मंगल ग्रह लाल नहीं है - यह मानवता के ध्यान की गहनता से भरा हुआ है

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मंगल ग्रह लाल नहीं है - यह मानवता के ध्यान की गहनता से भरा हुआ है
चौंकिएगा मत यदि आज से 10 साल बाद कोई आपको ये कहे कि चलो गर्मियों में मंगल ग्रह पर छुट्टियां बिताने चलते है। जी हाँ यह बिल्कुल संभव है। और इंसानों के इस बेहद महत्वाकांक्षी सपने को पूरा करने के लिए पूरे विश्व की सारी स्पेस एजेंसी अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी है। और इन सारी कोशिशों के बाद सकारात्मक परिणाम आने शुरू हो चुके हैं।
सबसे पहले हमारे लिए मंगल ग्रह के बारे में कुछ बेहद दिलचस्प और ज़रूरी बातें जानना आवश्यक है। हमारे सौरमंडल में धरती सूरज से तीसरे नंबर (सूरज से 9.3 करोड़ मील की दूरी) पर स्थित है। तथा मंगल ग्रह सूरज से चौथे नंबर यानि (लगभग 14.2 करोड़ मील की दूरी) पर स्थित है। इस आंकड़े से एक बात और साफ़ हो जाती है की, मंगल गृह प्रथ्वी की तुलना में अधिक ठंडा है। क्यों कि सूरज की किरणों को मंगल तक का सफर तय करने में अधिक समय लगता है। तथा वे किरणे मंगल पर पृथ्वी की तुलना में कम क्षमता के साथ पहुंच पाती है।. मंगल ग्रह का व्यास (4,220 मील) धरती के व्यास से (7,926 मील) लगभग आधा है। यानि हमारी पृथ्वी उस ग्रह से दोगुनी बड़ी है। मंगल का वातावरण 96 फीसदी कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2), 1.93 प्रतिशत आर्गन, 0.14 प्रतिशत ऑक्सीजन(O2) और 2 प्रतिशत नाइट्रोजन्स (N) गैस से भरा है। चूँकि ऑक्सीज़न और कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी गैसों की उपलब्धता है। इसलिए मंगल पर मानव जीवन को बसाने के प्रयास लगाए जा रहे हैं।
आज पूरी दुनिया की जनसँख्या अभूतपूर्व रूप से वृद्धि कर रही है। और यदि जनसँख्या इसी तरह बढ़ती रही, तो भविष्य में मनुष्य के लिए संसाधनो,रहने, और खाने-पीने जैसी मूलभूत जरूरतों का आभाव हो सकता है। पृथ्वी पर भुखमरी, दंगे जैसी अन्य समस्याएं उतपन्न हो सकती है। साथ ही धरती पर बढ़ता प्रदूषण बड़े परमाणु हमले या पृथ्वी के बाहर से आने वाले उल्का पिंड या उस जैसी कई अन्य भयंकर आपदाएँ पृथ्वी पर कभी भी बिन बुलाये मेहमानों की तरह आ सकती है। यही वो कारण हैं, की आज मनुष्य को धरती के बाहर जीवन तलाशने की ज़रूरत पड़ रही है। क्यों की ऐसा न करने पर सम्पूर्ण मानवता पूर्ण रूप से विलुप्त हो सकती है।
आज पूरी दुनिया मंगल ग्रह पर जीवन को लेकर आस लगाये बैठी है। लोग हमारे इस पडोसी गृह में इतनी रूचि लेने लगे हैं कि मंगल मिशन पर हॉलीवुड और बॉलीवुड में कई सारी फ़िल्में भी बनी लगी है। ऐसी ही एक फिल्म जीरो में मंगल मिशन की कहानी को दिखाया गया है। जिसमे कहानी के मुख्य पात्र शाहरुख़ खान जो की एक बौना आदमी होता है। वह मेरठ से मंगल गृह तक की यात्रा करता है। और 15 साल बाद मंगल से लौटने के बाद भी वह धरती वासियों से 15 साल छोटा ही होता है। मंगल पर जाने की कहानी अब हकीकत की दुनिया में भी सच होने के बेहद करीब है।
प्रसिद्ध अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने 30 जुलाई 2020 को अपनी एक बेहद आधुनिक और शक्तिशाली अंतरिक्ष यान पर्सिवियरेंस (Perseverance ) को मंगल पर जीवन की संभावनाओं की तलाश के लिए रवाना किया था। जो की 18 फरवरी 2021 को मंगल गृह की रेतीली और पथरीली ज़मीन पर सफलता पूर्वक उतरा। धरती से मंगल ग्रह की सतह तक पहुंचने में प्रेज़रवेन्स को 45.8 करोड़ किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा। अपनी लेंडिंग के तुरंत बाद नासा के इस यान ने पृथ्वी पर जो तस्वीरें भेजी है, वो बेहद रोमांचित करने वाली है। और मंगल ग्रह पर इंसानों के बसेरे के भरोसे को और मज़बूत करती हैं। यह रोवर मंगल ग्रह पे खनिजों, वातावरण और करोड़ों सालों पहले मंगल ग्रह पर जीवन के प्रमाणों की जानकारी पृथ्वी से टकटकी लगाये वैज्ञानिको को देगा। इस कमाल के यान में स्वचालित सोलर पैनल लगाए गए है, जो सूरज की रोशनी से खुद को चार्ज करने और रोवर में लगे छोटे-बड़े उपकरणों को ऊर्जा देंगे। नासा के इस बेहद महत्वकांक्षी मिशन में कुल 2.2 अरब अमरीकी डॉलर का खर्च आया। ये प्रोजेक्ट को अंतरिक्ष से जुड़े कुछ बेहद महंगे प्रजेक्ट में से एक है।
इंसानियत मंगल गृह पर अपने पाँव जमाना शुरू कर चुकी है। और शायद आने वाले कुछ सालों में हम धरती को छोड़कर मंगल या अन्य निकटतम ग्रहों पर रहने लगे। लेकिन हम सभी को अंतररिक्ष को जीतने की होड़ में इस बात को भी याद रखना पड़ेगा, कि मगल या दूसरे ग्रह हमारे लिए अभी भी भविष्य की बात है। हमारा ध्यान इस बात पर भी बना रहना चाहिए की धरती हमारे लिए रहने का एक आदर्श स्थान बनी रहे।

संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Mars_2020
https://bit.ly/3laCrDH
https://cnn.it/2PYixjZ
https://bit.ly/3bEAJHD
https://bit.ly/3clIiCp

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में मंगल ग्रह पर रोबोट अंतरिक्ष वाहन को दिखाया गया है। (nasa.org)
दूसरी तस्वीर में मंगल ग्रह को दिखाया गया है। (nasa.org)
तीसरी तस्वीर में मंगल ग्रह पर रोबोट अंतरिक्ष वाहन को दिखाया गया है। (nasa.org)