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पारिस्थितिकी और गंगा बेसिन (Basin) की जैव विविधता की सुरक्षा के लिए तथा वैश्विक, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, राज्य और स्थानीय पर्यावरण के संरक्षण के लिए इस स्थल को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था। सरकार द्वारा इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए अनेकों कदम उठाए गये तथा पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए होटल और अन्य पर्यटन संबंधी बुनियादी ढांचे के विकास हेतु अभयारण्य क्षेत्र में निवेश भी किया गया। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के बहुत अवसर मिले और साथ ही वन्यजीव पर्यटन के लिए क्षेत्र का विकास हुआ, किंतु अभयारण्य में औद्योगिक गतिविधियाँ वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण पैदा कर रही हैं, जिससे दलदली हिरण, तेंदुआ, मगरमच्छ आदि की संख्या में गिरावट आयी है। इसे एक उचित अभयारण्य बनाने के लिए पर्यावरण कार्यकर्ता शिकार, अवैध अतिक्रमण, रेत खनन, जैव विविधता को नष्ट करने, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन करने आदि के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। यहां रहने वाली जैव विविधता के लिए मूल संकट अत्यधिक खेती, घास निष्कर्षण, निवास परिवर्तन, अवैध शिकार, चराई आदि हैं। कई दलदले क्षेत्रों को कृषि क्षेत्र में बदल दिया गया है या बदला जा रहा है। फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए कई स्थानों पर बिजली के बाड़ लगाये गये हैं, जो वन्य जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस प्रकार ऐतिहासिक रूप से, कई जानवरों और पक्षियों के लिए यह अभयारण्य समस्या का विषय रहा है, क्यों कि, अभयारण्य की सीमा के अधिकांश हिस्सों पर मानव-पशु संघर्ष देखा जाता रहा है। इस समस्या को हल करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य के तहत भूमि क्षेत्र को कम करने का प्रस्ताव दिया है। यदि प्रस्तावित योजना को आगे बढ़ाया जाता है, तो 2,073 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य को 1,094 वर्ग किलोमीटर तक घटा दिया जाएगा, जिससे अभयारण्य का आकार इसके वर्तमान आकार के आधे हिस्से से भी कम हो जायेगा। इस प्रस्ताव से कुछ लोग सहमत हैं, तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ताओं का कहना है कि, इस कदम से क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बहुत नुकसान हो सकता है। साथ ही यह प्रस्ताव इस महत्वपूर्ण वन्यजीव हॉटस्पॉट (Hotspot) में रहने वाली सैंकड़ों जानवर और पक्षी प्रजातियों को भी प्रभावित करेगा। राज्य सरकार और भारतीय वन्यजीव संस्थान ने तर्क दिया है कि, अभयारण्य वर्तमान में कई कस्बों और कृषि क्षेत्रों को आवरित करता है।
भूमि क्षेत्र को कम करने से क्षेत्र में अवैध शिकार और अन्य अवैध गतिविधियों को रोकना आसान हो जाएगा। हालांकि, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि, सरकार पारिस्थितिकी के नुकसान को प्राथमिकता देने के बजाय कॉर्पोरेट (Corporate) हितों का समर्थन कर रही है, और क्षेत्र में बड़े डेवलपर्स (Developers) के लिए नये मार्ग खोल रही है। प्रबंधन की ठोस योजना के अभाव में क्षेत्र को भारी तबाही का सामना करना पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं का मानना है, कि भूमि डेवलपर्स ने इस क्षेत्र में रुचि दिखाई है और कृषि गतिविधियों की आड़ में वे भूमि का अधिग्रहण करने की कोशिश कर रहे हैं। स्थानीय लोग पशुधन चराई, मछली पकड़ने, ईंधन लकड़ी संग्रह, वनस्पति निष्कर्षण, कृषि सिंचाई के लिए पानी आदि चीजों के लिए अभयारण्य पर निर्भर हैं, इसलिए हस्तिनापुर वन्यजीव अभ्यारण्य के आकार को कम करना जहां लाभदायक होगा, वहीं नुकसानदायक भी हो सकता है।
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