भारत में एक प्राकृतिक आरक्षित क्षेत्र बहुत जल्द पूरी दुनिया में एक ऐसा स्थल बनने वाला है, जहां बड़ी बिल्ली की चार प्रमुख प्रजातियां - बाघ, शेर, तेंदुआ और चीता - निवास करेंगी। मध्य प्रदेश के मध्य क्षेत्र में स्थित कुनो-पालपुर (Kuno-Palpur), भले ही भारत के सबसे प्रसिद्ध अभयारण्यों में से एक न हो, लेकिन यह निश्चित रूप से अपने आप में विवादास्पद होने जा रहा है। 2020 की शुरुआत में, देश की सर्वोच्च अदालत ने इस बात पर सहमति व्यक्त की, कि स्थानीय रूप से विलुप्त होने के 70 साल बाद वहां के वन्यजीव अधिकारी फिर से चीता को भारत में लायेंगे। एक समय ऐसा था, जब चीता भारत और मध्य पूर्व के अधिकांश हिस्सों में आसानी से घूमता हुआ पाया जाता था, लेकिन आज पूरी एशियाई (Asian) चीता आबादी ईरान (Iran) के दूरदराज के क्षेत्रों में कम संख्या में ही सीमित हैं। चूंकि ईरानी अधिकारी इन दुर्लभ प्राणियों में से किसी पर भी ध्यान देने के इच्छुक नहीं हैं, इसलिए चीते की आबादी को सुरक्षित करने के लिए भारत ने अपने प्रयास बढ़ा दिए हैं। वर्तमान में, चीते के लिए भारत का पसंदीदा विकल्प नामीबिया (Namibia) में पाया जाने वाला अफ्रीकी (African) चीता है, जो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है। लेकिन यह विवाद का विषय इसलिए बनने जा रहा है, क्यों कि, कुछ विशेषज्ञों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर सवाल उठाए हैं। उदाहरण के लिए , उनका कहना है कि चीता एक विस्तृत प्रजाति है, जो एक वर्ष में एक हजार वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्रों में यात्रा करता है। भारतीय पार्क (Parks) अफ्रीका के पार्कों की तुलना में बहुत छोटे हैं, जहां चीते को अनुकूल वातावरण उपलब्ध करा पाना मुश्किल होगा। हालांकि, वर्तमान में आवास स्थल चीते (शेरों के लिए भी) के लिए अनुकूल है, लेकिन भविष्य में यह बाघों के लिए अधिक अनुकूलित हो सकता है। वैज्ञानिक तौर पर यह कहना मुश्किल है कि, चीता, शेर, बाघ और तेंदुआ एक साथ एक ही निवास स्थान में आराम से सहवास कर पाएंगे या नहीं। ऐसा पहले कहीं और कभी नहीं हुआ है, इसलिए यह योजना कितनी सफल होगी, इस बात का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। 1952 में चीता को भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। 2009 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने चीता पुनर्निमाण परियोजना शुरू की, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में इस योजना पर यह कहकर रोक लगा दी, कि अफ्रीकी चीता एक विदेशी प्रजाति है, तथा देश के शीर्ष वन्यजीव निकाय नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (National Board for Wildlife) से इस बारे में कोई बात नहीं की गयी है। जनवरी 2020 में, जब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने इस संदर्भ में याचिका दायर की, तब सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार केंद्र को भारत के एक उपयुक्त निवास स्थान में अफ्रीकी चीता को पेश करने की अनुमति दी।
हालांकि, भारत में चीता विलुप्त हो चुका है, लेकिन कई वर्षों पहले ऐसा नहीं था। यहां चीतों की अत्यधिक संख्या मौजूद थी। 'चीता' शब्द संस्कृत के शब्द चित्रका से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'चित्तीदार'। एशियाई चीता के शुरुआती दृश्य प्रमाण खरवई और खैराबाद और मध्य प्रदेश में ऊपरी चंबल घाटी के गुफा चित्रों में पाए जाते हैं, जो 2500 से 2300 ईसा पूर्व के हैं। 1935 में, जर्नल ऑफ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Journal of Bombay Natural History Society) द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका ने चीते की तत्कालीन सीमा के बारे में बताया था। उसमें लिखा गया था कि, यह बंगाल से लेकर संयुक्त प्रांत, पंजाब और राजपुताना, मध्य भारत से दक्कन तक में विचरण करता था। 1700 और 1800 के दशक में चीतों का इतना अंधाधुंध शिकार किया गया, कि अंत में यह भारत से विलुप्त हो गया। अंतिम एशियाई चीता को 1947 में वर्तमान छत्तीसगढ़ की कोरिया रियासत (koriya province) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा मारा गया था। बिल्ली जैसे दिखने वाले इस जीव को वश में करना बहुत आसान था। इसलिए इसे जानवरों के पीछे दौड़ने और उनका शिकार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। इसलिए इन्हें शिकार जैसे खेलों में उपयोग करने के लिए बड़ी संख्या में पकड़ा गया। चीतों को कैद में रखना लगभग असंभव था, इसलिए वे खुद को कैद में अनुकूलित नहीं कर पाते थे। बंदी चीताओं को पालना बहुत ही दुर्लभ था, किन्तु 1613 में, सम्राट जहाँगीर (Jahangir) ने चीतों को पालकर औपचारिक रूप से 20 वीं शताब्दी तक की पहली और एकमात्र मिसाल दर्ज की थी। खेल के लिए इन्हें पालतू रूप से पालने की बात मानसोलासा (Manasollasa) में उल्लेखित की गयी थी, जो 12 वीं शताब्दी में कल्याणी के राजा सोमेश्वर तृतीय की दरबार की गतिविधियों का वृतांत थी।
माना जाता है, कि सम्राट अकबर (Akbar) ने 16 वीं शताब्दी में अपने 49 साल के शासनकाल के दौरान शाही राजघराने के लिए 9,000 चीते पाले थे। आखिरकार, 18 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में, जंगलों से चीतों विशेष रूप से शावकों को निकालने से इनकी संख्या बहुत कम हो गयी। जब अंग्रेजों ने भारत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली, तब चीतों की संख्या में और भी अधिक गिरावट आने लगी। ब्रिटिश (British) काल की समाप्ति तक इनकी संख्या बहुत ही कम रह गयी। प्रारंभिक 20 वीं सदी में चीतों की संख्या केवल कुछ हजार ही रह गयी थी। सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति मिल जाने के बाद अब यह उम्मीद की जा रही है कि, लंबे समय के बाद भारत में चीते को देख पाना सम्भव होगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/3e3mpKy
https://bit.ly/3bh6OFn
https://bit.ly/3e3mA8G
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में चीता को दिखाया गया है। (अनस्प्लैश )
दूसरी तस्वीर हैदराबाद के नेहरू जूलॉजिकल पार्क में चीता को दिखाती है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर चिड़ियाघर में भारतीय चीता को दिखाती है। (विकिमीडिया)