भाषा मनुष्यों के लिए लाखों वर्षों पूर्व से संचार का साधन है। मानव विकास के साथ-साथ भाषा में भी विकास होता चला आ रहा है। इसकी उत्पत्ति के सटीक प्रमाण आज तक हम मनुष्यों को नहीं मिलसका हैं। परंतु आज भी विद्वानों में इस तथ्य को लेकर मतभेद है। परंतु यह सत्य है कि शुरुआती समय में भाषा उतनी सरल नहीं थी जितनी आज के समय में है। विशेषज्ञों द्वारा खोजे गए जीवाश्म और पुरातात्त्विक साक्ष्यों से प्राचीन काल के मानव के रहन-सहन के विषय में तो जानकारी मिलती है परंतु उस समय के संचार माध्यम व भाषा के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिली है।
मनुष्यों के अलावा अन्य सभी जीव और पशु-पक्षी भी आपस में वार्तालाप के लिए मूक भाषा या इशारों की भाषा का उपयोग करते हैं। ऐसा माना जाता है कि आदिमानव भी जानवरों की भाँति संकेतों और इशारों की सहायता से एक-दूसरे से बातें किया करते थे। जिसमें किसी भी व्यवस्थित भाषा शैली का उपयोग शामिल नहीं था। विशेषज्ञों के अनुसार जानवर संवाद करने के लिए जटिल संकेतों और विभिन्न प्रकार की ध्वनियों का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही उनके चेहरे के भाव भी उनके लिए संवाद का माध्यम बनता है। विशेषज्ञ जानवरों की भाषा को समझने के लिए उनके द्वारा उत्पन्न की गई ध्वनी के पैटर्न (Pattern) को समझने का प्रयत्न करते हैं। वर्ष 2016 में कई विश्वविद्यालयों के जीववैज्ञानिकों के एक दल ने अपने अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि मैकाक्स (Macaques) (अफ्रीका में पाया जाने वाला लंगूर) शारीरिक रूप से शब्द उच्चारण में सक्षम हैं, लेकिन उसमें इस कौशल को नियंत्रित करने के लिए भाषण-तैयार मस्तिष्क नहीं है। चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) जो एक महान वैज्ञानिक थे। उनके शोध का केंद्र बिंदु संचार था। हर सजीव वस्तुओं का विवरण उनके द्वारा प्रतिपादित क्रमिक विकास के सिद्धांत में मिलता है। जिसके साक्ष्य वर्ष 1859 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज (On the Origin of Species) में मिलते हैं।
हालाँकि मनुष्य की उत्पत्ति अन्य जीव-जंतुओं के भाँति हुई है किंतु वह क्या है जो हमें उनसे भिन्न और अधिक कुशल बनाता है। उत्तर है बुद्धिमता। सरल शब्दों में कहें तो सोचने और समझने की शक्ति जो हमें हर कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने में सक्षम बनाती है। साथ ही नई चीजों को सीखने में मदद करती है। हमें भाषा का ज्ञान भी हमारी बौद्धिक शक्ति के फलस्वरूप हुआ है। जैसे हम आज हैं वह कैसे संभव हो सका? वैज्ञानिक इस स्थिति को “व्यवहारिक आधुनिकता” या “पूर्ण पैकेज” (The Full Package) कहते हैं। इसका अर्थ है वह सभी क्रिया-कलाप जो मनुष्य के जीवन का हिस्सा हैं जैसे भाषण, चेतना, उपकरण का उपयोग, कला, संगीत, भौतिक संस्कृति, वाणिज्य, कृषि आदि। यह सत्य है की सभी जीवों में डीएनए (DNA) समान रूप से विकसित होते हैं और सभी समान जीवन-चक्र से होकर गुजरते हैं। फिर भी मनुष्य को सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जर्नल ऑफ द रॉयल सोसाइटी इंटरफेस (Journal of the Royal Society Interface) में प्रकाशित एक शोध से पता चलता है कि मानव भाषा का उद्भव विशेष प्रकार की मनोवैज्ञानिक क्षमताओं के विकास द्वारा हुआ था। यही कारण है कि हम अपनी मातृभाषा को बिना किसी औपचारिक पाठ के सीख जाते हैं और फिर भी इसे बिना सोचे-समझे हर स्थिति में संभालने में सक्षम हैं।
जानवरों और पक्षियों के संवाद पर एक नज़र डालें तो हमें ज्ञात होगा कि वह मनुष्यों से किस प्रकार भिन्न है। पशु-पक्षी केवल भोजन, खतरा मह्सूस करने या सामंजस्य जैसी तत्काल परिस्थितियों को व्यक्त करने के लिए संवाद करते हैं। चिंपांज़ी (chimpanzee) द्वारा संचार के कई प्रकार मानवीय भाषा के समकक्ष माने जाते हैं किंतु इसमें कई भिन्नताएँ भी हैं। जानवरों के संवाद के कुछ उदाहरण निम्नवत हैं:
पक्षी:- हम्मिंग बर्ड (Humming Birds) जैसे पक्षियों की चहचहाट एक पैटन में होती है इसलिए इन पक्षियों की ध्वनी संगीत की धुन जैसी प्रतीत होती है। परंतु यह इनके आपस मे संवाद करने का एक तरिका है। तोता एक ऐसा पक्षी है जो कुछ सरल मानव संवाद की नकल करने में सक्षम है।
कीड़े:- मधुमक्खियों की भिनभिनाहट एक नृत्य के समान लगती है परंतु यह उनके भोजन एकत्र करने और वार्तालाप करने का तरिका होता है।
स्तनधारी:- भिन्न-भिन्न स्तनधारी जंतु भिन्न-भिन्न तरीकों से संवाद करते हैं। जहाँ एक ओर हाथी अपने क्रिया-कलापों से संवाद करते हैं और क्रोध या खतरा महसूस करने पर ही तीव्र ध्वनि निकालते हैं वहीं दूसरी ओर चमकादड जो रात के समय ही अधिक सक्रीय रहते हैं और अंधेरे में अपना अधिकांश जीवन बिताते हैं, इसलिए वे संवाद करने के लिए अपनी श्रवण प्रणाली का उपयोग करते हैं। इसके अलावा जलीय जीव-जंतु जैसे डॉल्फ़िन (Dolphins) पानी के भीतर 6 मील तक एक-दूसरे को सुनने में सक्षम होती हैं। वह भी ध्वनि के एक अलग पैटर्न से संवाद करती हैं।
व्हेल (Whale):- व्हेल के दो समूह, हंपबैक व्हेल और हिंद महासागर में पाई जाने वाली ब्लू व्हेल (Blue Whale) की एक उप-प्रजाति, गीत के समान जानी जाने वाली अलग-अलग आवृत्तियों पर दोहरी ध्वनियां उत्पन्न करती हैं। यह उनके संवाद करने का तरिका माना जाता है। इनके अतिरिक्त अन्य जीव-जंतु भी किसी न किसी प्रकार से आपस में संवाद करते हैं। जिस पर विशेषज्ञ सालों से शोध करते आए हैं। वे इन जीवों के निकट रह कर उनकी भाषा और संवाद पर लंबे समय तक नज़र रखते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक किसी प्रजाति में कुछ विशेष मनोवैज्ञानिक तंत्र विकसित न हों तब तक उनका मनुष्य के समान बुद्धिमान और विवेकशील कहलाना संभव नहीं है। अर्थात यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी व्यवस्थित भाषा ही हमें मानव बनाती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2ZYTBdG
https://bit.ly/3dT0lCm
https://bit.ly/3q0y5QC
https://bit.ly/3sKCWY3
https://bit.ly/3pVlXjT
https://bit.ly/37TOAYl
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र भाषा के विकास को दर्शाता है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर में हिंदी और अन्य भारतीय अक्षर दिखाए गए हैं। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में ओड़िआ भाषा का विकास दिखाया गया है। (विकिमीडिया)