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कहते है कि मनुष्य ने अपने अनुभवों से शिकार की कई रणनीतियों को बनाया था, जिनमें एक पर्सिस्टन्ट हंटिंग (Persistence hunting) यानि की दीर्घस्थायित्व या दृढ़ता से शिकार करने रणनीति भी शामिल थी, माना जाता है कि यह शिकार करने की तकनीक इंसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली शुरुआती रणनीतियों में से एक है। इस तकनीक में शिकारी, धीमी गति से भागते हुये अपने शिकार का तब तक पीछा या ट्रैकिंग (Tracking) करता है जब तक की वह थक नहीं जाता। यह उन जानवरों पर इस्तेमाल की जाती है जो शिकारी की तुलना में तेजी से भाग सकते है और जिनको तेजी से भाग कर पकड़ना शिकारी के लिये मुस्किल होता है। यह तकनीक अभी भी प्रभावी ढंग से कालाहारी रेगिस्तान (Kalahari Desert) में सैन लोगों (San People), और उत्तर पश्चिमी मेक्सिको (Northwestern Mexico), में रारामुरी लोगों (Rarámuri People) द्वारा उपयोग में लायी जाती है। इसे धीरज से शिकार करना (Endurance Hunting) भी कहा जाता था। यह शिकारी प्रवृत्ति अफ्रीका (Africa) के जंगली कुत्तों (African Wild Dogs) और घरेलू शिकारी (Domestic Hounds) में भी पाई है, वे तेज गति वाले चीते का भी इस रणनीति से शिकार कर लेते हैं। वे धीमी गति से कई मील तक उसका पीछा करते है और जब चीता थक जाता है और तेज भागने लायक नहीं रहता है तो ये जंगली कुत्ते उस पर हमला कर देते हैं।
पाषाण काल में एक पर्सिस्टन्ट हंटर (Persistence Hunter) लंबी दूरी तक चलने में सक्षम होता था। हालांकि द्विपादिता के वजह से मनुष्य की गति कुछ कम हो गयी परंतु इसके साथ उसने अपने को शिकार करने में सक्षम बनाया। उसने धीरज से शिकार के लिए खुद अनुकूल बनाया। इस प्रवृत्ति से मानव में कई मानसिक और शारीरिक बदलाव आये। लम्बी दूरी तक भागने की वजह से उनके शरीर से बाल कम होते गये, क्योंकि कम बाल शरीर को ठंडा करने का एक प्रभावी साधन है। विकासवादी सिद्धांतकारों ने इस बात के लिए कई परिकल्पनाएं दी है कि कैसे मानव प्राचीन दुनिया में ही बाल रहित बन गया। जीवविज्ञानी शारीरिक तंत्र को भली भांति समझते हैं, वे बताते है कि दिन की गर्मी के दौरान शिकार करते समय बाल रहित त्वचा शरीर को ठंडा रखने में मदद करती है। परंतु सवाल उठता है कि क्या हमारे पूर्वजों ने सच में मांस के लिये गर्म और शुष्क सवाना (Savanna) में कुछ पत्थर के औजार लेकर हिरण का पीछा किया होगा, और उसे इतना थका दिया कि वो भागने के लायक नहीं रहा तथा आसानी से शिकार बन गया। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तकनीक पिछले 20 लाख वर्षों में मनुष्यों के विकास के कई लक्षणों को समझा सकती है। वहीं कुछ का कहना है कि इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि प्राचीन मानव पर्सिस्टन्ट हंटर थे, यह कहना पूरी तरह से ठीक नहीं होगा कि पर्सिस्टन्ट हंटिग मानव में विकासवादी लक्षणों के लिये उत्तरदायी है। इस बात के समर्थन के लिये कि पर्सिस्टन्ट हंटिग ने मनुष्य के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, पहली बार 1984 में डेविड कैरियर (David Carrier, जो उस समय मिशिगन विश्वविद्यालय (University of Michigan.) में डॉक्टरेट छात्र (Doctoral Student) थे, द्वारा सुझाया गया कि केवल मनुष्य उन स्तनधारियों में से एक है जो पसीना बहाकर खुद को ठंडा करते हैं। अधिकांश चार-पैर वाले स्तनधारियों में पैंट (pant) यानी की हांफना या सांस देने से गर्मी को दूर किया जाता है, और यह तरकीब चलने के दौरान कम काम करती है। कैरियर ने निष्कर्ष निकाला कि यदि हमारे मानव पूर्वज किसी जानवर का लंबे समय तक पीछा कर सकते थे, तो जाहिर से बात है कि जानवर ज्यादा देर तक भागने के कारण गर्मी और थकावट से गिर जाता होगा, और मनुष्य इसे आसानी से मार डालता होगा। कैरियर के इस विचार को पैलियोन्थ्रोपोलॉजिस्ट (Paleoanthropologist) डैनियल लिबरमैन (Daniel Lieberman) द्वारा समर्थन मिला और इसमें सुधार भी किये गये। लिबरमैन ने बताया कि शारीरिक, आनुवांशिक और जीवाश्म विज्ञान संबंधी प्रमाणों से बता चलता है कि मनुष्यों की बहुत सारी व्युत्पन्न विशेषताएं हैं जो हमें दौड़ने में अच्छा बनाती हैं और जिनका कोई अन्य कार्य नहीं है, ये स्पष्ट रूप से संकेत करते हैं कि पाषाण काल में मनुष्य पर्सिस्टन्ट हंटर था और लंबी दूरी तक दौड़ने में सक्षम था।
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