण से ज्ञान, अनुभव और रचनात्मकता अवशोषित करते हैं।
तेज़ी से बदलते हुवे इस तकनीकी दौर में विभिन्न खेलों का सवरूप पूरी तरह से बदल चुका है। आज हमारे जीवन में तकनीक एक बेहद बड़ा परिवर्तन लेकर आई है। पहले चलने वाले लकड़ी के घोड़े की जगह आज इलेक्ट्रॉनिक रोबोट ले चुके हैं। आज रिमोट कंट्रोल कार आ चुकी है जो की केवल एक स्थान पर बैठे-बैठे एक रिमोट के माध्यम के आपके इशारों पर चलेंगी। शतरंज और अन्य कई दिमाग़ी खेलों को अब मोबाइल नामक यन्त्र में खेल सकते हैं।
निरंतर बदलती तकनीक के साथ खेलों का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। प्रतेयक खिलौना बच्चों के इन्द्रियों से जुड़ा होता है हर खिलौना बच्चे को आस-पास की दुनिया को बेहतर समझने में मदद करता है।
आने वाले समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) और आभासी वास्तविकता (Virtual Reality) जैसी तकनीक खेलों को एक अलग ही स्तर पर ले जाने वाली है। ये किसी भी खेल को खेलने का एक जीवंत अनुभव होगा। भविष्य के खेलों में आभासी और वास्तविक दुनिया में अंतर कर पाना बहुत मुश्किल हो जायेगा।
बच्चों के विकास के साथ-साथ खिलौने देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान निभाते हैं। भारत की कुल जनसंख्या में एक बड़ा अनुपात बच्चों का है। आपको हर बच्चे के पास खिलौने आसानी से दिख जायेंगे, और कई के पास तो खिलोने बड़ी संख्या में होते है। भारत एक बड़ी संख्या में में खिलोनो का आयात और निर्यात करता आ रहा है। परन्तु खिलौने के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने हेतु भारत सरकार भरसक प्रयास कर रही है। यहाँ पर स्थानीय खिलोनो की मांग को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार समय-समय पर खिलौने मेले (toy fair) आयोजित करती रहती है।
भारतीय खिलौना उद्द्योग को बढ़ावा मिलने और और अन्य देशों के खिलोनो पर आयात प्रतिबंधों के कारण भारत में खिलोनो की बिकी निश्चित रूप से बड़ी है। मेरठ भारत में एक बड़ा खिलौना निर्यातक शहर है। चीनी खिलौनों पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद मेरठ में खिलोनो की बिक्री लगभग चार गुना बढ़ गयी है। यहाँ बनने वाले खिलौने बच्चों की मानसिक और शारीरिक क्षमता का विकास कर रहे हैं। साथ ही देश की अर्थव्यस्था को मज़बूत तथा स्थानीय नागरिकों को रोजगार भी प्रदान कर रहे है। अच्छी बात यह है कि मेरठ में पारंपरिक खिलोनो के साथ-साथ नवीनतम तकनीक वाले खिलौने भी बन रहे है। जो जो प्रतिस्पर्धा को और अधिक रोमांचक बना रहे हैं।
संदर्भ:
http://www.fao.org/3/i3364e/i3364e08.pdf
https://bit.ly/3sfBuNj
https://bit.ly/3lPjuH7
https://bit.ly/3lMFjHk
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में लटकाए हुए लकड़ी के खिलौनों को दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
दूसरी तस्वीर में एक बच्चे को लकड़ी के खिलौने वाली कार के सेट से खेलते हुए दिखाया गया है। (पबलिक डोमिन इमेज)
तीसरी तस्वीर द इंडिया टॉय फेयर 2021 में ऑनलाइन मीटिंग में पीएम मोदी को दिखाती है। (यूट्यूब)