2020 में विश्व ने अपना संपूर्ण ध्यान कोविड-19 (Covid-19) के टीके को विकसित करने पर लगा दिया था। हालांकि शुरुआत में इसकी कोई गारंटी (Guarantee) नहीं थी कि सुरक्षित और प्रभावी टीके भी उपलब्ध होंगे। उस समय, प्रभावोत्पादक अवरोध को कम-से-कम 50% तक लक्षणात्मक कोविड-19 को रोकने के लिए निर्धारित किया गया था। कई उपलब्ध टीके अब 90% से ऊपर की बीमारी को रोकने में प्रभावकारिता के साथ इस सीमा को पार कर लेते हैं, लेकिन कुछ लोग आज 2020 के मध्य की तुलना में कोविड-19 टीके को लेने में संकोच रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन टीकाकरण के संकोच को “टीकाकरण सेवाओं की उपलब्धता के बावजूद टीकाकरण से इनकार या स्वीकृति में देरी” के रूप में परिभाषित करता है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक स्वास्थ्य में सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में नामित किया है और यह समस्या भारत में भी देखी जा रही है।
भारत में टीकों की प्रभावकारिता के बारे में संदेह कोई नई बात नहीं है। इसी दुविधा का सामना अंग्रेजों (British) ने तब किया जब वे 120 साल पहले प्लेग (Plague) और हैजा के लिए टीके का अभियान शुरू किया था। जहां टीका लगाने में धार्मिक विचारों ने झिझक उत्पन्न करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं टीकाकरण के कारण एक दुखद घटना जिसमें टीकाकरण के बाद 19 लोगों की मृत्यु हो गई थी, ने भी नागरिकों के बीच अनिच्छा को उत्पन्न कर दिया था। लोगों द्वारा टीकाकरण को स्वीकार न करना कोई नई बात नहीं है, 1800 के दशक की शुरुआत में जब छोटे चेचक के टीके का इस्तेमाल बड़ी संख्या में किया जाने लगा था, तब भी कई लोगों द्वारा टीकाकरण को स्वीकार नहीं किया गया था, जिसका मुख्य कारण चेचक से बचाव के लिए काउपाक्स के छाले (Cowpox blister) का उपयोग आलोचनीय बन गया था। आलोचना मुख्य रूप से स्वास्थ्य-संबंधी, धार्मिक और राजनीतिक आपत्तियों पर आधारित थी, वहीं कुछ पादरियों का मानना था कि टीका उनके धर्म के खिलाफ है। 1970 के दशक में, डीटीपी टीके (DTP vaccine) को तंत्रिका संबंधी विकारों से जोड़ने पर विरोध की लहर का सामना करना पड़ा। टीकाकरण के विरोध का सामना करने के लिए, ऐसे कानून पारित किए गए हैं जिनके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपाय के रूप में टीकाकरण की आवश्यकता होती है।
टीकाकरण के विरोध के पीछे कई कारण हैं। कुछ लोगों को संभावित एलर्जी (Allergic) प्रतिक्रियाओं के उच्च जोखिम के कारण विभिन्न टीकाकरण को त्यागना पड़ता है। लेकिन ज्यादातर जो टीके से इनकार करते हैं उन्हें इस बात से ज्ञात होना चाहिए कि इसमें थोड़ा ही जोखिम होता है। हालांकि कुछ लोग धार्मिक मान्यताओं के कारण टीकाकरण से इनकार कर देते हैं, हालांकि अधिकांश धर्म टीकों की निंदा नहीं करते हैं। वहीं एक धारणा थी कि बेहतर स्वच्छता और सफाई के कारण बीमारियां गायब हो रही हैं, टीके से नहीं। यह पहले से समाप्त संक्रामक रोगों के पुनरुत्थान के बाद गलत साबित हुई है। यह भी माना जाता था कि एक टीका हमें रोगों से संपूर्ण रूप से नहीं बचाता है और टीका लगाने के बाद भी एक व्यक्ति बीमार हो सकता है, लेकिन वे हल्के लक्षणों का अनुभव करते हैं।
यदि देखा जाएं तो टीकाकरण के विरोध में उत्पन्न होने वाली अधिकांश चिंताएं भ्रांतियों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। दुर्भाग्यवश, स्वयं या बच्चों का टीकाकरण न करने का निर्णय उन्हें प्रभावित करता है। टीकों से इनकार करने वाले लोगों की बड़ी संख्या उन क्षेत्रों में संक्रामक रोगों की पुन: सक्रियता का कारण बन गई है जहां वे मिट गए थे या लगभग चले गए थे। जैसे, 2002 में संयुक्त राज्य अमेरिका में खसरे के जड़ से खत्म होने की घोषणा की गई थी। लेकिन 2014 में, खसरे के 600 से अधिक म सामने आए। खसरा एक संभावित घातक बीमारी है, और स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके पुनरुत्थान के पीछे का कारण माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को टीका लगवाने से इनकार करना है। वहीं टीकाकरण संकोच चुनौतीपूर्ण है और इस दृष्टिकोण के लिए इष्टतम रणनीति अनिश्चित बनी हुई है। टीके के संकोच को दूर करने के लिए डिज़ाइन (Design) किए गए कई हस्तक्षेप सूचना की कमी के प्रारूप पर आधारित है।
यह प्रारूप मानता है कि टीके से संकोच एक व्यक्ति को आवश्यक जानकारी की कमी के कारण है और इस समस्या को हल करने के लिए उन्हें उस जानकारी को प्रदान करने का प्रयास करना अवश्य है। इस दृष्टिकोण का प्रयास करने वाले कई शैक्षिक हस्तक्षेपों के बावजूद, पर्याप्त साक्ष्य इंगित करते हैं कि अधिक जानकारी प्रदान करना अक्सर टीके के प्रति संकोच वाले व्यक्ति के विचारों को बदलने में अप्रभावी होता है और वास्तव में, इच्छित प्रभाव के विपरीत हो सकता है और उनकी गलत धारणाओं को सुदृढ़ कर सकता है। वहीं ऐसा माना जाता है कि टीके से संकोच करने वाले माता-पिता के साथ बातचीत करते समय कई संचार रणनीतियों का उपयोग किया जाना चाहिए। इनमें ईमानदार और सम्मानजनक संवाद स्थापित करना शामिल है और एक टीके के जोखिमों को स्वीकार करना लेकिन बीमारी के जोखिम के खिलाफ उन्हें संतुलित करना; माता-पिता को टीके की जानकारी के सम्मानित स्रोतों का उल्लेख करना; और टीके से संकोच करने वाले परिवारों के साथ परस्पर बातचीत को बनाए रखना। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) ने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को टीका लगाने के बारे में उनसे प्रभावकारिता और सुरक्षा के बारे में पूछताछ की जाने पर सीधे अभिभावकों की चिंताओं का समाधान करने की सिफारिश की है।
अतिरिक्त सिफारिशों में जानकारी साझा करने की अनुमति देना शामिल है; एक संवादी स्वर बनाए रखना (व्याख्यान के विपरीत); विशिष्ट मिथकों का परदाफाश करने में अत्यधिक समय खर्च नहीं करना (ऐसा करने से एक व्यक्ति के दिमाग में वह मिथक मजबूत हो सकता है); तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करना और केवल मिथक को झूठ के रूप में पहचानना; और जानकारी को यथासंभव सरल रखना (यदि मिथक सत्य की तुलना में सरल लगता है, तो लोगों के लिए सरल मिथक को स्वीकार करना आसान हो सकता है)। वहीं टीकाकरण के दर्द के बारे में चिंताओं के कारण माता-पिता अपने बच्चे को टीका लगाने में संकोच कर सकते हैं। कई रणनीतियाँ हैं जिनका उपयोग बच्चे के दर्द को कम करने के लिए किया जा सकता है। ऐसी रणनीतियों में विकर्षण तकनीक (Pinwheels) शामिल हैं; गहरी साँस लेने की तकनीक; बच्चे को स्तनपान; बच्चे को कुछ मीठा देना; बच्चे को सीधा रखना; स्पर्श उत्तेजना प्रदान करना; त्वचा पर सुन्न करने वाले घटकों को लगाना; और सबसे दर्दनाक टीके को सबसे बाद में लगाना। वहीं वर्तमान में लोगों द्वारा कोविड-19 टीके को लेने में संकोच के पीछे कई कारण मौजूद हैं, जिसमें सुरक्षा, जोखिम कम होने की आत्म-धारणा, या विशेष रूप से फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTech) टीके पर सवाल उठाने जैसी चिंताएँ शामिल हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/38td23j
https://bit.ly/3eroVKI
https://bit.ly/3qw8ejP
https://bit.ly/3er2N30
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर टीकाकरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन दिखाती है। (skillsplatform)
दूसरी तस्वीर टीकाकरण के विरोध में प्रदर्शन करती है। (यूट्यूब)
तीसरी तस्वीर टीकाकरण के विरोध में प्रदर्शन करती है। (न्यू यॉर्क टाइम्स)