| Post Viewership from Post Date to 24- Mar-2021 (5th day) | ||||
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| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2164 | 1755 | 0 | 3919 | |
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ब्रिटिश राज से भारत में सर्वप्रथम हस्तशिल्प उद्योग और कारीगर बर्बादी की कगार पर पहुँचे। अंग्रे़जी मशीनों के चलन में आने से भारतीय हस्तशिल्प लुप्त होता चला गया। मशीनें बडे़ पैमाने पर उत्पादन करती थीं जिससे सस्ते उत्पादों खासकर सूती वस्त्र बाज़ारों में कम दामों पर मिलने लगे। वे गुणवत्ता और मात्रा में भारतीय सामानों से बेहतर थे। इस कारण भारतीय हस्तशिल्प को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार ने भारत में रेलगाड़ी की सुविधा आरम्भ कर दी जिससे मशीनी सामान दूर गाँवों तक पहुंचने लगा और वहाँ से कच्चा माल भी आसानी से इन तक पहुँचने लगा।
रामपुर जिला जो कई दशकों से कपड़ा उद्योग के लिए जाना जाता था। ब्रिटिश शासनकाल में भी इसकी यह पहचान लुप्त नहीं हुई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व रामपुर की रज़ा टेक्सटाइल या कपड़ा मिल (Raza Textile Mill) वहाँ की प्रमुख मिलों में सबसे आगे थी। धीरे-धीरे देश के औद्योगिक विकास के साथ कपड़ा उद्योग और इससे जुड़े रोजगार में तेजी से गिरावट आई। आज के समय में भी मशीनों द्वारा अधिक मात्रा और गुणवत्ता वाला कपड़ा बाज़ार में अधिक बिकता है। पारंपरिक उद्योग धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। इससे पता चलता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हमारे देश में ब्रिटिश शैली का प्रभाव बना हुआ है। हालाँकि भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से लुप्त नहीं हुई है परंतु हमारे तौर-तरीके, शिक्षा, स्वास्थ्य, भाषा-वस्त्र इत्यादि में अंग्रेजी संस्कृति की झलक दिखाई देती है। एक समय में लगभग 70 प्रतिशत औपचारिक रोजगार साधन उपलब्ध कराने वाला रामपुर देश के ऐसे स्थानों में से एक बन कर रह गया जो वहाँ के नवाब, ब्रिटिश सरकार और निजी कंपनियों के लिए अन्य विकास के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मात्र संसाधनों की आपूर्ति करते हैं, किंतु इन क्षेत्रों का विकास सभी के लिए एक बहस का मुद्दा बना हुआ है जिस पर कभी कोई ख़ास कदम नहीं उठाया जाता है।
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