तांडव हिंदू देवताओं द्वारा किया जाने वाला एक दिव्य नृत्य है। हिंदू धर्मग्रंथ में ऐसे विभिन्न अवसरों का उल्लेख किया गया है जब देवताओं ने तांडव नृत्य किया था। भागवत पुराण में उल्लेख किया गया है कि कृष्ण ने कालिया के सिर पर तांडव नृत्य किया था। कहा जाता है कि शिव ने अपने दुख और क्रोध को व्यक्त करने के लिए रुद्र तांडव नृत्य किया था। इन नृत्यों के माध्यम से देवता अपने भावों को अभिव्यक्त करते हैं, जब माता सती (शिव की पहली पत्नी, जिनका पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था) ने राजा दक्ष की यज्ञाग्नि में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, तब भगवान शिव ने अपने क्रोध और दुख को अभिव्यक्त करने के लिए रूद्र तांडव नृत्य किया था। उन्होंने यह नृत्य सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर शुरू किया। उनके क्रोध से ब्रह्मांड के चारों ओर भयानक तूफान उत्पन्न हो गया, यहां तक कि सूर्य भी उनके कोप से अछुता न रहा। जितना अधिक शिव ने नृत्य किया, उतना ही विनाश हुआ। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, आनंद/खुशी के साथ किए गए तांडव को "आनंद तांडव" कहा जाता है और हिंसक / क्रोध में किए गए तांडव को "रुद्र तांडव" कहा जाता है।
ताण्डव नृत्य से सात रूप होते हैं:
आनंदतांडव,
संध्यातांडव,
कालिकातांडव,
त्रिपुरातांडव,
गौरीतांडव,
संहारतांडव,
उमातांडव।
शैव मत में शिव तांडव को एक तीव्र वेग से किए जाने वाले नृत्य के रूप में वर्णित किया गया है जो सृष्टि, संरक्षण और विघटन के चक्र का स्रोत है। जबकि रुद्र तांडव में शिव ने अपने हिंसक स्वभाव को दर्शाया है, पहले में उन्हें सृष्टि निर्माता के रूप में तथा दूसरे में उन्हें सृष्टि संहारक के रूप में दर्शाया गया है। शैव सिद्धान्त परंपरा में, शिव को नटराज ("नृत्य का राजा") के रूप में नृत्य का सर्वोच्च स्वामी माना जाता है। तांडव शब्द की उत्पत्ति शिव के परिचारक तांडु से हुयी है, जिन्होंने शिव के अनुसार तांडव के अंगरसों और करण विधाओं के उपयोग के विषय में भरत (नाट्य शास्त्र के लेखक) को निर्देश दिए थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि तांडु नाटकीय कला के पहले लेखक रहे होंगे, जिसे बाद में नाट्य शास्त्र में शामिल किया गया था। वास्तव में, नृत्य, संगीत और गीत की शास्त्रीय कलाएँ शैव परंपरा की मुद्राओं और अनुष्ठानों से प्राप्त होती हैं। भरत ने नाट्य शास्त्र के तांडव लक्ष्मणम के चौथे अध्याय में तांडव के 32 अंगरस (Angaharas) और 108 करण (Karanas) का उल्लेख किया है। नृत्य मुद्रा बनाने के लिए करण पैरों के साथ हाथ के इशारों का संयोजन है। अंगरस सात या उससे अधिक करणों से बना है। शिव पुत्र गणेश जी को भी मंदिर की मूर्तियों में अष्टभुजा तांडव नृत्य मूर्तियाँ (तांडव नृत्य करते हुए गणेश का आठवां रूप) के रूप में दर्शाया जाता है। जैन परंपराओं के अनुसार, इंद्र ने ऋषभ (जैन तीर्थंकर) के जन्म के बाद उनके सम्मान में तांडव किया था।
रावण शिव का महान भक्त था, जिसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दक्षिण से कैलाश तक की लंबी यात्रा की। वो वहां शिव की प्रशंसा में स्तुति गाने लगा। उसके पास एक डमरू था, जिसकी ताल पर उसने तुरंत ही 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। रावण के स्तोत्र से शिव प्रसन्न हुए और वे रावण की धुन पर नृत्य करने लगे।
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
(उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,
और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,
और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,
भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।)
शिव का तांडव नृत्य उनकी पांच गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है
सृष्टि - निर्माण, विकास
स्थिति - संरक्षण, समर्थन
अनुग्रह - विमोचन, मुक्ति
तिरोभाव - भ्रम
समाहार - विनाश, विकास
रावण ने इस स्तोत्र की रचना अपनी दक्षिण से कैलाश की यात्रा के दौरान ही की। जब रावण लगभग ऊपर तक आ गया, और शिव उसके संगीत में मंत्रमुग्ध थे, तो पार्वती ने देखा कि एक व्यक्ति ऊपर आ रहा था। अब ऊपर, शिखर पर केवल दो लोगों के लिये ही जगह है। तो पार्वती ने शिव को उनके हर्षोन्माद से बाहर लाने की कोशिश की। वे बोलीं, “वो व्यक्ति बिल्कुल ऊपर ही आ गया है”। लेकिन शिव अभी भी संगीत और काव्य की मस्ती में लीन थे। अंतत: पार्वती उनको संगीत के रोमांच से बाहर लाने में सफल हुईं। और जब रावण शिखर तक पहुंच गया था तो शिव ने उसे अपने पैर से धक्का मार कर नीचे गिरा दिया। रावण, कैलाश के दक्षिणी मुख से फिसलते हुए नीचे की ओर गिरा। ऐसा कहा जाता है कि उसका ड्रम उसके पीछे घिसट रहा था और जैसे-जैसे रावण नीचे जाता गया, उसका ड्रम पर्वत पर ऊपर से नीचे तक, एक लकीर खींचता हुआ गया। अगर आप कैलाश के दक्षिणी मुख को देखें तो आप बीच में से ऊपर से नीचे की तरफ आता एक निशान देख सकते हैं। भगवान शिव की पत्नी पार्वती द्वारा शिव के तांडव के जवाब में किए गए नृत्य को लास्य के नाम से जाना जाता है। शिव के नृत्य 'तांडव' का परंपरा में सम्मान किया जाता है क्योंकि यह दिव्य लय, परमानंद, ऊर्जा और लौकिक संतुलन की सबसे उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है।
मेरठ के काली पलटन में स्थित बाबा औघड़नाथ मंदिर में शिवरात्रि के अवसर पर लाखों शिव भक्त जलाभिषेक के लिए आते हैं।
दर्जनों कांवड़िये दंडवत (लेटकर) मंदिर गर्भ में प्रवेश करते हैं। जलाभिषेक के दौरान कांवड़ियों को संभालने और व्यवस्था बनाए रखने के पुलिस और सामाजिक संस्थाओं के सदस्य यहां उपस्थित होते हैं। इसके अलावा शहर के अन्य शिवालयों में भी भक्तों का तांता लगा रहा।
संदर्भ:
https://bit.ly/3v6nSWz
https://bit.ly/3rBUsgY
https://bit.ly/3rxdcxN
https://bit.ly/38kjd9t
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में भगवान शिव द्वारा तांडव दिखाया गया है। (वालपेपर)
दूसरी तस्वीर में हिमाचल प्रदेश के मोहन शक्ति हेरिटेज पार्क में शिव तांडव प्रतिमा को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)
तीसरी तस्वीर में शिव प्रतिमा को तांडव करते दिखाया गया है। (विकिपीडिया)